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अब बच्चे परीक्षा में होंगे फेल!

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दिल्ली(एजेंसी):केंद्र सरकार स्कूली बच्चों को फेल न करने की नीति अगले साल से खत्म कर सकती है। इस पर राज्यों की मंजूरी लेकर संसद में विधेयक लाया जाएगा। अभी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों को फेल नहीं किया जा सकता है।

राज्य भी समर्थन में

यह नीति 2010 से देशभर में लागू है। एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी वजह से बच्चों में पढ़ने-लिखने की प्रवृत्ति बिगड़ रही है। केंद्र सरकार ने राज्यों से इस पर सुझाव मांगे थे। करीब 18 राज्यों ने इसे खत्म करने का समर्थन किया था। बाकी राज्यों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी।

शीतकालीन सत्र में विधेयक

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार, राज्यों से चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। 25 अक्टूबर को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक में राज्यों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा होगी। यदि राज्य सरकारें राजी होते हैं तो शीतकालीन सत्र में संशोधन विधेयक लाकर सरकार इस दिशा में आगे बढ़ेगी। इस मामले में और देरी करना सरकार सही नहीं मान रही है।

गैरसरकारी संगठन सहमत नहीं

केरल समेत कुछ राज्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत गैर सरकारी संगठन इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि फेल नहीं करने की नीति के कारण बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति घट रही है। वे इसके लिए सरकारी स्कूलों की दुर्दशा को जिम्मेदार मानते हैं जहां शिक्षा का स्तर सुधरने की बजाय गिरता जा रहा है। इसलिए ये संगठन कहते हैं कि सरकार स्कूलों की दशा सुधारे।

कई विकल्प हैं

इस मुद्दे परा मंत्रालय के पास कई विकल्प हैं। एक प्रस्ताव यह था कि सिर्फ पांचवीं और आठवीं में ही फेल करने का प्रावधान हो। लेकिन मंत्रालय इससे सहमत नहीं है। नीति में बदलाव होगा तो फिर पुरानी नीति चलेगी वर्ना मौजूदा नीति कायम रहेगी। सिर्फ दो कक्षाओं में पास-फेल का कोई औचित्य नहीं है।

आदेश के जरिए बदलाव नहीं

केंद्र सरकार इस विकल्प पर भी विचार कर रही थी कि एक सरकारी आदेश के जरिए इस नीति में बदलाव किया जाए। लेकिन कानून मंत्रालय ने इस पर असहमति जताई है। क्योंकि ऐसे आदेश को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसलिए नीति में बदलाव के लिए सरकार को संसद में ही जाना पड़ेगा।

राज्यों की सहमति

केंद्र राज्यों का रुख देना चाहती है। यदि सभी बड़े राज्य तैयार होते हैं और उसे लगता है कि जिन राज्यों ने बदलाव का समर्थन किया है, वहां सत्तारूढ़ दलों के सांसद संसद खासकर राज्यसभा में भी इसका समर्थन करेंगे तो सरकार इस पर आगे बढ़ेगी।

मानसून के बाद सर्दी भी अपना असर दिखाएगी

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दिल्ली(एजेंसी):अक्तूबर के दूसरे सप्ताह में पारा सामान्य से ऊपर बना हुआ है, लेकिन आने वाले दिनों में इसमें अचानक बदलाव की संभावना है। वजह यह है कि इस बार समुद्र में भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाली हलचलें नहीं हो रही हैं, इसलिए अनुमान है कि इस बार सर्दी परंपरागत तरीके से पड़ेगी।

प्रशांत महासागर में पिछले दो-तीन सालों से लगातार अल नीनो बन रहा था। नतीजा यह था कि समुद्र की सतह गर्म हो जाती है, जिसका असर भारत के मानसून पर तो पड़ता ही है, साथ ही सर्दियों पर भी पड़ता है। इससे सर्दियों में भी तापमान सामान्य से अधिक बना रहता है। पिछले कुछ सालों के दौरान इससे न सिर्फ सर्दी कम पड़ी है बल्कि, उसकी अवधि भी कम हुई है। पिछले साल तो कड़ाके की सर्दी पड़ी ही नहीं थी।

प्रशांत महासागर में अल नीनो और ला नीना पर नजर रखने वाली एजेंसी एनओएए ने कहा कि अल नीनो या फिर ला नीनो उत्पन्न नहीं होने की संभावना 60 फीसदी है। दूसरे, ला नीना उत्पन्न होने की संभावना 40 फीसदी है, जबकि अल नीनो उत्पन्न होने को लेकर कोई संभावना व्यक्त नहीं की गई है। यदि ला नीना उत्पन्न होता है, तो इससे सर्दी और ज्यादा हो सकती है। अलबत्ता अल नीनो के प्रभाव से सर्दी घट सकती है।

मौसम वैज्ञानिकों ने हालांकि स्पष्ट पूर्वानुमान जारी नहीं किया है, लेकिन इन तथ्यों के आधार पर यह नतीजा निकाला जा रहा है कि यदि प्रशांत महासागर में अल नीनो या ला नीना उत्पन्न नहीं होते हैं, तो इसका भारतीय मौसम पर कोई प्रभाव नहीं होगा। इसका मतलब है कि सर्दियां सामान्य तरीके से पड़ेंगी। सामान्य सर्दी का मतलब यह है कि जैसे उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ती है, वैसी ही पड़ेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो लोग यह नहीं कह सकेंगे कि ठंड नहीं पड़ रही है।

मौसम विभाग का मानना है कि अगले एक सप्ताह से तापमान में गिरावट का दौर शुरू हो जाएगा। दरअसल, अभी अधिकतम तापमान तो करीब-करीब सामान्य ही चल रहे हैं, लेकिन न्यूनतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री तक ज्यादा हैं। इसकी वजह सितंबर में कम बारिश होना, हवाओं की गति कमजोर होना तथा प्रदूषण ज्यादा होना बताया गया है।

