कोरबा@M4S: माह ए रमजान में मुस्लिम बंधु रोजा रखकर खुदा की इबादत में मशगुल हैं। 11 मार्च को चांद के दीदार के बाद 12 को पहला रोजा रखा गया था। इस लिहाज से रमजान का पहला अशरा 21 मार्च को पूरा हो रहा है।
रमजान माह में तीन अशरे होते हैं। पहला अशरा रहमत, दूसरा बरकत व तीसरा मगफिरत का होता है। इन दिनों रमजान का पाक महीना चल रहा है। ये महीना हर मुसलमान के लिए बेहद खास माना गया है। रमजान के दौरान 29 या 30 दिनों के रोजे रखे जाते हैं। इन तीस दिनों को तीन भागों में बांटा गया है, जिसे अशरा कहा जाता है। इस तरह रमजान का महीना तीन अशरों में बंटा हुआ है। हर अशरे का अलग महत्व है। अशरा अरबी का शब्द है, जिसका मतलब 10 होता है। इस तरह रमजान के महीने के 30 दिनों को 10-10 दिनों में बांटा गया है। जिन्हें पहला अशरा, दूसरा अशरा और तीसरा अशरा कहा जाता है। शुरुआती 10 दिन पहला अशरा कहलाते हैं, 11वें दिन से 20वें दिन तक दूसरा अशरा और 21वें दिन से 29वें या 30वें दिन तक तीसरा अशरा होता है। मुस्लिम मान्यता के अनुसार रमजान महीने के पहले दिनों को रहमत के दिन कहे जाते हैं। कहा जाता है कि इन 10 दिनों में मुसलमान जितने नेक काम करता है, जरूरतमंदों की मदद करता है, उन्हें दान देता है, लोगों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है, अपने उन बाशिंदों पर अल्लाह अपनी रहमत बरसाते हैं।
दूसरे अशरे को मगफिरत यानी माफी का अशरा कहा जाता है। ये अशरा 11वें रोजे से 20वें रोजे तक चलता है। माना जाता है कि इसमें अल्लाह की इबादत करके अगर मुस्लिम सच्चे मन से अपने गुनाहों की माफी मांगे, तो अल्लाह उसके गुनाहों को माफ कर देते हैं। इस दौरान ऐसा कोई काम भूलकर भी नहीं करना चाहिए जो अल्लाह को नाराज करे। तीसरे अशरे को बेहद खास माना गया है. ये जहन्नम यानी नर्क की आग से खुद को बचाने के लिए है। तीसरा अशरा 21वें दिन से 29वें या 30वें दिन तक चलता है। मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में 10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घर के किसी कमरे में पर्दा लगाकर एतकाफ में बैठती हैं। इस दौरान वे जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं।