कोरबा @M4S: पावर सिटी कोरबा में बिजली उत्पादन के लिए प्रतिदिन कई लाख टन कोयला की खपत हो रही है । जिससे बड़ी मात्रा में राख का उत्सर्जन हो रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राख के सुरक्षित और शत-प्रतिशत यूटिलाइजेशन के निर्देश दिए हैं ,लेकिन कोरबा में इस निर्देश की धज्जियां उड़ाई जा रही है। यहां वहां डंप की जाने वाली राख को देखकर लगता है कि बिजली घर प्रबंधन और ठेका कम्पनियों को किसी भी तरह की कार्रवाई का डर ही नहीं है।
कोरबा जिले में जहां भी नजर दौड़ाई जाए वही आपको बिजली घर की राख बड़ी मात्रा में दिख ही जाएगी । ज्यादा बिजली उत्पादन क्षमता वाले पावर प्लांट कोरबा जिले में लगभग हर दिशा में मौजूद है । यहां पर बिजली पैदा करने के लिए हर दिन लाखों टन कोयला का उपयोग हो रहा है और इसके विरुद्ध बड़ी मात्रा में राख का उत्सर्जन भी हो रहा है । समस्या यह है कि राख का क्या करें, इसलिए फ्लाई एश डाइक बनाए गए हैं और सीमेंट फैक्ट्रियों के अलावा दूसरे निर्माण कार्यों के लिए राख उपलब्ध कराई जा रही है। इसके बावजूद यहां वहां राख के ढेर लगे हुए हैं, जो लोगों के लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं। जानकार बताते हैं कि राख डंप करने के मामले में एनजीटी और भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी किया है ,लेकिन इसका पालन कोरबा जिले में नहीं हो रहा है।बताया जा रहा है कि लो लाइन एरिया का मतलब प्राकृतिक गड्ढों में ही राख डंप किए जाने का नियम है लेकिन इस नियम को ठेंगा दिखाते हुए कहीं भी इस काम को किया जा रहा है। बीते वर्षो में हुए सर्वे के दौरान कोरबा को देश का पांचवा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर माना गया इसलिए यहां पर नए पावर प्लांट की स्थापना में दिक्कतें आई। इसके बाद से कई प्रकार के सुधार संबंधी काम कराए जा रहे हैं।कोरबा जिले में बिजली घरों की राख के भंडारण और हवा का झोंका चलने पर राख के उडऩे की समस्या लोगों के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है। लंबे समय से शहर और ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इस समस्या से दो-चार होते रहे हैं। समय-समय पर होने वाले प्रदर्शन और सरकार के स्तर से जारी दिशा निर्देश का समस्या के नियंत्रण पर कोई खास असर नहीं हो सका है।
खुले में राख पाटकर उड़ा रहे नियमों की धज्जियां संयंत्र प्रबंधनों और ठेका कम्पनियों को नहीं कार्रवाई का डर
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