8,490 रुपये में मिलेगा आई स्कैनर के फीचर वाला फोन

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दिल्ली(एजेंसी):आईटेल ने भारतीय स्मार्टफोन बाजार में ‘आईटी1520’ नाम का फोन लॉन्च किया है जिसमें आई स्कैनर फीचर है। यह फीचर आंखों की पुतली को स्कैन करके फोन को अनलॉक करता है। इस फोन की कीमत 8,490 रुपये है। इस वजह से आई स्कैनर के साथ आने वाला यह सबसे सस्ता स्मार्टफोन है।

5 इंच के डिसप्ले वाला यह फोन 2 जीबी रैम, 16 जीबी इंटरनल मेमोरी (32 जीबी का सपोर्ट) और 2500 एमएएच की बैटरी के साथ आता है। इस फोन की दूसरी खास बात यह है कि इसमें दोनों तरफ 13 मेगापिक्सल का कैमरा है जो सेल्फी प्रेमियों को आकर्षित कर सकता है। कंपनी ने रिलायंस जियो के साथ समझौता किया है। यह फोन जियो सिम को सपोर्ट करता है।

मैत्री महिला समिति की सार्थक पहल: ई-रिक्शा एवं मच्छरदानी वितरण

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सांसद एवं संसदीय सचिव ने की एनटीपीसी कोरबा सीएसआर कार्यों की मुक्त कंठ से प्रशंसा
कोरबा@M4S:मैत्री महिला समिति एनटीपीसी कोरबा हमेशा से ही आसपास के क्षेत्र में बच्चों, महिलाओं एवं जरूरतमन्द लोगों के लिए अपनी सीएसआर गतिविधियों के अंतर्गत उन्हें सक्षम बनाने का प्रयास करते आयी है। समिति द्वारा विचार-विमर्श के बाद एक मत होकर जरूरतमन्द लोगों को ऐसे साधन उपलब्ध कराने में सहमति बनी जिससे उन्हें जीविकोपार्जन में सहायता मिले साथ ही साथ समाज में प्रदूषण रहित आवागमन के साधनों के उपयोग के लिए जागरूकता भी बढ़े। इस कार्ययोजना को मूर्तरूप देने के लिए जरूरतमन्द लाभार्थियों की पहचान कर उन्हें ई-रिक्शा प्रदान की जाए जिसके इस्तेमाल से वे अपनी जीविका उपार्जन कर सके। प्रदूषण रहित आवागमन के साधनों के उपयोग के प्रति लोगों के जागरूक करने के लिए जन प्रतिनिधियों के माध्यम से ई-रिक्शा वितरण किए जाने की सहमति बनी। ०४ अक्टूबर २०१६ को नवरात्रि के अवसर पर कोरबा के सांसद डॉ. बंशीलाल महतो, कटघोरा विधानसभा के विधायक एवं संसदीय सचिव श्री लखनलाल देवांगन के करकमलों द्वारा छ: लोगों को ई-रिक्शा वितरित किया गया। साथ ही साथ मौसमी बीमारी एवं मच्छरों के प्रकोप से बचाव के लिए शासकीय विद्यालय जमनीपाली के ५०० विद्यार्थियों को मच्छरदानी भी वितरित किए गए।mms-1 mms-2
उपस्थित जनसमान्य, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के समूह को संबोधित करते हुये माननीय संसदीय सचिव  लखनलाल देवांगन ने मैत्री महिला समिति की खुलकर सराहना की एवं एनटीपीसी कोरबा के द्वारा किए जा रहे सीएसआर कार्यों को औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्रेष्ठ बताया। एनटीपीसी कोरबा के सीएसआर कार्यों को सांसद महोदय द्वारा विद्यार्थियों को मच्छरदानी का उपयोग करने की सलाह के साथ साथ स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने को कहा गया। उन्होने ई-रिक्शा वितरण को अग्रणी कदम बताया। अपने उद्बोधन में एनटीपीसी कोरबा द्वारा सीएसआर के क्षेत्र में किया जा रहे कार्य एवं मड़वा रानी में बन रहे सामुदायिक भवन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि पंद्रह अगस्त के अवसर पर भी अन्य लाभार्थियों को समूह महाप्रबंधक  प्रकाश तिवारी की उपस्थिती में पाँच ई-रिक्शा वितरित किए गए थे। समूह महाप्रबंधक श्री तिवारी ने जन प्रतिनिधियों को समय देने के लिए आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता, मैत्री महिला समिति एनटीपीसी कोरबा की अध्यक्षा  सीमा तिवारी द्वारा की गई, उन्होने अपने उद्बोधन में आगामी कार्ययोजना विशेषकर जल संरक्षण (वॉटर हार्वेस्टिंग) के लिए जन प्रतिनिधियों से आवश्यक सुझाव एवं सहयोग देने का आग्रह किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मैत्री महिला समिति की उपाध्यक्षा जनकल्याण श्रीमती केया बोस, महासचिव श्रीमती रेखा श्रीवास्तव, सहसचिव सोमा सेनगुप्ता, सचिव(जन कल्याण कार्य)  किरण केशकर, सहसचिव (जन कल्याण कार्य) राधा बंसल, कोषाध्यक्षा श्रीमती संजु गुप्ता,  शशि राठौर,  विनीता सूबेदार,  श्वेता कुमुद,  मीनाक्षी वर्मा, ज्योत्सना सिन्हा एवं अन्य सदस्यों का भरपूर सहयोग रहा।
कार्यक्रम में महाप्रबंधक प्रचालन एवं अनुरक्षण श्री दीपांकर बोस, महाप्रबंधक अनुरक्षण श्री तिवारी, महाप्रबंधक तकनीकी सेवा श्री दक्षिणामूर्ति एवं महाप्रबंधक ईंधन प्रबंधन  बी.गोस्वामी, के साथ विभिन्न यूनियन एवं असोशिएशन के पदाधिकारी एवं जन प्रतिनिधि उपस्थित थे।

