कोरबा@M4S:प्रदेश के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री जयसिंह अग्रवाल, कोरबा लालघाट क्षेत्र में गत दिवस संध्या समय सामूहिक रूप से आयोजित भोजली विसर्जन के कार्यक्रम में शामिल हए और विसर्जन के लिए ले जायी जा रही जवांरा को प्रणाम कर उत्तम फसल उत्पादन की कामना किया। इस अवसर पर देवी स्तुति स्वरूप भोजली गीतों का आनंद भी उठाया। हमारे छत्तीसगढ़ में भोजली अथवा जवांरा तैयार करना और रक्षाबंधन के दूसरे दिन अच्छी फसल की कामना के साथ विसर्जित किया जाना प्रमुख परंपराओं में से एक है। प्रमुख रूप से यह कृषक परिवारों द्वारा मनाया जानेवाला पर्व है। भोजली विसर्जन के इस कार्यक्रम में कोरबा जिला कांग्रेस ग्रामीण अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रताप जायसवाल के साथ बड़ी संख्या में स्थानीय कार्यकर्ता और भोजली विसर्जन में शामिल महिलाएं थीं।
भोजली आयोजन की परंपरा और महत्व – भारत के अनेक प्रांतों में सावन महीने की सप्तमी को छोटी-छोटी टोकरियों में मिट्टी डालकर उनमें अन्न के दाने बोए जाते हैं। ये दाने धान, गेहूँ, जौ के हो सकते हैं। अलग-अलग प्रदेशों में इन्हें फुलरिया, धुधिया, धैंगा और जवारा (मालवा) या भोजली भी कहते हैं। तीज या रक्षाबंधन के अवसर पर फसल की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में इन्हें छोटी टोकरी या गमले में उगाया जाता हैं। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं उसे घर के किसी पवित्र स्थान पर छायादार जगह में स्थापित किया जाता है। उनमें रोज़ पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है। दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं जिस प्रकार देवी के सम्मान में देवी-गीतों को गाकर जवांरा गीत गाया जाता है वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाये जाते हैं। सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ की शान हैं। खेतों में इस समय धान की बुआई व प्रारंभिक निराई गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्माक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं।
सावन की पूर्णिमा तक इनमें 4 से 6 इंच तक के पौधे निकल आते हैं। रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और धान के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते हैं या उसके कान में लगाए जाते हैं। भोजली के पौधें को एक दूसरे के कान में लगाने की परंपरा को मित्र बनाना कहा जता है और इस तरह से की गई मित्रता को आजीवन निभाने की परंपरा भी है। भोजली नई फ़सल की प्रतीक होती है। और इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन तालाबों अथवा नदियों में भेजली का विसर्जन करते हुए अच्छी फसल की कामना की जाती है।