कोरबा@M4S: क्या, कभी आपने यह सुना है कि मिलावटखोरी के मामले में किसी को कड़ी सजा हुई हो? शायद नहीं। सुन भी नहीं पाएंगे। क्योंकि खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने, जांचने, पकडऩे या कार्रवाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जो सिस्टम बना है, वह बेहद लचीला है और अब कारगर नहीं रहा। जानकार इसमें बदलाव की मांग भी कर रहे हैं।
होली, दीवाली या त्योहारों पर कुछ दुकानों में जांच की औपचारिकता जरूर निभा ली जाती है, लेकिन तब जिस दुकान या होटल में जांच हो रही होती है, उसे भी पता होता है कि सरकारी अमला उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाएगा। कम से कम ऐसी कार्रवाई तो बिलकुल नहीं, जिससे उसके व्यापार पर जरा भी आंच आए। खूब हुआ तो चंद रुपयों का जुर्माना लग जाता है। इससे आगे कुछ नहीं। दरअसल, मिलावट के मुद्दे को कभी संजीदगी से लिया ही नहीं गया, जबकि यह सीधे आम लोगों की सेहत से जुड़ा मामला है और इतने संवेदनशील मामले में तो अमले को मिलावट की जड़ें खोदकर निकाल देना चाहिए। अधिक कमाने के फेर में हाल के कुछ वर्षों में मिलावटखोरी तेजी से बढ़ी है। उतनी ही तेजी से बढ़ती जा रही है इसकी अनदेखी। आप बाजार में कोई भी खाद्य पदार्थ इस भरोसे से नहीं खरीद सकते कि इसमें मिलावट नहीं हुई होगी। गुजरी दीवाली पर बाजार में बड़े पैमाने पर सौ-डेढ़ सौ रुपए किलो मिलने वाली सस्ती मिठाइयां उतरीं और बेतहाशा बिकीं। इन्हें घरों तक पहुंचने से पहले रोकने के लिए जरा भी ईमानदार कोशिश तक नहीं की गई।
KORBA NEWS:मिलावटखोरी के खिलाफ सिस्टम लचीला,मिलावटखोरों पर नहीं हो पाती कड़ी कार्यवाही
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