- Advertisement -
कोरबा@M4S:‘‘अपनी मां को देखकर मुझे गर्व होता है कि उन्होंने बड़ी ही बहादुरी से जीवन के संघर्षों का सामना किया है। पापा स्व. भोला सिंह राजपूत की कमी कोई भी पूरी नहीं कर सकता पर मां ने कभी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी।’’ यह सब बताते हुए बी.एससी. प्रीवियस की छात्रा माधुरी राजपूत का गला रूंध जाता है। आंखे डबडबा उठती हैं।
बालको के 1200 मेगावॉट विद्युत संयंत्र की चिमनी हादसे मंे दिवंगत स्व. भोला सिंह राजपूत की बेटी माधुरी कहती हैं – ‘‘ मेरी मां रामकली ने हम तीन बच्चों को बड़ी मेहनत से पाला है। पापा के नहीं रहने पर मां को बालको संयंत्र में रोजगार मिला। पापा के रहते चूंकि मेरी मां ने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी, काम नहीं किया, इसलिए जब वह थककर कारखाने से लौटती हैं तो कभी-कभी नौकरी छोड़ देने की बात भी कहती हैं। पर हम सब बच्चे उन्हें मिलकर कहते हैं कि बालको में आपको हमारे लिए अभी और काम करना है। हम बच्चे आज जो कुछ कर पा रहे हैं वह बालको में अपनी मां के रोजगार की बदौलत ही कर पा रहे हैं। ’’
पास ही बैठी स्व. भोला सिंह की विधवा रामकली राजपूत अपनी बेटी माधुरी की बात आगे बढ़ाते हुए बताती हैं -‘‘ हादसे ने हमारे परिवार को तोड़कर रख दिया। मुआवजे के तौर पर हमें लगभग 15 लाख रुपए मिले। थोड़े पैसे से घर बनाया। उसी पैसे से बड़ी बेटी अर्चना राजपूत का ब्याह किया। वह बड़े अच्छे घर में गई है। बाकी के पैसे मैंने बैंक में रखे हैं। अभी मझली बेटी माधुरी के हाथ पीले करने हैं। बस एक साल और फिर पढ़ाई खत्म होते ही उसकी भी विदाई कर दूंगी।’’
रामकली कहती हैं – ‘‘ बालको की एक ठेका कंपनी अभिनव कंस्ट्रक्शन में मेरी नौकरी का यह चौथा साल है। मुझे आज भी वह दिन याद है जब मुझे बालको में नौकरी के लिए बुलावा आया। मैंने सिर्फ कक्षा छठवीं तक पढ़ाई की है। शायद यही वजह है कि मैं दूसरों के सामने अपनी बात ठीक तरह से नहीं कह पाती थी। विभिन्न कागजी प्रक्रियाओं के बाद जब मैं बालको के गेट पर अपना एंट्री पास बनवाने पहुंची तो मेरे आंसू ही निकल पड़े। मन में काफी दुविधा थी। यह भी ख्याल आता कि कम पढ़ाई के कारण क्या पता मैं ठीक से काम कर भी पाउंगी या नहीं। पर बालको के अधिकारियों ने मुझे ढांढस बंधाया। उन्होंने प्रोत्साहित किया कि अपने बच्चांे के उज्ज्वल भविष्य के लिए मुझे बालको में काम करना ही चाहिए।’’
‘‘ इतने वर्षों में मुझे अपने कार्यस्थल पर कभी भी मेरे सहकर्मियों ने हीनभावना का बोध नहीं होने दिया। मेरे मन में असुरक्षा की भावना नहीं आई। सभी मुझसे बड़े ही आदर से पेश आते हैं। यहां तक कि मेरे अधिकारियों ने कभी भी मेरे साथ ऊंचे आवाज में बात नहीं की। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने काम से सबका दिल जीता है। इस बात का भी संतोष है कि बालको में नौकरी करते हुए मैं अपने वृद्ध सास-ससुर के साथ ही परिवार के दूसरे जरूरतमंदों की मदद कर पाती हूं। ’’ यह सब बताते हुए रामकली का सिर फख्र से ऊंचा हो जाता है।
रामकली के सबसे छोटे पुत्र मनोज राजपूत अभी कक्षा ग्यारहवीं के छात्र हैं। कॉमर्स विषय लेकर बालकोनगर के ही पुष्पराज बाल सदन स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। भविष्य में वह अपना खुद का व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं। वह कहते हैं – ‘‘ हमारी सब जरूरतें मां की नौकरी से ही पूरी हो रही हैं। ’’
अभिनव कंस्ट्रक्शन के मैकेनिकल इंचार्ज श्री प्रकाश महतो बताते हैं – ‘‘ आज तक मुझे रामकली के काम या उनके व्यवहार को लेकर किसी ने कभी कोई शिकायत नहीं की। ऑफिस के सब लोग उन्हें आंटी कहकर पुकारते हैं। बेहतरीन काम की वजह से रामकली को दो बार ‘बेस्ट एम्प्लाई ऑफ द मंथ’ का पुरस्कार मिल चुका है। ’’ रामकली के एक और सहकर्मी अभिनव कंस्ट्रक्शन के सहायक प्रबंधक एवं छत्तीसगढ़ श्रमिक एकता संघ के श्री पवन शर्मा रामकली के व्यवहार की तारीफ करते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों में रामकली ने बैक ऑफिस का काम बखूबी निभाया है। सभी सहकर्मी उनकी कद्र करते हैं।