FILM REVIEW: ‘जय गंगाजल’ फिल्म देखने से पहलेे पढ़ें रिव्यू

- Advertisement -

विशाल ठाकुर:

कुछ भी कहने से पहले कुछ सवाल? फिल्म ‘जय गंगाजल’ आप क्यों देखने जा रहे हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि यह साल 2013 में आयी अभिनेता अजय देवगन की सुपरहिट फिल्म ‘गंगाजल’ का सीक्वल है? क्या इसलिए कि 13 साल बाद आये इस सीक्वल में इस बार हीरो-हीरोइन दोनों ही प्रियंका चोपड़ा हैं, जिनके चर्चे आज हर जगह हैं? या फिर इसलिए कि इसके निर्देशक प्रकाश झा हैं और इस बार उन्होंने किसी फिल्म में एक बड़ा रोल भी अदा किया है?

इसमें कोई दो राय नहीं कि ये अंतिम ही इस फिल्म को देखने की प्रमुख वजह है, क्योंकि इसके अलावा फिल्म में दिखाई गयी चीजें-बातें, कहानी, ट्रीटमेंट वगैराह लगभग वही हैं, जिन्हें हम और आप इस तरह की मसाला फिल्मों में बरसों से देखते आये हैं। एमपी-यूपी या कहिये बिहार का कोई पिछड़ा-सा जिला, वहां के भ्रष्ट मंत्री, छुटभइय्ये नेता और विधायकों की गुंडादर्डी, इनसे त्रस्त प्रशासन, मीडिया की आपाधापी और इन्हें झेलता पुलिसिया तंत्र। खुद प्रकाश झा ऐसी फिल्में पहले भी बना चुके हैं। तो फिर क्या बात है कि उन्होंने फिर से ऐसे ही किसी विषय को चुना। क्या ‘मैरी कोम’ की सफलता के बाद वह प्रियंका चोपड़ा को एक तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी की भूमिका के जरिये उन्हें मसाला फिल्मों में एंट्री दिलाना चाहते थे या फिर वह खुद एक बड़ा और दमदार रोल करना चाहते थे। बताते हैं, लेकिन पहले जरा कहानी पर गौर करते हैं।

यह कहानी शुरू होती है एसपी आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) के बांकीपुर (मध्य प्रदेश का एक जिला) आगमन से। सचिवालय से उनका यहां तबादला हुआ है। उनसे पहले के एसपी ने स्थानीय विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) के चहेते डीएसपी भोलेनाथ सिंह उर्फ सर्कल बाबू (प्रकाश झा) को डंडा बजाने से हटा कर प्रशासनिक जिम्मेदारी सौंपने के बारे में सोचा ही कि उनका तबादला करवा दिया गया।

बबलू पांडे है तो विधायक, लेकिन उसकी दबंगई की गूंज पूरे लखीमपुर में गूंजती है। सर्कल बाबू उसके हर गलत काम पर पर्दा डालने में माहिर है। उसी की वजह से बबलू पांडे का भाई, डब्लू पांडे (निनाद कामत) और उसका प्यादा मुन्ना मर्दानी (मुरली शर्मा) जैसे लोग इलाके में बैखौफ घूमते हैं और मनमानी करते फिरते हैं। इन तमाम लोगों के काले कारनामे बस यूं ही चलते रहें, इसलिए मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल पार्टी नेता रमाकांत चौधरी (किरण कर्माकर) ने ही आभा का तबादला अपने जिले में करवाया है। ड्यूटी ज्वाइन करते ही आभा का खौफ इलाके में गुंडों में बैठने लगता है। उसे सिंह के कारनामों की भनक भी है, इसीलिए वह उसे कोई जिम्मेदारी वाला काम नहीं सौंपती।

