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कोरबा@M4S:केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध करते हुए देश की चार प्रमुख ट्रेड यूनियन ने औद्योगिक हड़ताल की घोषणा की है। इसे सफल बनाने संयुक्त तौर कार्य करने का निर्णय लिया है।कोरबा एरिया अंतर्गत ढेलवाडीह में यूनियन की एक बैठक हुई। इसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा किया गया। हड़ताल को सफल बनाने के लिए रणनीति तैयार की गई। बैठक में एटक कोरबा क्षेत्र के अध्यक्ष धरमा राव के अलावा दीपेश मिश्रा सहित अन्य पदाधिकारी शामिल हुए।
इंटक, एचएमएस, सीटू और एटक ने हड़ताल का आह्वान किया है। 16 फरवरी को यह हड़ताल होगी। इसमें कोयला, स्टील, सीमेंट, बैंक, बीमा, डाक, डिफेंस, रेलवे, एल्यूमिनियम और राज्य सरकारों के अधीन आने वाले औद्योगिकों में कार्यरत मजदूर शामिल होंगे। 16 फरवरी की औद्योगिक हड़ताल का निर्णय एक संयुक्त बैठक लिया गया। इसमें एटक, सीटू, इंटक और एचएमएस के पदाधिकारी वर्चअुल मीटिंग के जरिए आपस जुड़े। इसमें विभिन्न मसलों पर चर्चा की गई। सभी ट्रेड यूनियन ने केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध किया।कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के निजीकरण होने से नौकरियों की संख्या में कमी आई है। श्रम कानूनों में संशोधन से मजदूर कमजोर हुए हैं। श्रमिकों के वेतन बढ़ोत्तरी पर भी सरकार चुप है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए यूनियन ने हड़ताल का निर्णय लिया है।कोरबा जिले में इस हड़ताल का सबसे अधिक असर कोयला उद्योग पर पड़ने की संभावना की है। इसे देखते हुए कोल इंडिया की यूनियन ने तैयारी शुरू कर दी है।
इंटक, एचएमएस, सीटू और एटक ने हड़ताल का आह्वान किया है। 16 फरवरी को यह हड़ताल होगी। इसमें कोयला, स्टील, सीमेंट, बैंक, बीमा, डाक, डिफेंस, रेलवे, एल्यूमिनियम और राज्य सरकारों के अधीन आने वाले औद्योगिकों में कार्यरत मजदूर शामिल होंगे। 16 फरवरी की औद्योगिक हड़ताल का निर्णय एक संयुक्त बैठक लिया गया। इसमें एटक, सीटू, इंटक और एचएमएस के पदाधिकारी वर्चअुल मीटिंग के जरिए आपस जुड़े। इसमें विभिन्न मसलों पर चर्चा की गई। सभी ट्रेड यूनियन ने केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध किया।कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के निजीकरण होने से नौकरियों की संख्या में कमी आई है। श्रम कानूनों में संशोधन से मजदूर कमजोर हुए हैं। श्रमिकों के वेतन बढ़ोत्तरी पर भी सरकार चुप है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए यूनियन ने हड़ताल का निर्णय लिया है।कोरबा जिले में इस हड़ताल का सबसे अधिक असर कोयला उद्योग पर पड़ने की संभावना की है। इसे देखते हुए कोल इंडिया की यूनियन ने तैयारी शुरू कर दी है।