चलती बस में  घुसा क्रेन , चालक की मौत

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कोरबा@M4S:छत्तीसगढ़ के कोरबा में अंबिकापुर से सवारी लेकर रायपुर के लिए रवाना हुई यात्री बस सर्विस पाली के बक्साही मार्ग पर
कोरबा:छत्तीसगढ़ के कोरबा में अंबिकापुर से सवारी लेकर रायपुर के लिए रवाना हुई यात्री बस सर्विस पाली के बक्साही मार्ग पर दुर्घटना का शिकार हो गई। सामने से आ रही क्रेन का अगला हिस्सा बस के सामने जा घुसा। इस हादसे में चालक की मौत हो गई। बस पर सवार पांच यात्री घायल हो गए। जिन्हें उपचार के लिए बिलासपुर सिम्स रेफर कर दिया गया है।917c44e8-faf1-425c-8e8d-a8cbc9316bb4
दरअसल गुप्ता बस सर्विस की बस का एस यादव चालक अंबिकापुर से सवारी लेकर रायपुर के लिए निकला हुआ था। बस पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बक्साही के पास पहुंची हुई थी। इसी दौरान सामने से आ रही क्रेन से जा भिड़ी। हादसे में क्रेन का अगला हिस्सा बस के सामने के भाग में जा घुसा। हादसे में चालक एस यादव की मौका स्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई। क्रेन से टकराने के बाद बस रूक गई। अगर बस नहीं रूकती तो हादसा और भी गंभीर हो सकता था। क्रेन से भिड़ंत के बाद बस में सवार यात्रियों में हडक़ंप मच गया। हादसे में पांच यात्रियों को चोटें आई है। दुर्घटना की सूचना मिलते ही पाली पुलिस दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गई थी। घायलों को उपचार के लिए बिलासपुर सिम्स भेजा गया। वहीं अन्य यात्रियों को दूसरे वाहनों की सहायता से गंतव्य के लिए रवाना किया गया। पुलिस ने मर्ग कायम कर चालक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। बताया जाता है कि चालक सूरजपुर का रहने वाला था। घटना के संबंध में बस सर्विस के मालिक को सूचना देते हुए चालक के परिजनों को घटना की खबर दी गई है।दुर्घटना का शिकार हो गई। सामने से आ रही क्रेन का अगला हिस्सा बस के सामने जा घुसा। इस हादसे में चालक की मौत हो गई। बस पर सवार पांच यात्री घायल हो गए। जिन्हें उपचार के लिए बिलासपुर सिम्स रेफर कर दिया गया है।
दरअसल गुप्ता बस सर्विस की बस का एस यादव चालक अंबिकापुर से सवारी लेकर रायपुर के लिए निकला हुआ था। बस पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बक्साही के पास पहुंची हुई थी। इसी दौरान सामने से आ रही क्रेन से जा भिड़ी। हादसे में क्रेन का अगला हिस्सा बस के सामने के भाग में जा घुसा। हादसे में चालक एस यादव की मौका स्थल पर ही दर्दनाक मौत हो गई। क्रेन से टकराने के बाद बस रूक गई। अगर बस नहीं रूकती तो हादसा और भी गंभीर हो सकता था। क्रेन से भिड़ंत के बाद बस में सवार यात्रियों में हडक़ंप मच गया। हादसे में पांच यात्रियों को चोटें आई है। दुर्घटना की सूचना मिलते ही पाली पुलिस दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गई थी। घायलों को उपचार के लिए बिलासपुर सिम्स भेजा गया। वहीं अन्य यात्रियों को दूसरे वाहनों की सहायता से गंतव्य के लिए रवाना किया गया। पुलिस ने मर्ग कायम कर चालक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। बताया जाता है कि चालक सूरजपुर का रहने वाला था। घटना के संबंध में बस सर्विस के मालिक को सूचना देते हुए चालक के परिजनों को घटना की खबर दी गई है।

हाथियों का आतंक जारी,फिर फसल बर्बाद

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 मशाल जलाकर कर रहे रतजगा
कोरबा@M4S: करतला वन परिक्षेत्र में हाथियों का आतंक बरपा हुआ है। क्षेत्र के कई ग्रामीणों की फसल को हाथी नुकसान पहुंचा चुके हैं। हाथियों ने क्षेत्र में लगभग 30 एकड़ धान की फसल को रौंद दिया है।
अभी भी हाथियों का दल बड़मार एवं आसपास के क्षेत्रों में विचरण कर रहा है। जिससे ग्रामीणों में हाथियों का डर बना हुआ है। हाथियों को ढोल मंजीरा बजाकर खदेडऩे का प्रयास किया जा रहा है। ग्रामीण दिन-रात मशाल जलाकर रतजगा करने को मजबूर है। पिछले एक पखवाड़े से हाथी करतला वन परिक्षेत्र के अलग-अलग जंगली क्षेत्रों में विचरण कर रहे है। vlcsnap-2016-10-03-08h22m16s241कई एकड़ फसल को नुकसान पहुंचाने के बाद भी हाथी करतला क्षेत्र के जंगलों में जमे हुए है। जंगल हाथियों की चिंघाड़ से गूंज रहा है। हाथियों का डर ग्रामीणों पर इस कदर है कि वे अपने खेतों की ओर जाने में भी कतराने लगे है। वन विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया है कि हाथियों का दल बड़मार जंगल में दो दलों में विचरण कर रहा है। बड़मार के अलावा नवापारा में भी हाथियों की धमक है। वन विभाग हाथियों के झुंड पर निगाह बनाए हुए है। लेकिन रात के समय ग्रामीणों को हाथियों के भय के कारण नींद नहीं आ रही है। पूरी रात वे मशाल की रौशनी में जागकर गुजार रहे हैं। वहीं गांव में ढोल, मंजीरा बजाकर हाथियों से बचने के जतन किए जा रहे हैं।