जल्द ही वह बबलू पांडे की गर्दन तक भी पहुंच जाती है, लेकिन सिंह की चालाकी वह फिर बच जाता है। एक दिन एक बड़े जमीनी सौदे के चक्कर में डब्लू पांडे गांव की एक लड़की सुनिता (वेगा तमोतिया) से उलझ जाता है। डब्लू गांव के भोले भाले किसानों से उनकी जमीन जबरदस्ती हड़प कर किसी बड़ी कंपनी को बेचना चाहता है, जो खेती की जमीन पर एक पावर प्रोजेक्ट लगाना चाहती है। जमीन के सारे सौदे हो चुके हैं, लेकिन सुनीता अपनी जमीन किसी कीमत पर नहीं देना चाहती। डब्लू उसका अपहरण कर उसे मार देता है। उधर, सिंह डब्लू को जब रोकने में नाकाम रहता है तो वह उसे सबक सिखाने की ठान लेता है।
दरअसल, बबलू और डब्लू की खाकी वर्दी के प्रति बढ़ती बदतमीजी से सिंह बदल जाता है और ठान लेता है कि इन दोनों को एसपी के हवाले करके रहेगा, लेकिन ये सब इतना आसा नहीं होता, क्योंकि एक दिन जब डब्लू की मौत हो जाती है तो बबलू सुनीता के भाई के खून का प्यासा बन जाता है।
जाहिर इस कहानी से कोई अंदाजा लगा सकता है कि फिल्म किस तरह की होगी। अस्सी-नब्बे के दशक में ऐसी कहानियों के बल बनी फिल्मों से न जाने कितने अभिनेताओं ने अपनी किस्मत के तारे चमकाए हैं। लेकिन इन तमाम पुरानी बातों के बावजूद यह फिल्म बांधे रखती है। इंटरवल से पहले फिल्म में काफी तेजी है। घटनाक्रम पल पल बदलता है और आभा-सिंह के बीच की उठापटक से रोचक बनता जाता है। लेकिन ढाई घंटे से ज्यादा की यह फिल्म इंटरवल के बाद कई जगह ऊबाती भी है। इसकी लंबाई बेहतर संपादन के साथ कम से कम 20 मिनट कम भी की जा सकती थी। क्योंकि फिल्म की कहानी में कोई खास नई बात तो है नहीं, इसलिए ये बीस मिनट काफी खलते हैं।

फिल्म में भूमि अधिग्रहण से लेकर आईपीएस अफसरों पर बड़े अधिकारियों के दबाव और राजनेताओं का पुलिसिया कामकाज दखल तक काफी चीजों पर फोकस किया गया है, लेकिन ये तमाम बातें कुछ हिस्सों में ही अच्छी लगती हैं, ध्यान खींचती हैं। फिल्म का सारा दारोमदार बीएन सिंह और आभा माथुर के किरदार पर ही केन्द्रित है। इसमें भी बीएन सिंह के किरदार में प्रकाश झा बाजी मार ले गये हैं।

प्रकाश झा ने इस किरदार को कई जगहों पर बेहद सहजता से निभाया है। उनका ये कहना-‘किसी ने आपको गलती से मिसगाइड किया है मैडम सर…’ मुस्कुराने के लिए काफी है। और गुस्से में बोला गया यह संवाद- ‘वर्दी पर से हाथ हटा…’ उन्हें ‘बॉलीवुड हीरोज’ की कतार में खड़ा कर देता है। साठ पार कर चुके झा पर एक्शन सीन भी फबते हैं। डंडा चलाते या मुक्का मारते समय वह जब दांत भींचते हैं तो लगता है कि एक निर्देशक किसी हीरो को एक्शन का स्टाइल समझाते समय कितनी दिक्कत होती होगी। लेकिन जब वो खुद न सब कार्यों को करता है तो बेहद आसानी से कर सकता है। इसलिए झा को इस किरदार के लिए पूरे नंबर देने चाहिये।

दूसरी तरह प्रियंका चोपड़ा का किरदार उतना मुक्कमल और दमदार नहीं लगता, जितनी उम्मीद की जा रही थी। हालांकि उन्होंने कोशिश काफी की है। ग्लैमरस इमेज उन पर हावी रही है और जहां हावी नहीं रही, वहां उन पर प्रकाश झा हावी रहे हैं। इसलिए यह फिल्म प्रियंका चोपड़ा की न हो कर प्रकाश झा की हो गयी है। हालांकि एसपी के रूप में जब उनकी फिल्म में एंट्री होती है, तो वह काले रंग के पठानी सूट में गजब की लगी हैं। एक सीन में वह गुंडों पर डंडा लेकर टूट पड़ती हैं। कई जगह वह प्रभावी ढंग से अपने संवादों के जरिये असर भी जगाती है, लेकिन फिर यह फिल्म केवल प्रियंका चोपड़ा की नहीं लगती।
अगर आप मसाला फिल्मों के शौकीन हैं और देसी फामूले में डूबी फिल्म को आज भी पचा सकते हैं ‘जय गंगाजल’ आपको बोर नहीं करेगी। सर्कल बाबू की वजह से आप इसे दोबारा भी देखना चाहेंगे।

सितारे : प्रियंका चोपड़ा, प्रकाश झा, मानव कौल, राहुल भट्ट, किरण कर्माकर, मुरली शर्मा, निनाद कामत, वेगा तमोतिया,
निर्देशक-लेखक-पटकथा : प्रकाश झा
निर्माता : प्रकाश झा, मिलिंद दबके
संगीत : सलीम-सुलेमान
गीत : मनोज मुंतशिर, प्रकाश झा
रेटिंग : 3 स्टार

Related Articles

http://media4support.com/wp-content/uploads/2020/07/images-9.jpg
error: Content is protected !!