नई दिल्ली(एजेंसी):वायु प्रदूषण की मार से इंसान ही नहीं, पेड़ों की उम्र भी घट रही है और उनकी लंबाई कम हो रही है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग की पैसेफिक नार्थवेस्ट नेशनल लैब के अध्ययन में यह सामने आया है। अध्ययन के मुताबिक, पेड़ों की लंबाई में कमी और कम समय में ही नष्ट होने से दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ता जा रहा है। जंगलों से लेकर आबादी के इलाकों में यह बदलाव देखा गया है।
20 वैज्ञानिकों की टीम के मुख्य शोधकर्ता नैट मैक्डावेल ने कहा कि जंगलों की आग, सूखा, चक्रवात और अन्य प्राकृतिक आपदाएं भी पेड़ों को अल्पायु बना रही हैं। इससे पेड़ों की कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने की क्षमता घटी है। लंबे पेड़ों वाले घने जंगल कम होने से सूर्य की खतरनाक किरणें ज्यादा नुकसान पहुंचा रही हैं। साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, पुराने पेड़ों के जल्दी नष्ट होने के कारण दुनिया में जंगलों का दायरा घटा है।
तापमान बढ़ने और बारिश की अवधि कम होने से पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पर असर पड़ा है, जिससे नए पौधों के बढ़ने की गति भी घटी है और वे ज्यादा ऊंचाई तक नहीं जा पाते। इससे पहाड़ी क्षेत्रों में जंगलों की जैवविविधता और वन्यजीव भी विलुप्त होते जा रहे हैं।
आबादी वाले इलाकों में कंकरीट बड़ी वजह-
आबादी वाले इलाकों में कंकरीट, रासायनिक पदार्थों के बढ़ते इस्तेमाल के साथ भूजल स्तर गिरने से बड़े पेड़ जल्दी सूख रहे हैं। एसी और अन्य कूलिंग उपकरणों से शहरी क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी से भी पेड़ जल्दी बूढ़े होकर दम तोड़ रहे हैं।
भारत में घटे सौ साल से ज्यादा पुराने पेड़-
भारत में सौ साल से ज्यादा पुराने पेड़ों की संख्या लगातार घटती जा रही है। बाराबंकी के पारिजात वृक्ष, काकोरी के बरगद के पेड़ और काकोरी के दशहरी पेड़ इसके उदाहरण हैं, जो बदलती जलवायु के प्रभाव और रखरखाव न होने से नष्ट हो रहे हैं। पुणे में 45 पेड़ 300 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। पार्वती हिल पर एक पेड़ 400 साल पुराना है। बंगाल में अम्फन तूफान के दौरान 100 साल से ज्यादा पुराने सैकड़ों पेड़ उखड़ गए, जबकि पिछले कई दशकों में आए तूफान में उन्हें कुछ नहीं हुआ था।
तैयारी-
हेरिटेज टैग देगी यूपी सरकार-
उत्तर प्रदेश सरकार सौ साल से ज्यादा पुराने पेड़ों को हेरिटेज टैग देने का अभियान एक जुलाई से शुरू करेगी। ऐसे पेड़ों की सेहत का विशेष ख्याल रखा जाएगा।