दिल्ली(एजेंसी):छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा के लिए इन दिनों लगभग 34 गांवों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। यहां रथ खींचने का अधिकार केवल किलेपाल के माड़िया लोगों को ही है। रथ खींचने के लिए जाति का कोई बंधन नहीं है। हर गांव से परिवार के एक सदस्य को रथ खींचना ही पड़ता है। इसकी अवहेलना करने पर परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जुर्माना लगाया जाता है।
बस्तर दशहरा में किलेपाल परगना से दो से ढाई हजार ग्रामीण रथ खींचने पहुंचते हैं, इसके लिए पहले घर-घर से चावल नकदी तथा रथ खींचने के लिए सियाड़ी के पेड़ से बनी रस्सी एकत्रित की जाती थी। छत्तीसगढ़ के बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाला दशहरा पूरे विश्व में विख्यात है। इसमें शामिल होने बड़ी संख्या में विदेशों पर्यटक भी पहुंचते हैं।
75 दिनों तक क्यों मनाया जाता है दशहरा?
बस्तर दशहरा की ख्याति सबसे लंबे समय तक चलने वाले दशहरा के लिए तो है ही, साथ ही यह एक अनूठा पर्व है, जिसमें रावण का वध नहीं किया जाता। 13 दिनों तक बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी सहित अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। 75 दिनों तक चलने वाले दशहरा की तैयारियां तीन महीने पहले से ही शुरू हो जाती है।
माना जाता है कि यहां का दशहरा 500 वर्षों से अधिक समय से परंपरानुसार मनाया जा रहा है। 75 दिनों की इस लंबी अवधि में प्रमुख रूप से काछनगादी, पाट जात्रा, जोगी बिठाई, मावली जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी तथा मुरिया दरबार मुख्य रस्में होती हैं।
कैसे तैयार होता है रथ?
बस्तरा दशहरा का आकर्षण होता है यहां लकड़ी से निर्मित होना वाला विशाल दुमंजिला रथ। बताया जाता है कि बिना किसी आधुनिक तकनीक या औजारों की सहायता से एक समयावधि में आदिवासी उक्त रथ का निर्माण करते हैं। फिर रथ को आकर्षण ढंग से सजाया जाता है। रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र सवार होता है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब तक राजशाही जिंदा थी, राजा स्वयं सवार होते थे।
बस्तर दशहरे के लिए निर्माण किया गया फूल रथ, चार चक्कों का तथा विजय रथ आठ चक्कों का बनाया जाता है। स्थानीय सिरहासार भवन में ग्राम बिरिंगपाल से लाई गई साल की टहनियों को गड्ढे में पूजा विधान के साथ गाड़ने की प्रक्रिया को डेरी गड़ाई कहा जाता है।