कोरबा@M4S: व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए विभिन्न धर्मों में अलग-अलग तरह की परंपरा है और हर परिवार इसका अनुसरण करता है। फिर भी चिकित्सा जगत के अनुसंधान के लिए पार्थिव देह की आवश्यकता के मद्देनजर लोगों की मानसिकता धीरे-धीरे बदल रही है। इसी वर्ष प्रारंभ हुए कोरबा के मेडिकल कॉलेज के लिए कॉलेज के एक प्राध्यापक ने मरणोपरांत देहदान की घोषणा की है।
इससे पहले भी देहदान को लेकर कुछ लोग सामने आए और अनुसंधान संबंधी कार्यों के लिए अपना संकल्प पत्र प्रस्तुत किया। आयुर्विज्ञान संस्थान अधिकारियों के समक्ष इस औपचारिकता की पूर्ति की गई। डीन डॉ अविनाश मेश्राम ने बताया कि कॉलेज में अध्यापन कराने वाले प्राध्यापक ने देहदान की घोषणा की है। निश्चित रूप से उन्होंने बड़ा संकल्प लिया है। वैसे भी यह कार्य काफी महत्वपूर्ण माना गया है।इससे पहले मेडिकल कॉलेज के छात्रों के अध्ययन के लिए 2 देह मिल चुकी है और इतनी ही जल्द उपलब्ध होंगी।देहदान को लेकर चिकित्सा विज्ञान भले ही अलग तर्क देता है लेकिन समाज का दृष्टिकोण इस विषय पर बहुत अलग है। सामाजिक व्यवस्था के साथ चलने वाला वर्ग यही सोचता है कि परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु होने पर विधि विधान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया जाए ताकि उसकी सदगति हो सके। माना जाता है कि अगर इस तरह का काम नहीं किया जाएगा तो कई प्रकार की परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। तमाम तरह की आलोचनाओं के बावजूद धीरे-धीरे समाज में जागरूकता आ रही है और लोग देहदान के लिये आगे आ रहे है। इन्हीं के जरिए भविष्य के डॉक्टर तैयार होंगे।