कास्ट हाऊस में श्रमिक की संदिग्ध मौत

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कोरबा@M4S :कोरबा के बालको संयंत्र के कास्ट हाऊस में एक श्रमिक की संदिग्ध मौत का मामला सामने आया है। हालांकि प्रबंधन ने श्रमिक की मौत हार्ट अटैक से होना बताया है। इस घटना के बाद संयंत्र के श्रमिकों में आक्रोश व्याप्त हो गया। प्रबंधन के खिलाफ आक्रोशित श्रमिकों द्वारा प्लांट के बाहर हंगामा किया है।उद्दोगों में २४ घटने चिकित्सक पदस्थ नही होने से कर्मियो की जान खतरे में है,यदि डॉक्टर से समय पर उपचार होता तो कर्मी को मौत से बचाया जा सकता था,मूलत: बिलासपुर हाल मुकाम बालको निवासी रामसिंह कंवर बालको संयंत्र के कास्ट हाऊस में आपरेटर के रूप में पदस्थ था। जो कल ड्यूटी गया हुआ था। ड्यूटी के दौरान अचानक कास्ट हाऊस में उसकी तबियत बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया। आज उसकी मौत की खबर लगते ही सहकर्मियों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया।652e4d5c-12c8-4c97-af27-259a40f9f793 प्रबंधन की माने तो आपरेटर रामसिंह कंवर की मौत हार्ट अटैक से हुई है। वहीं इस मामले में श्रमिकों ने संदिग्ध मौत होने की बात कहते हुए जांच की मांग की है। इस घटना के बाद संयंत्र स्थल पर पुलिस बल की भारी संख्या में तैनाती की गई थी। फिलहाल पोस्टमार्टम रिपोर्ट व पुलिस जांच के बाद ही मौत के वास्तविक कारणों का खुलासा हो सकेगा।इधर बालको प्रबंधन हंगामे के बात मृतक के परिजन को नियम अनुसार नौकरी देने की बात कही है। त्र के कास्ट हाऊस में एक श्रमिक की संदिग्ध मौत का मामला सामने आया है।bc3697bd-7ce2-4fdc-8f5e-0d09166d6565 हालांकि प्रबंधन ने श्रमिक की मौत हार्ट अटैक से होना बताया है। इस घटना के बाद संयंत्र के श्रमिकों में आक्रोश व्याप्त हो गया। प्रबंधन के खिलाफ आक्रोशित श्रमिकों द्वारा प्लांट के बाहर हंगामा किया है।उद्दोगों में २४ घटने चिकित्सक पदस्थ नही होने से कर्मियो की जान खतरे में है,यदि डॉक्टर से समय पर उपचार होता तो कर्मी को मौत से बचाया जा सकता था,मूलत: बिलासपुर हाल मुकाम बालको निवासी रामसिंह कंवर बालको संयंत्र के कास्ट हाऊस में आपरेटर के रूप में पदस्थ था। जो कल ड्यूटी गया हुआ था। ड्यूटी के दौरान अचानक कास्ट हाऊस में उसकी तबियत बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया। आज उसकी मौत की खबर लगते ही सहकर्मियों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। प्रबंधन की माने तो आपरेटर रामसिंह कंवर की मौत हार्ट अटैक से हुई है। वहीं इस मामले में श्रमिकों ने संदिग्ध मौत होने की बात कहते हुए जांच की मांग की है। इस घटना के बाद संयंत्र स्थल पर पुलिस बल की भारी संख्या में तैनाती की गई थी। फिलहाल पोस्टमार्टम रिपोर्ट व पुलिस जांच के बाद ही मौत के वास्तविक कारणों का खुलासा हो सकेगा।इधर बालको प्रबंधन हंगामे के बात मृतक के परिजन को नियम अनुसार नौकरी देने की बात कही है।

ठेका श्रमिक  महिला की मिली जली हुई लाश,पुलिस जांच में जुटी 

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कोरबा :कोरबा के दर्री थाना क्षेत्र के एक मकान में ठेका श्रमिक  महिला की जली हुई लाश बरामद की गई है। मामले की सूचना पर दर्री पुलिस ने मौके पर पहुंचकर विवेचना  शुरू कर दी है।98a5865f-b8d2-4a72-85d5-380d57e5e999
दरअसल दर्री थाना क्षेत्र  के फर्टीलाइजर बस्ती में एन टी पी सी सयंत्र में ठेकाकर्मी त्रिवेणी बाई नामक महिला अकेले निवास करती थी। शनिवार की  सुबह लोगों को लगा कि उसके मकान से जलने की तेज दुर्गंध उठ रही है। मकान का दरवाजा भी बंद है। भीतर झांककर देखने पर पता चला कि महिला जली हुई हालत में पड़ी हुई है। घटना की सूचना दर्री पुलिस को दी गई।65ff4074-0beb-494f-a0da-c0c97e9ff25a पुलिस ने मामले को संदिग्ध मानते हुए मर्ग कायम कर विवेचना शुरू कर दी है,एफ एस एल की मदद पुलिस ले रही है,हत्या,आत्महत्या या हादसा पुरे मामले का खुलासा एफ एस एल और पी एम रिपोर्ट के बाद होने की बात पुलिस कह रही है।

