अंतर्राष्ट्रीय शूटिंग खिलाड़ी गोल्डन गर्ल श्रुति यादव ने उद्देश्य फाउंडेशन और एवारा फाउंडेशन टीम, ऐसे पहुंचाई प्रवासी मजदूरों को उनके घर   

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कोरबा@M4S:कोरोना वायरस (COVID-19) दुनिया भर में फैली हुई एक ऐसी समस्या है, जिसके बारे में न पहले से किसी को पता था न इस तरह की समस्या के लिए हमारा समाज तैयार था. भारत में भी लॉकडाउन के अलग-अलग चरणों में अलग-अलग तरह की समस्याएं सामने आईं. इनमें से एक बड़ी समस्या, पलायन करते  प्रवासी श्रमिकों को रास्ते में आने वाली दिक्कतें हैं.अंतर्राष्ट्रीय शूटिंग खिलाड़ी श्रुति यादव ने उद्देश्य फाउंडेशन और एवारा फाउंडेशन टीम के सदस्यों के साथ काम किया और प्रवासी श्रमिकों  की सहायता के लिए टीम की मदद की.  मज़दूरों की सहायता करने वाली ये टीमें दो स्तर पर उन तक मदद पहुँचा रहीं हैं.उद्देश्य फ़ाउंडेशन ने लॉकडाउन के पहले चरण की शुरुआत में ही मज़दूरों के बीच खाना और ज़रूरी सामान का वितरण शुरू कर दिया था. फिलहाल उद्देश्य टीम सफ़र कर रहे लोगों को लइया, चना, गुड़ और छाछ जैसी चीज़ों के पैकेट दे रही है. साथ ही, ज़रूरतमंद लोगों को हवाई चप्पल, महिलाओं को सैनिटरी नैप्किन, बच्चों को दूध का पाउडर भी उपलब्ध करा रही है. सफर के दौरान मज़दूरों के साथ हो रही दुर्दशा को देखते हुए कुछ और लोग उद्देश्य का सहयोग करने के लिए आगे आये ताकि ना सिर्फ मज़दूरों तक खाना या ज़रुरत का सामान पहुंचे बल्कि जब तक वो अपने घरों तक सही सलामत पहुँच नहीं जाते, उनकी ट्रैकिंग हो. इस योजना को अंजाम देने के लिए कविता कोष के संपादक और लेखक ललित कुमार सामने आये और उन्होंने इवारा नामक एक टीम का गठन किया. इवारा के अंतर्गत एक ट्रैकिंग सिस्टम बनाया गया श्रुति यादव प्रवासी श्रमिक  की ट्रेकिंग टीम का हिस्सा थी, सभी एवारा ट्रेकिंग टीम के सदस्य डेल्ही, राजस्थन, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे भारत के विभिन्न हिस्सों में बैठे थे . टीम के सदस्य भी लॉकडाउन की बंदिशों का पालन करते हुए, अपने-अपने घर से इस योजना पर काम कर रहे हैं.

वर्क फ़्रॉम होम और सोशल डिस्टेंसिंग की मुश्किल के बीच काम कर रहे थे  .उद्देश्य टीम खाना वितरण करते समय बैच में मज़दूरों के फ़ोन नंबर उनके गंतव्य के अनुसार ले लेती है और इस ट्रैकिंग टीम को ये कॉन्टेक्ट्स फॉरवर्ड कर देती है. ट्रैकिंग टीम इन नम्बरों को अपने स्वयंसेवकों में बाँट देती है और इसके साथ ही शुरू होता था मज़दूरों तक हर ज़रूरी सहयोग पहुंचाने का सिलसिला. हर १०-१२ घंटे में ये ट्रैकिंग करने वाली टीम मज़दूरों का कुशल क्षेम पूछती है और किसी प्रकार की अकस्मात स्थिति में उनका पूरा सहयोग देती है. ये पूरी ट्रैकिंग प्रकिया तब तक चलती है जब तक मज़दूर अपने गावों  या शहर नहीं पहुँच जाते.  मज़दूरों से कुछ बुनियादी सवाल पूछे जाते हैं जैसे – कितने लोग हैं? कहां से चले थे? खाना कब खाया था? यात्रा का साधन क्या है? साथ में कोई बच्चा या बुज़ुर्ग तो नहीं है? इसके बाद उन्हें पानी पीते रहने, कोई समस्या होने पर टीम को फोन करने जैसी कुछ बुनियादी बातें बताई जाती हैं. इन मज़दूरों की उनकी स्थिति के हिसाब से प्राथमिकता तय की जाती है. कुछ लोगों को ज़्यादा या आपात मदद चाहिए होती है, जबकि कुछ समूहों का काम सिर्फ कुछ घंटों पर जानकारी लेने से चल जाता है. इंटरनेट और फोन की मदद से  एवारा टीम ने प्रवासी श्रमिकों की सहायता करने में मदद की, , मज़दूरों की कई समस्याएं फोन और इंटरनेट के सामान्य इस्तेमाल से सुलझ जाती हैं. एक मामले में ५० मज़दूर देर रात हाइवे पर रास्ता भटक गए थे. ऐसे में गूगल मैप्स पर उनकी स्थिति को समझकर उन्हें रास्ता बताया गया और वे नज़दीकी पुलिस सहायता केंद्र तक पहुंच सके. इसी तरह से २० मज़दूरों का एक समूह गया स्टेशन से उतरकर पटरियों की तरफ़ भटक गया. टीम ने मैप्स की मदद से मज़दूरों की स्थिति को समझा तो पता चला कि महज़ ५०० मीटर की दूरी पर एक सरकारी शेल्टर है, जहां उन लोगों को खाना और रात में सोने के लिए जगह मिल जाएगी.श्रुति यादव, एवारा फाउंडेशन टीम के सदस्यों में शामिल थीं, जिन्होंने सीएलआरए (श्रम अनुसंधान संस्थान ) और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी जोधपुर के साथ काम किया और  झारखंड से प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए श्रमिक विशेष ट्रेन की व्यवस्था करने के लिए मदद की जो कोविद -१९ के कारण गुजरात में फंस गए थेकुल मिलाकर बेहद कम संसाधनों में असरदार तरीके से काम करने वाली इस योजना ने अब तक १०,००० से ज़्यादा मज़दूरों को उनकी मंज़िल तक पहुंचने में मदद की है. इस ट्रैकिंग टीम में ललित कुमार और शारदा सुमन के अलावा अनिमेष मुख़र्जी, शुभम्‌ अपराजिता, सिद्धार्थ नाहर, अश्फ़ाक अहमद, गौरव अदीब, शशि सिंह, प्रेम दिवाकर और मधुरम्‌ अपराजिता शामिल हैं

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