नई दिल्ली(एजेंसी):भारतीय वैज्ञानिकों का भी मानना है कि वायु प्रदूषण का कोरोना की उच्च मृत्यु दर से सीधा संबंध है। हवा में प्रति घन मीटर एक माइक्रोग्राम पीएम कणों की बढ़ोतरी से कोरोना से मृत्यु का खतरा आठ फीसदी तक अधिक हो जाता है। क्लाईमेट ट्रेंड द्वारा आयोजित एक वेबिनार में गुरुवार को विशेषज्ञों ने हार्वड यूनिवर्सिटी और इटली में हुए शोधों से सहमति जताई। लंग केयर फाउंडेशन के डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि विश्व के तमाम देशों में इस प्रकार के शोध हुए हैं। इटली में हुए ताजा शोध के मुताबिक पीएम 2.5 में हर एक माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि के साथ कोविड 19 से मृत्यु का खतरा आठ फीसदी तक बढ़ सकता है।
कुमार ने कहा कि इस बीच राहत की बात यह है कि तालाबंदी से हवा साफ है इसलिए फेफड़ों से जूझते मरीजों का थोड़ी राहत मिली है। लेकिन जैसे ही यह खतरा बढ़ेगा, मरीजों की स्थिति फिर बिगड़ सकती है।
इस मौके पर आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डा. एस एन त्रिपाठी ने बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की। उन्होंने दिल्ली की हवा पर केंद्रित पांच रिसर्च पेपर्स की मदद से इस बात को साबित किया कि किस प्रकार वायु प्रदूषण एक बड़ी जन स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। इसलिए प्रदूषण को नियंत्रित करने की नीतियां प्रशासनिक नहीं वैज्ञानिक होनी चाहिए।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि कहा कि आईआईटी कानपुर के शोध में वाहनों से लेकर निर्माण कार्य तक से होने वाले प्रदूषण के गहन आंकड़े हैं, उनका इस्तेमाल नीति निर्माण में होना चाहिए।
इंडिया क्लाईमेट कोलोब्रैटिव की श्लोका नाथ ने प्रदूषण डेटा की कमी को उजागर करते हुए कहा कि देश में वायु प्रदूषण के डेटा की कमी को दूर करने के लिए 4000 मोनिटरिंग स्टेशन चाहिए। इसको पूरा करने में 10000 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। लेकिन इस दिशा में अपेक्षित कार्य नहीं हो रहा है।