कटघोरा विकासखण्ड बना खुले में शौचमुक्त विकासखंड

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उत्सव में शामिल हुए सांसद, संसदीय सचिव
54 ग्राम पंचायतों में बनाये गए शौचालय
कोरबा@M4S:जिले के कटघोरा विकासखंड को आज खुले में शौचमुक्त विकासखंड घोषित किया गया। ब्लाक स्तरीय कार्यक्रम में कटघोरा विकासखंड के सभी 54 ग्राम पंचायत के ओडीएफ होने पर उक्त विकासखंड को जिले का पहला खुले में शौच मुक्त ब्लाक घोषित किया गया।
    ओडीएफ उत्सव में मुख्य अतिथि सांसद डा. बंशीलाल महतो ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि कटघोरा की पहचान पुराने तहसील के रूप में वर्षों से है। अब यह विकासखंड खुले में शौचमुक्त ग्राम के रूप में पहचाना जायेगा। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी गरीब के बेटे हैं और उन्होंने गरीबों, किसानों और मजदूरों के लिए योजना बनाई है। उन्होंने देश को स्वच्छ बनाने और महिलाओं को सम्मान के लिए घर-घर शौचालय निर्माण का संकल्प लिया। फलस्वरूप कटघोरा विकासखंड खुले में शौच मुक्त विकासखंड बन पाया। सांसद डा. महतों ने ग्रामीणों को नियमित शौचालय का उपयोग करने की अपील करते हुए गांव में स्वच्छता बनाये रखने तथा ग्रामीणों को शराब के सेवन से दूर रहने और शिक्षित बनने की अपील की। उन्होंने कटघोरा सहित जिले के अन्य विकासखण्ड को भी खुले में शौचमुक्त बनाने सभी की भागीदारी की अपील की।
   कार्यक्रम में संसदीय सचिव श्री लखन लाल देवांगन ने कहा कि यह बहुत ही खुशी की बात है कि आज उसके विधानसभा क्षेत्र अन्तर्गत कटघोरा विकासखंड खुले में शौचमुक्त ब्लाक घोषित हो गया है। उन्होंने सरपंचों एवं ग्रामीणों से अपील किया कि वे अपने घरों के शौचालय को स्वच्छ रखें ताकि कोई मेहमान जब घर आए और शौचालय का उपयोग करे तो शौचालय की स्वच्छता देखकर स्वच्छता की सीख ले। संसदीय सचिव श्री देवांगन ने कहा कि शौचालय बनने से गांव के नदी-नालों में भी गंदगी समाप्त होगी। पानी स्वच्छ रहेगा और आवश्यक कार्य हेतु नदी-नालों के पानी का उपयोग किया जा सकेगा। उन्होंने सरपंचों से आव्हान किया कि वे अपने गांव को एक माडल के रूप में विकसित करें। ग्राम पंचायत में होने वाले निर्माण कार्यों में गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखें। किसी प्रकार से बिचैलिए के संपर्क में न आएं। कोई व्यवधान डाले तो अधिकारियों से लिखित में शिकायत करें।
    जिला पंचायत अध्यक्ष  देवी सिंह टेकाम ने कहा कि महात्मा गांधी का स्वप्न था कि देश को स्वच्छ कैसे बनाया जाए। देश के प्रधानमंत्री के अभियान के साथ घर-घर में शौचालय बन रहा है। इसके साथ ही स्वच्छ भारत की ओर देश आगे बढ़ रहा है। आज कटघोरा विकासखंड खुले में शौचमुक्त विकासखंड घोषित होने के साथ जिले के दूसरे विकासखंडों के लिए भी एक प्रेरणा और आदर्श बन गया है। उन्होंने गांव में आने वाले मेहमानों और बाहरी व्यक्ति के लिए शौचालय की आवश्यकता बताई।
    कलेक्टर  पी. दयानंद ने इस अवसर पर कहा कि पूरी दुनिया में सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी एवं पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्म दिवस के अवसर पर कटघोरा विकासखंड खुले में शौचमुक्त विकासखंड बन गया यह एक ऐतिहासिक क्षण है। उन्होंने गांव में सामुदायिक शौचालय की आवश्यकता को पूर्ण करने की बात कहते हुए सरपंचों एवं जनप्रतिनिधियों से शौचालय की स्वच्छता एवं नियमित उपयोग हेतु सहयोग की अपील की। कलेक्टर ने कटघोरा ब्लाक को खुले में शौचमुक्त बनाने वाले सरपंचों, जनप्रतिनिधियों सहित सभी लोगों के प्रति आभार जताया।
    जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी  विलास संदीपान भोस्कर ने कटघोरा विकासखंड में शौचालय निर्माण के साथ ब्लाक को ओडीएफ बनाने शुरू की गई प्रयासों के बारे में विस्तार से बताया। उनहोंने कहा कि यह कार्य ग्रामीणों एवं जनप्रतिनिधियों के सहयोग के बिना संभव नहीं था। वे स्वयं प्रातः 6 बजे व रात्रि 9 बजे ग्रामीणों के बीच पहुंचकर चर्चा करते थे। उन्होंने शौचालय का नियमित उपयोग की अपील ग्रामीणों से की।कार्यक्रम में सरपंच हुए सम्मानित- कटघोरा विकासखंड को ओडीएफ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सभी 54 पंचायतों के सरपंचों का सम्मान किया शाल एवं श्रीफल से मुख्य अतिथि द्वारा किया गया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।सरपंचों को दिलाई गई शपथ- कार्यक्रम में शामिल सभी सरपंचों को स्वच्छता के साथ खुले में शौच नहीं करने हेतु सामुहिक संकल्प दिलाया गया। मुख्य अतिथि सांसद डा. बंशीलाल महतों ने सरपंचों एवं उपस्थित अधिकारियों को शपथ दिलायी।

शायद ही सुनी हो बापू के जीवन से जुड़ी ये 3 कहानियां, पढ़ें

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नई दिल्ली(एजेंसी):2 अक्टूबर यानि गांधीजी की जयंती के मौके पर कुछ ऐसी रोचक किस्से बता रहे हैं, जिन्हें शायद ही आपने कभी सुनी हो। हालांकि उन्होनें ये बातें अपनी आत्मकथा में लिखी है, लेकिन यदि आप उनके बचपन में हुए इस किस्से को पढ़ेंगे तो जान पाएंगे कि आखिर गांधी जी क्यों महात्मा कहलाते थे? आज हम उनके जीवन में घटी 3 रोचक कहानियां बता रहे हैं। आइए जानते हैं, 2 अ2 अक्टूबर यानि गांधीजी की जयंती के मौके पर कुछ ऐसी रोचक किस्से बता रहे हैं, जिन्हें शायद ही आपने कभी सुनी हो। हालांकि उन्होनें ये बातें अपनी आत्मकथा में लिखी है, लेकिन यदि आप उनके बचपन में हुए इस किस्से को पढ़ेंगे तो जान पाएंगे कि आखिर गांधी जी क्यों महात्मा कहलाते थे? आज हम उनके जीवन में घटी 3 रोचक कहानियां बता रहे हैं। आइए जानते हैं, गांधीजी के जिंदगी से जुड़ी कहानी उन्हीं की जुबानी…

