जन्मदिन विशेष: जानें देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बारे में 10 खास बातें

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नई दिल्ली@एजेंसी:आज महान शिक्षाविद्, कुशल प्रशासक और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन है। राजेन्द्र बाबू का जन्म बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गांव जीरादेई में 3 दिसम्बर, 1884 को हुआ था। डॉ राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962 तक राष्ट्रपति पद पर रहे। आजादी में लड़ाई मे शामिल होने से पहले वह बिहार के शीर्ष वकीलों में से एक थे। यहां जानें से उनसे जुड़ी 10 खास बातें-
1. राजेंद्र प्रसाद को हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बंगाली और फारसी भाषा का पूरा ज्ञान था। कलकत्ता यूनिवर्सिटी के एंट्रेंस एग्जाम में उन्होंने पहला स्थान हासिल किया। इसके लिए उन्हें 30 रुपये प्रति माह की स्कॉलरशिप मिली थी। साल 1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री विशिष्टता के साथ हासिल की और इसके लिए उन्हें स्वर्ण पदक मिला था। कानून में ही उन्होंने डाक्टरेट भी किया।
2. महज 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हुआ।
3. कानून की पढ़ाई करके वकील बने राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार प्रदेश के एक बड़े नेता के रूप में उभरे।
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4. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित राजेंद्र प्रसाद ने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ और 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया था। असहयोग आंदोलन के दौरान भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी।
5. राजेंद्र प्रसाद पढ़ाई लिखाई में काफी अच्छे थे, उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था। उनकी एग्जाम शीट को देखकर एक एग्जामिनर ने कहा था कि ‘The Examinee is better than Examiner’
6. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष भी रहे।
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7. पंडित नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनने के बाद उन्हें खाद्य एवं कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दी गई थी। 17 नवंबर 1947 को जेबी कृपलानी के इस्तीफे के बाद वह तीसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
8. आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने। साल 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए।
9. 1962 में राजेन्द्र बाबू को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
10. 1962 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। छुट्टी के बाद ही उनकी पत्नी राजवंशी देवी का निधन हो गया। राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन के आखिरी समय में पटना के पास सदाकत आश्रम को चुना। 28 फरवरी 1963 को उनका देहांत हो गया।

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