कोरबा@M4S:खाने के तेल के सभी प्रचलित और रोजाना उपयोग में आने वाले ब्रांड के दाम में कमी आई है। प्रति लीटर 5 से 7 रुपए तक दाम घट गए हैं। इसके बावजूद लोगों को किराना दुकानदार ज्यादा कीमत पर बेच रहे हैं। इतना ही नहीं खाने के तेल से बनने वाली सामग्रियों के दाम भी लोगों ने नहीं घटाए।जिन लोगों ने तेल के दाम बढऩे की बात कहते हुए 5 रुपए का समोसा 8 और कहीं-कहीं 10 रुपए कर दिया था, वे अभी भी इसी कीमत पर बेच रहे हैं। लोग नाश्ता करने के बाद रुपए देने में आना-कानी न करे इसलिए पोस्टर तक चिपका दिया गया। ऐसे में लोगों के पास और कोई विकल्प नहीं है।
मई में खाने के तेल के दाम थोक में ही ज्यादा थे। वहीं प्रिंट रेट भी पैकेट में अधिक थे। इसका फायदा उठाते हुए किनारा दुकान संचालक मनमानी कीमत पर लोगों को तेल बेच रहे थे। इसमें कंपनी की ओर से ही एमआरपी का खेल खेला जा रहा था। जैसे किंग्स सोयाबीन तेल की एमआरपी 210 रुपए थी। थोक विक्रेता इसे 160 रुपए पैकेट में बेच रहे थे जबकि चिल्हर दुकानदार अपने ग्राहकों से इस पैकेट के 170 से 180 रुपए तक वसूल रहे थे। इस पर वे यह भी कह रहे थे कि वे एमआरपी से कम में दे रहे हैं। दरअसल कंपनियों से ही एमआरपी 50 रुपए ज्यादा प्रिंट होकर आ रही थी।
इसका फायदा दुकानदार उठा रहे हैं। किंग्स ऑयल ने प्रिंट रेट 30 रुपए तक घटाए। इसके अलावा तेल के दाम भी घटे। चाहे किंग्स सोयाबीन ऑयल हो, फार्च्यून प्लस हो या फिर महाकोष, सभी तेल के दाम में मामूली कमी आई है। 160 रुपए पैकेट वाला किंग्स सोयाबीन ऑयल 154 से 155 रुपए में थोक में मिल रहा है। महाकोष तेल भी 155 रुपए में मिल रहा है। फार्च्यून के दाम 6 रुपए प्रति लीटर घट चुका है। पहले यह 175 रुपए था। कई होटलों में पम्फलेट चिपकाया गया है कि तेल की कीमत में अत्यधिक वृद्धि होने से समोसा बड़ा इत्यादि सामान 10 रुपए प्रति नग हो गया है। अब तेल के दाम घट गए हैं, लेकिन न तो पम्फलेट हटाया गया है और न ही दाम घटाए गए हैं। इधर किराना दुकान संचालक लोकल मिक्चर को अभी भी पुराने दाम पर बेच रहे हैं। जैसे गंगा-जमुना मिक्चर तेल के दाम बढऩे के पहले 110- से 120 रुपए में मिल रहा था जिसे अभी भी 145 और कहीं-कहीं 150 रुपए पैकेट में बेचा जा रहा है। इसी तरह तेल से बनी हुई बाकी चीजों का भी है। तेल के दाम बढऩे से कीमतें बढ़ाई गई पर दाम घटने से कीमतें घटाई नहीं गई।
मुनाफाखोरी पर कार्रवाई जीरो
अधिकारियों को दुकानदारों के खिलाफ कार्रवाई की फुर्सत नहीं है। यहीं वजह है कि दुकानदारों के हौसले बुलंद है। वे मनमानी कर रहे हैं। खासतौर पर शहर के आउटर और ग्रामीण इलाकों में तेल के दाम ज्यादा वसूल किए जा रहे हैं। तेल में सबसे ज्यादा मुनाफाखोरी की जा रही है। ग्रामीण इलाकों में कइयों को तो तेल के दाम कम होने का पता भी नहीं है। इस बात का फायदा दुकानदार उठा रहे हैं। ग्रामीणों को यह भी नहीं पता कि वे शिकायत किससे करें। इधर शहर के आउटर या फिर झुग्गी वाले इलाके में दुकानदार ज्यादा मनमानी कर रहे हैं। भले ही कंपनियों ने दाम कम कर दिए हो पर वे अपनी कीमत पर तेल बेच रहे हैं।