1. जब नकल न करने पर खुद को कहा बेवकूफ
हाईस्कूल के पहले ही वर्ष की परीक्षा के समय की एक घटना उल्लेखनीय हैं। शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जाइल्स स्कूल में निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने पहली कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के 5 शब्द लिखाए। उनमें एक शब्द ‘केटल’ था। मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे।
शिक्षक ने अपने बूट की नोक मारकर मुझे सावधान किया। लेकिन मैं क्यों सावधान होने लगा? मुझे यह ख्याल ही नहीं हो सका कि शिक्षक मुझे पास वाले लड़के की पट्टी देखकर हिज्जे सुधार लेने को कहते हैं। मैंने यह माना था कि शिक्षक तो यह देख रहे हैं कि हम एक-दूसरे की पट्टी में देखकर चोरी न करें। सब लड़कों के पांचों शब्द सही निकले और अकेला मैं बेवकूफ ठहरा। शिक्षक ने मुझे मेरी बेवकूफी बाद में समझाई, लेकिन मेरे मन पर कोई असर न हुआ। मैं दूसरे लड़कों की पट्टी में देखकर चोरी करना कभी न सीख सका।
इतने पर भी शिक्षक के प्रति मेरा विनय कभी कम न हुआ। बड़ों के दोष न देखने का गुण मुझ में स्वभाव से ही था। बाद में इन शिक्षक के दूसरे दोष भी मुझे मालूम हुए थे। फिर भी उनके प्रति मेरा आदर बना ही रहा। मैं यह जानता था कि बड़ों का आज्ञा का पालन करना चाहिए। वे जो कहें सो करना करे उसके काजी न बनना।

2. एक किताब ने बदल दी गांधीजी की जिंदगी
इसी समय के दो और प्रसंग मुझे हमेशा याद रहे हैं। साधारणतः पाठशाला की पुस्तकों छोड़कर और कुछ पढ़ने का मुझे शौक नहीं था। सबक याद करना चाहिए, उलाहना सहा नहीं जाता, शिक्षक को धोखा देना ठीक नहीं, इसलिए मैं पाठ याद करता था। लेकिन मन अलसा जाता, इससे अक्सर सबक कच्चा रह जाता। ऐसी हालत में दूसरी कोई चीज पढ़ने की इच्छा क्यों कर होती? किन्तु पिताजी की खरीदी हुई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि पड़ी। नाम था श्रवण-पितृभक्ति नाटक। मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई और मैं उसे बड़े चाव के साथ पढ़ गया। उन्हीं दिनों शीशे मे चित्र दिखाने वाले भी घर-घर आते थे। उनके पास भी श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं।
दोनों चीजों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिए। श्रवण की मृत्यु पर उसके माता-पिता का विलाप मुझे आज भी याद है। उस ललित छन्द को मैंने बाजे पर बजाना भी सीख लिया था। मुझे बाजा सीखने का शौक था और पिताजी ने एक बाजा दिया भी दिया था।

3. कैसे पड़ा राजा हरिश्चन्द्र का प्रभाव
इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिश्चन्द्र का आख्यान था। उसे बार-बार देखने की इच्छा होती थी। लेकिन यूं बार-बार जाने कौन देता? पर अपने मन में मैंने उस नाटक को सैकड़ों बार खेला होगा।
हरिश्चन्द्र की तरह सत्यवादी सब क्यों नहीं होते? यह धुन बनी रहती। हरिश्चन्द्र पर जैसी विपत्तियां पड़ी, वैसी विपत्तियों को भोगना और सत्य का पालन करना ही वास्तविक सत्य हैं। मैंने यह मान लिया था कि नाटक में जैसी लिखी हैं, वैसी विपत्तियां हरिश्चन्द्र पर पड़ी होगी। हरिश्चन्द्र के दुःख देखकर उसका स्मरण करके मैं खूब रोया हूं। आज मेरी बुद्धि समझती हैं कि हरिश्चन्द्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं था। फिर भी मेरे विचार में हरिश्चन्द्र और श्रवण आज भी जीवित हैं। मैं मानता हूं कि आज भी उन नाटकों को पढ़ूं तो आज भी मेरी आंखों से आंसू बह निकलेंगे।क्टूबर यानि गांधीजी की जयंती के मौके पर कुछ ऐसी रोचक किस्से बता रहे हैं, जिन्हें 2 अक्टूबर यानि गांधीजी की जयंती के मौके पर कुछ ऐसी रोचक किस्से बता रहे हैं, जिन्हें शायद ही आपने कभी सुनी हो। हालांकि उन्होनें ये बातें अपनी आत्मकथा में लिखी है, लेकिन यदि आप उनके बचपन में हुए इस किस्से को पढ़ेंगे तो जान पाएंगे कि आखिर गांधी जी क्यों महात्मा कहलाते थे? आज हम उनके जीवन में घटी 3 रोचक कहानियां बता रहे हैं। आइए जानते हैं, गांधीजी के जिंदगी से जुड़ी कहानी उन्हीं की जुबानी…

1. जब नकल न करने पर खुद को कहा बेवकूफ
हाईस्कूल के पहले ही वर्ष की परीक्षा के समय की एक घटना उल्लेखनीय हैं। शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जाइल्स स्कूल में निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने पहली कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के 5 शब्द लिखाए। उनमें एक शब्द ‘केटल’ था। मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे।
शिक्षक ने अपने बूट की नोक मारकर मुझे सावधान किया। लेकिन मैं क्यों सावधान होने लगा? मुझे यह ख्याल ही नहीं हो सका कि शिक्षक मुझे पास वाले लड़के की पट्टी देखकर हिज्जे सुधार लेने को कहते हैं। मैंने यह माना था कि शिक्षक तो यह देख रहे हैं कि हम एक-दूसरे की पट्टी में देखकर चोरी न करें। सब लड़कों के पांचों शब्द सही निकले और अकेला मैं बेवकूफ ठहरा। शिक्षक ने मुझे मेरी बेवकूफी बाद में समझाई, लेकिन मेरे मन पर कोई असर न हुआ। मैं दूसरे लड़कों की पट्टी में देखकर चोरी करना कभी न सीख सका।
इतने पर भी शिक्षक के प्रति मेरा विनय कभी कम न हुआ। बड़ों के दोष न देखने का गुण मुझ में स्वभाव से ही था। बाद में इन शिक्षक के दूसरे दोष भी मुझे मालूम हुए थे। फिर भी उनके प्रति मेरा आदर बना ही रहा। मैं यह जानता था कि बड़ों का आज्ञा का पालन करना चाहिए। वे जो कहें सो करना करे उसके काजी न बनना।

