जबसे मिला माइक और चोंगा, गले फाड़कर नही चिल्लाता गंगा

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साइकिल और टार्च से आसान हुआ कोटवारों का काम 
कोरबा@M4S:गांव के इस गली से उस गली तक,इस पारे से उस पारे तक,इस छोर से उस छोर तक, हर चौराहे पर,किसी के घर के दरवाजे खुले हो या फिर बंद हो,दिन हो या रात हो,गर्मी हो या बरसात हो,कोई बात नही,फर्क नही पड़ता। चौबीस घंटे चौकन्ना रहने वाले कोटवारों को जैसे ही केई काम मिलता है,अपनी जिम्मेदारी और फर्ज मानकर वे काम में डट जाते है। किसी महत्वपूर्ण सूचनाओं का गांव में मुनादी करने के साथ ही संदेशों के आदान प्रदान में कोटवारों की महत्वपूर्ण  भूमिका होती है। कुछ ऐसी ही महत्वपूर्ण भूमिका गांगराम चौहान को भी मिली हुई है। लगभग 60 साल के गंगाराम की तीन पीढ़ी गांव में कोटवारी का काम करते आ रही है। वह एक दौर था जब कोटवारों को कई चुनौतियों को सामना करना पड़ता था। पैदल ही गांव के इस पारे से उस पारे जाने कई गंलिया नापनी पड़ती थी। रात के अंधेरों में चलना पडता था। गले फाड़-फाड़ कर मुनादी करनी पड़ती थी। इतनी तकलीफों और मेहनत के बाद भी जो पारिश्रमिक मिलती थी वह भी बहुत कम थी। प्रदेश के कोटवारों की इस हालात की जानकारी मिलते ही राज्य के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बड़ा फैसला लिया। मानेदय बढ़ाने के साथ ही साइकिल दी गई। अंधेरे को दूर करने टार्च दिये  और मुनादी को आसान बनाने माइक और चोंगा देकर कोटवारों को गला फाड़कर चिल्लाने से मुक्ति दिला दी।
पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड के अंतर्गत वनों और पहाड़ों से घिरे ग्राम पुटूंवा में गंगाराम चौहान विगत 30 साल से कोटवारी का काम करता आ रहा है। 11 पारा में बटे गांव का जिम्मा सम्हाल रहे गंगाराम ने बताया कि उसके तीन पूर्वजों ने इसी गांव में कोटवारी की। उस दौरान बहुत समास्याओं का सामना करना पड़ा। बहुत कम मेहताना दिया जाता था इससे परिवार का गुजर बसर भी ठीक से नही हो पाता था। पैदल ही एक गांव से दूसरे गांव तक जाना पड़ता था। उसके पास साइकिल तक नही थी। रात के अंधेरे में मुनादी के लिये आना जाना पड़ता था। गांगराम ने बताया कि सबसे ज्यादा परेशानी मुनादी के समय ग्रामीणों को महत्वपूर्ण सूचना देने में होती थी। जोर जोर से चिल्लाकर बोलने से कई बार गला बैठ जाता था। कोटवार संघ का अध्यक्ष होने की जानकारी देते हुये कोटवार गंगाराम ने बताया कि पहले की और अब की स्थिति में बहुत अंतर है। शासन द्वारा मानदेय बढ़ाने के साथ उनकी सुविधाओं में भी इजाफा किया। साइकिल,टार्च देने के साथ माइक और चोंगा भी दिया गया है। इससे उसकी स्थिति तो सुधरी ही है,साइकल और टार्च दिये जाने से गांव में एक पारा से दूसरे पारा तक जाना और रात के अंधेरे में काम करना भी आसान हुआ। माइक और चोंगा की वजह से जोर जोर से चिल्लाना भी नही पड़ता। गंगाराम ने यह भी बताया कि उसे जंगल के रास्ते होकर दूसरे गांव भी जाना पड़ता है। इस दौरान शासन से मिली साइकिल,टार्च और माइक एवं चोंगा से काम करने में काफी सहूलियत होने लगी है।

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