किसान सभा ने कहा कि आगे भी रोजगार के लिए लडेंगे और जितेंगे
जीएम ऑफिस के सामने फटाका फोड़कर मिठाइयां बांटी भू विस्थापितों ने
कोरबा@M4S:: जमीन के बदले रोजगार की मांग कर रहे भूविस्थापित किसानों के आंदोलन की जीत हुई है। एसईसीएल के बिलासपुर मुख्यालय ने वर्तमान नियमों को शिथिल करते हुए पुराने लंबित रोजगार प्रकरण मामले में दो लोगों को रोजगार देने के लिए एप्रुवल आदेश बिलासपुर मुख्यालय से जारी कर दी है जो कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय तक पंहुच गई हैं। जीत से उत्साहित आंदोलनकारियों ने अपने संघर्ष को और तेज करने का फैसला किया है और भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सभी विस्थापित परिवारों को रोजगार मिलने तक आंदोलन जारी रखने का निश्चय किया है। किसान सभा ने इसे भू विस्थापित किसानों के संघर्षों की बड़ी जीत बताते हुए कहा कि आने वाले दिनों में भी सभी भू विस्थापित खातेदारों के रोजगार के लिए संघर्ष तेज करते हुए आगे भी लड़ेंगे और जितेंगे।
उल्लेखनीय है कि कुसमुंडा कोयला खदान विस्तार के लिए 1978 से 2004 तक जरहा जेल, बरपाली, दुरपा, खम्हरिया, मनगांव, बरमपुर, दुल्लापुर, जटराज, सोनपुरी, बरकुटा, गेवरा, भैसमा आदि गांवों में बड़े पैमाने पर हजारों किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस समय एसईसीएल की नीति भूमि के बदले रोजगार देने की थी। लेकिन प्रभावित परिवारों को उसने रोजगार नहीं दिया। बाद में यह नीति बदलकर न्यूनतम दो एकड़ भूमि के अधिग्रहण पर एक रोजगार देने की बना दी गई। इससे अधिग्रहण से प्रभावित अधिकांश किसान रोजगार मिलने के हक़ से वंचित हो गए।
पिछले 291 दिनों से छत्तीसगढ़ किसान सभा के सहयोग से भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के बैनर पर भूविस्थापितों द्वारा ‘जमीन के बदले रोजगार’ के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है। आंदोलनकारी जमीन अधिग्रहण के समय की पूर्व नीति के अनुसार सभी प्रभावितों को रोजगार देने की माग कर रहे हैं और इस मांग पर जोर देने के लिए वे पांच बार कुसमुंडा खदान बंदी भी कर चुके हैं। खदान बंद करने के दौरान किसान सभा के नेता जवाहर सिंह कंवर, प्रशांत झा समेत 16 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया था। और 14 घंटे गेवरा महाप्रबंधक कार्यालय का महाघेराव और सीएमडी कार्यालय के अंदर भी धरने पर भू विस्थापित बैठ गए थे।
इस आंदोलन को बड़ी जीत मिली है। जरहाजेल के बलराम कश्यप और बरपाली गांव के बेदराम की जमीन का दो बार अधिग्रहण किया गया था, अधिग्रहण के 40 साल बाद भी रोजगार के लिए भटक रहे थे 10 महीने के संघर्ष के बाद रोजगार देने के लिए एसईसीएल के बिलासपुर मुख्यालय को आदेश जारी करने के लिए बाध्य होना पड़ा है। यह खबर मिलते ही धरनास्थल पर इस जीत की खुशी में मिठाईयां बांटी गई।
इस अवसर पर आयोजित सभा को छत्तीसगढ़ किसान सभा के जिला सचिव प्रशांत झा ने संबोधित करते हुए कहा कि किसान सभा का शुरू से मानना है कि जिनकी जमीन का एसईसीएल ने अधिग्रहण किया है, प्रत्येक खातेदार को स्थाई रोजगार मिलना चाहिए, क्योंकि किसानों के पास जीविका का एकमात्र साधन जमीन ही होता है। यह भू विस्थापितों के संघर्षों की जीत है कि एसईसीएल को इस जायज मांग को मानना पड़ा है। आंदोलन के दबाव में कम जमीन,डबल अर्जन और रैखिक संबंध के मामले में एसईसीएल को नियमों में बदलाव करना पड़ा है अब प्रबंधन के खिलाफ अर्जन के बाद जन्म के मामले में विस्थापितों के पक्ष में फैसला देने के लिए संघर्ष तेज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दमन के सहारे शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचला नहीं जा सकता है और जो अपने अधिकार के लिए लड़े है उन्हीं की जीत हुई हैं भू विस्थापितों की भी सभी मांगो में जीत मिलेगी।
एसईसीएल कुसमुंडा में दो लोगों को पुराने लंबित प्रकरणों में रोजगार के आदेश के बाद भू विस्थापित किसानों द्वारा चल रहे आंदोलन को नई ऊर्जा मिली है और अन्य सभी भू विस्थापितों में उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है।
रोजगार एकता संघ के सचिव दामोदर श्याम और उपाध्यक्ष रेशम यादव ने कहा कि इस जीत से मिले हौसले के बाद सभी भू विस्थापितों को रोजगार मिलने तक संघर्ष को और तेज किया जाएगा। धरना स्थल पहुंच कर बलराम कश्यप और बेदराम ने आंदोलन में सहयोग करने वाले सभी का आभार व्यक्त किया।
सभा मे प्रमुख रूप से जवाहर सिंह कंवर, दीपक,जय कौशिक,मोहन यादव,हरिहर पटेल,बृजमोहन, दीनानाथ,सनत कुमार, अश्वनी,मोहन कौशिक, हरिशंकर केवट, रघु,सुमेन्द्र सिंह, विजय, हेमलाल, गोरेलाल, पंकज, नरायन यादव, टकेश्वर, हरिराम, हेमंत, नागेश्वर, मानिक दास, उत्तम,समय,के साथ बड़ी संख्या में भू विस्थापितों ने संघर्ष को और तेज करने का संकल्प लिया।
बेदराम ने कहा कि एसईसीएल में 1988 में जमीन अधिग्रहण हुई थी अधिग्रहण के बाद से रोजगार के लिए भटक कर थक गए थे और रोजगार की उम्मीद समाप्त हो गई थी लेकिन इस बार छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेतृत्व में एकता बद्ध तरीके से रोजगार एकता संघ ने संघर्ष किया तब मेरे रोजगार के लिए आदेश जारी हुआ है इससे साबित होता है कि अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे तभी जीत मिलेगी।
बलराम कश्यप ने कहा कि 1983 में जमीन अधिग्रहण हुई तब से कई बार दफ्तरों का रोजगार के लिए चक्कर लगाया लेकिन रोजगार नहीं मिला रोजगार की उम्मीद समाप्त हो गई थी परिवार चलाने के लिए मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गया था। लेकिन किसान सभा के सही मार्गदर्शन में रोजगार के लिए कुसमुंडा में 291 दिनों के संघर्ष के बाद एसईसीएल ने रोजगार के लिए पात्र मानते हुए रोजगार के लिए अप्रूवल जारी किया है यह संघर्ष की जीत है।