2. एक किताब ने बदल दी गांधीजी की जिंदगी
इसी समय के दो और प्रसंग मुझे हमेशा याद रहे हैं। साधारणतः पाठशाला की पुस्तकों छोड़कर और कुछ पढ़ने का मुझे शौक नहीं था। सबक याद करना चाहिए, उलाहना सहा नहीं जाता, शिक्षक को धोखा देना ठीक नहीं, इसलिए मैं पाठ याद करता था। लेकिन मन अलसा जाता, इससे अक्सर सबक कच्चा रह जाता। ऐसी हालत में दूसरी कोई चीज पढ़ने की इच्छा क्यों कर होती? किन्तु पिताजी की खरीदी हुई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि पड़ी। नाम था श्रवण-पितृभक्ति नाटक। मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई और मैं उसे बड़े चाव के साथ पढ़ गया। उन्हीं दिनों शीशे मे चित्र दिखाने वाले भी घर-घर आते थे। उनके पास भी श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं।
दोनों चीजों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिए। श्रवण की मृत्यु पर उसके माता-पिता का विलाप मुझे आज भी याद है। उस ललित छन्द को मैंने बाजे पर बजाना भी सीख लिया था। मुझे बाजा सीखने का शौक था और पिताजी ने एक बाजा दिया भी दिया था।

3. कैसे पड़ा राजा हरिश्चन्द्र का प्रभाव
इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिश्चन्द्र का आख्यान था। उसे बार-बार देखने की इच्छा होती थी। लेकिन यूं बार-बार जाने कौन देता? पर अपने मन में मैंने उस नाटक को सैकड़ों बार खेला होगा।
हरिश्चन्द्र की तरह सत्यवादी सब क्यों नहीं होते? यह धुन बनी रहती। हरिश्चन्द्र पर जैसी विपत्तियां पड़ी, वैसी विपत्तियों को भोगना और सत्य का पालन करना ही वास्तविक सत्य हैं। मैंने यह मान लिया था कि नाटक में जैसी लिखी हैं, वैसी विपत्तियां हरिश्चन्द्र पर पड़ी होगी। हरिश्चन्द्र के दुःख देखकर उसका स्मरण करके मैं खूब रोया हूं। आज मेरी बुद्धि समझती हैं कि हरिश्चन्द्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं था। फिर भी मेरे विचार में हरिश्चन्द्र और श्रवण आज भी जीवित हैं। मैं मानता हूं कि आज भी उन नाटकों को पढ़ूं तो आज भी मेरी आंखों से आंसू बह निकलेंगे।शायद ही आपने कभी सुनी हो। हालांकि उन्होनें ये बातें अपनी आत्मकथा में लिखी है, लेकिन यदि आप उनके बचपन में हुए इस किस्से को पढ़ेंगे तो जान पाएंगे कि आखिर गांधी जी क्यों महात्मा कहलाते थे? आज हम उनके जीवन में घटी 3 रोचक कहानियां बता रहे हैं। आइए जानते हैं, गांधीजी के जिंदगी से जुड़ी कहानी उन्हीं की जुबानी…

1. जब नकल न करने पर खुद को कहा बेवकूफ
हाईस्कूल के पहले ही वर्ष की परीक्षा के समय की एक घटना उल्लेखनीय हैं। शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जाइल्स स्कूल में निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने पहली कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के 5 शब्द लिखाए। उनमें एक शब्द ‘केटल’ था। मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे।
शिक्षक ने अपने बूट की नोक मारकर मुझे सावधान किया। लेकिन मैं क्यों सावधान होने लगा? मुझे यह ख्याल ही नहीं हो सका कि शिक्षक मुझे पास वाले लड़के की पट्टी देखकर हिज्जे सुधार लेने को कहते हैं। मैंने यह माना था कि शिक्षक तो यह देख रहे हैं कि हम एक-दूसरे की पट्टी में देखकर चोरी न करें। सब लड़कों के पांचों शब्द सही निकले और अकेला मैं बेवकूफ ठहरा। शिक्षक ने मुझे मेरी बेवकूफी बाद में समझाई, लेकिन मेरे मन पर कोई असर न हुआ। मैं दूसरे लड़कों की पट्टी में देखकर चोरी करना कभी न सीख सका।
इतने पर भी शिक्षक के प्रति मेरा विनय कभी कम न हुआ। बड़ों के दोष न देखने का गुण मुझ में स्वभाव से ही था। बाद में इन शिक्षक के दूसरे दोष भी मुझे मालूम हुए थे। फिर भी उनके प्रति मेरा आदर बना ही रहा। मैं यह जानता था कि बड़ों का आज्ञा का पालन करना चाहिए। वे जो कहें सो करना करे उसके काजी न बनना।

2. एक किताब ने बदल दी गांधीजी की जिंदगी
इसी समय के दो और प्रसंग मुझे हमेशा याद रहे हैं। साधारणतः पाठशाला की पुस्तकों छोड़कर और कुछ पढ़ने का मुझे शौक नहीं था। सबक याद करना चाहिए, उलाहना सहा नहीं जाता, शिक्षक को धोखा देना ठीक नहीं, इसलिए मैं पाठ याद करता था। लेकिन मन अलसा जाता, इससे अक्सर सबक कच्चा रह जाता। ऐसी हालत में दूसरी कोई चीज पढ़ने की इच्छा क्यों कर होती? किन्तु पिताजी की खरीदी हुई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि पड़ी। नाम था श्रवण-पितृभक्ति नाटक। मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई और मैं उसे बड़े चाव के साथ पढ़ गया। उन्हीं दिनों शीशे मे चित्र दिखाने वाले भी घर-घर आते थे। उनके पास भी श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं।
दोनों चीजों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिए। श्रवण की मृत्यु पर उसके माता-पिता का विलाप मुझे आज भी याद है। उस ललित छन्द को मैंने बाजे पर बजाना भी सीख लिया था। मुझे बाजा सीखने का शौक था और पिताजी ने एक बाजा दिया भी दिया था।

