बिलासपुर/कोरबा@M4S:आज अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर में भर्ती एक मरीज के लिए और कोरबा जिला की एकमात्र महिला बॉम्बे ब्लड ग्रुप की महिला रक्तदाता सरिता सिंह ने रक्तदान किया। सरिता सिंह ने आज से तीन साल पहले इसी मरीज के लिये पहली बार रक्तदान किया था और आज पुन: ऑपरेशन हेतु ब्लड की आवश्यकता होने पर छत्तीसगढ़ ब्लड डोनर फाउंडेशन के सतीश सिंह, विवेक साहू और अमितेश गर्ग के कहने पर रक्तदान किया। सरिता सिंह का ब्लड ग्रुप बहुत ही रेयर ब्लड ग्रुप बॉम्ब ब्लड ग्रुप है।
फाउंडेशन के सदस्यों ने इस रक्तदान के लिये सरिता सिंह जी को उनके तीसरे रक्तदान के लिये बधाई दी और उनके उज्ज्वल भविष्य की बधाई दी। इस दौरान सतिश सिंह, अमितेश गर्ग, शानू साहू, विकास जायसवाल, राज अडतीय, प्रेम ने उन्हें बधाई दी।
फाउंडेशन के सतीश ने बताया कि सरिता ने इसी पहले 2 बार रक्तदान किया था जिसमें उसने पहली बार अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर में और एक बार जगदलपुर में भर्ती मरीज के लिये कोरबा में रक्तदान किया था।
फाउंडेशन के विवेक ने बताया कि इससे पहले भी उनके टीम के द्वारा अलग अलग मरिजो के लिये रेयर बॉम्बे ब्लड ग्रुप डोनेशन कराया जा चुका है। इसी कड़ी में यह भी रक्तदान कराया गया है।
लाखो लोगों में से किसी एक में पाया जाता है और उसका नाम बॉम्बे ब्लड ग्रुप है। इस रक्त समूह को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट रक्त समूह भी कहते है।
यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड टाइप विश्व में सिर्फ 0.0004 फीसदीलोगों में ही पाया जाता है. भारत में 10,000 लोगों में केवल एक व्यक्ति का ब्लड बॉम्बे ब्लड टाइप होगा. इसे Hh ब्लड टाइप भी कहते है या फिर रेयर ABO ग्रुप ब्लड. डॉक्टर वाई एम भेंडे ने 1952 में इसकी सबसे पहले खोज की थी. इसको बॉम्बे ब्लड इसलिए कहा जाता है क्योंकि सबसे पहले यह बॉम्बे के कुछ लोगों में पाया गया था. इस ब्लड टाइप के भीतर पाई जाने वाली फेनोटाइप रिएक्शन के बाद यह पता चला की इसमें एक H एंटीजेन होता है. इससे पहले इसे कभी नहीं देखा गया था. अधिक समझने के लिए इनकी लाल कोशिकाओं (RBC) में एबीएच एंटीजन होते हैं और उनकी सीरा में एंटी-ए, एंटी-बी और एंटी-एच होते है. एंटी-एच को ABO समूह में नहीं खोजा गया है, लेकिन प्रीट्रांसफ्यूज़न टेस्ट में इसके बारे में पता चला है. यही H एंटीजन ABO ब्लड समूह में बिल्डिंग ब्लॉक का काम करते है. एच एंटीजन की कमी “बॉम्बे फेनोटाइप” के रूप में जानी जाती