नई दिल्ली(एजेंसी):दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अरविंद केजरीवाल सरकार ने बुधवार को कहा कि कोरोना वायरस के रोगियों के लिए शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों में लगभग 78 प्रतिशत बिस्तर खाली हैं। राज्य के स्वास्थ्य विभाग की बुलेटिन के अनुसार दिल्ली के अस्पतालों में कोविड-19 के रोगियों के लिए कुल 15475 बिस्तर हैं, जिनमें से केवल 3342 पर ही रोगी हैं। इससे संकेत मिलता है कि लगभग 78.40 प्रतिशत बिस्तर खाली हैं।
दिल्ली में बुधवार को 1227 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद संक्रमितों की कुल संख्या 1.26 लाख से अधिक हो गई है। इसके अलावा 29 रोगियों की मौत के साथ ही मृतकों की तादाद 3719 तक पहुंच गई है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। सोमवार को एक दिन में सामने आए संक्रमण के मामलों की संख्या गिरकर 954 रह गई थी, जो उसके अगले दिन यानि मंगलवार को बढ़कर 1349 हो गई।
दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के बुधवार के एक बुलेटिन के अनुसार राजधानी में बीते 24 घंटे में 29 रोगियों की मौत हुई है। दिल्ली में 11 से 19 जुलाई के दरम्यान रोजाना संक्रमण के 1000 से 2000 के बीच मामले सामने आए हैं। 19 जुलाई को 1,211 मामले सामने आए हैं। राजधानी में बुधवार को उपचाराधीन रोगियों की संख्या 14954 पर आ गई, जो मंगलवार को 15288 थी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
दूसरी ओर राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 के मामलों में धीरे-धीरे आ रही कमी के कारणों पर विशेषज्ञों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हुए हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल्ली में जांच क्षमता में वृद्धि ने कोरोना वायरस के प्रसार की कड़ी तोड़ने में मदद की है तो कुछ अन्य का कहना है कि मामलों में कमी का कारण रैपिड एंटीजन जांच पर ध्यान केंद्रित करना भी हो सकता है। स्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटरग्रेटिव बॉयलॉजी (आईजीआईबी) के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने कहा कि जांच संक्रमित लोगों की पहचान करने और उन्हें पृथक-वास में रखने में मदद करती है जिससे वायरस संक्रमण के प्रसार की कड़ी टूटती है।
23 फीसदी लोग कोरोना प्रभावित
एक सीरो-प्रीवलेंस अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली में सर्वेक्षण में शामिल किये गए लोगों में से करीब 23 प्रतिशत कोविड-19 से प्रभावित हुए हैं। सरकार ने यह जानकारी मंगलवार को दी। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के निदेशक डॉ. सुजीत कुमार ने कहा कि शेष 77 प्रतिशत लोगों के लिए अब भी विषाणुजनित बीमारी का जोखिम है और रोकथाम के उपाय समान कठोरता के साथ जारी रहने चाहिए। सीरो-सर्वेक्षण अध्ययनों में लोगों के ब्लड सीरम की जांच करके किसी आबादी या समुदाय में ऐसे लोगों की पहचान की जाती है, जिनमें किसी संक्रामक रोग के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित हो जाती हैं।