3. कैसे पड़ा राजा हरिश्चन्द्र का प्रभाव
इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिश्चन्द्र का आख्यान था। उसे बार-बार देखने की इच्छा होती थी। लेकिन यूं बार-बार जाने कौन देता? पर अपने मन में मैंने उस नाटक को सैकड़ों बार खेला होगा।
हरिश्चन्द्र की तरह सत्यवादी सब क्यों नहीं होते? यह धुन बनी रहती। हरिश्चन्द्र पर जैसी विपत्तियां पड़ी, वैसी विपत्तियों को भोगना और सत्य का पालन करना ही वास्तविक सत्य हैं। मैंने यह मान लिया था कि नाटक में जैसी लिखी हैं, वैसी विपत्तियां हरिश्चन्द्र पर पड़ी होगी। हरिश्चन्द्र के दुःख देखकर उसका स्मरण करके मैं खूब रोया हूं। आज मेरी बुद्धि समझती हैं कि हरिश्चन्द्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं था। फिर भी मेरे विचार में हरिश्चन्द्र और श्रवण आज भी जीवित हैं। मैं मानता हूं कि आज भी उन नाटकों को पढ़ूं तो आज भी मेरी आंखों से आंसू बह निकलेंगे।गांधीजी के जिंदगी से जुड़ी कहानी उन्हीं की जुबानी…

1. जब नकल न करने पर खुद को कहा बेवकूफ
हाईस्कूल के पहले ही वर्ष की परीक्षा के समय की एक घटना उल्लेखनीय हैं। शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर जाइल्स स्कूल में निरीक्षण करने आए थे। उन्होंने पहली कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के 5 शब्द लिखाए। उनमें एक शब्द ‘केटल’ था। मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे।
शिक्षक ने अपने बूट की नोक मारकर मुझे सावधान किया। लेकिन मैं क्यों सावधान होने लगा? मुझे यह ख्याल ही नहीं हो सका कि शिक्षक मुझे पास वाले लड़के की पट्टी देखकर हिज्जे सुधार लेने को कहते हैं। मैंने यह माना था कि शिक्षक तो यह देख रहे हैं कि हम एक-दूसरे की पट्टी में देखकर चोरी न करें। सब लड़कों के पांचों शब्द सही निकले और अकेला मैं बेवकूफ ठहरा। शिक्षक ने मुझे मेरी बेवकूफी बाद में समझाई, लेकिन मेरे मन पर कोई असर न हुआ। मैं दूसरे लड़कों की पट्टी में देखकर चोरी करना कभी न सीख सका।
इतने पर भी शिक्षक के प्रति मेरा विनय कभी कम न हुआ। बड़ों के दोष न देखने का गुण मुझ में स्वभाव से ही था। बाद में इन शिक्षक के दूसरे दोष भी मुझे मालूम हुए थे। फिर भी उनके प्रति मेरा आदर बना ही रहा। मैं यह जानता था कि बड़ों का आज्ञा का पालन करना चाहिए। वे जो कहें सो करना करे उसके काजी न बनना।

2. एक किताब ने बदल दी गांधीजी की जिंदगी
इसी समय के दो और प्रसंग मुझे हमेशा याद रहे हैं। साधारणतः पाठशाला की पुस्तकों छोड़कर और कुछ पढ़ने का मुझे शौक नहीं था। सबक याद करना चाहिए, उलाहना सहा नहीं जाता, शिक्षक को धोखा देना ठीक नहीं, इसलिए मैं पाठ याद करता था। लेकिन मन अलसा जाता, इससे अक्सर सबक कच्चा रह जाता। ऐसी हालत में दूसरी कोई चीज पढ़ने की इच्छा क्यों कर होती? किन्तु पिताजी की खरीदी हुई एक पुस्तक पर मेरी दृष्टि पड़ी। नाम था श्रवण-पितृभक्ति नाटक। मेरी इच्छा उसे पढ़ने की हुई और मैं उसे बड़े चाव के साथ पढ़ गया। उन्हीं दिनों शीशे मे चित्र दिखाने वाले भी घर-घर आते थे। उनके पास भी श्रवण का वह दृश्य भी देखा, जिसमें वह अपने माता-पिता को कांवर में बैठाकर यात्रा पर ले जाता हैं।
दोनों चीजों का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। मन में इच्छा होती कि मुझे भी श्रवण के समान बनना चाहिए। श्रवण की मृत्यु पर उसके माता-पिता का विलाप मुझे आज भी याद है। उस ललित छन्द को मैंने बाजे पर बजाना भी सीख लिया था। मुझे बाजा सीखने का शौक था और पिताजी ने एक बाजा दिया भी दिया था।

3. कैसे पड़ा राजा हरिश्चन्द्र का प्रभाव
इन्हीं दिनों कोई नाटक कंपनी आयी थी और उसका नाटक देखने की इजाजत मुझे मिली थी। उस नाटक को देखते हुए मैं थकता ही न था। हरिश्चन्द्र का आख्यान था। उसे बार-बार देखने की इच्छा होती थी। लेकिन यूं बार-बार जाने कौन देता? पर अपने मन में मैंने उस नाटक को सैकड़ों बार खेला होगा।
हरिश्चन्द्र की तरह सत्यवादी सब क्यों नहीं होते? यह धुन बनी रहती। हरिश्चन्द्र पर जैसी विपत्तियां पड़ी, वैसी विपत्तियों को भोगना और सत्य का पालन करना ही वास्तविक सत्य हैं। मैंने यह मान लिया था कि नाटक में जैसी लिखी हैं, वैसी विपत्तियां हरिश्चन्द्र पर पड़ी होगी। हरिश्चन्द्र के दुःख देखकर उसका स्मरण करके मैं खूब रोया हूं। आज मेरी बुद्धि समझती हैं कि हरिश्चन्द्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं था। फिर भी मेरे विचार में हरिश्चन्द्र और श्रवण आज भी जीवित हैं। मैं मानता हूं कि आज भी उन नाटकों को पढ़ूं तो आज भी मेरी आंखों से आंसू बह निकलेंगे।

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