संभल(एजेंसी):देशभर में बहनों को भाइयों की कलाई पर राखी बांधने का बेसब्री से इंतजार है। भाई भी रक्षा सूत्र बंधवाकर बहनों को उपहार देने की तैयारी में जुटे हैं मगर एक गांव ऐसा भी है जहां रक्षाबंधन मनाने की बात तो छोड़िए भाई बहन के इस त्योहार का जिक्र करना भी लोग पसंद नहीं करते। उत्तर प्रदेश के संभल के गांव बैनीपुर चक में करीब तीन सौ साल से भाइयों की कलाई सूनी रहती हैं। बुजुर्ग उस घटना का जिक्र जरूर करते हैं जो उनके पूर्वज के साथ घटी थी और एक धोखे में पूर्वज जमींदारी गंवा चुके थे। इसलिए यादव जाति में मेहर गौत्र के लोग रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाते। फिर भी न तो भाइयों को मलाल है और न ही बहनों में मायूसी।
संभल से आदमपुर मार्ग पर करीब पांच किलोमीटर दूरी पर बसे गांव बैनीपुर चक भले ही समय के साथ आधुनिक ढांचे में ढल रहा है। जहां पहले कच्चे मकान थे अब वह पक्के बन गए हैं। अब डिबिया की रोशनी भी नहीं दिखाई देती बल्कि बिजली कनेक्शन होने पर बल्व टिमटिमा रहे हैं। रहन सहन भी बदला है पर रक्षाबंधन नहीं मनाने की परंपरा आज भी कायम हैं। लोग राखी को देखकर दूर भागते हैं तो रक्षाबंधन का जिक्र करना ठीक नहीं समझते। बड़े बुजुर्ग वजह बताते हैं कि उनके बुजुर्ग जनपद अलीगढ़ की तहसील अतरौला के गांव सेमरई में रहते थे। हालांकि गांव यादव और ठाकुर बहुल था लेकिन बात जमींदारी की करें तो यादव परिवार का दबदबा था।
दोनों जाति के लोगों में घनिष्ठता थी। ठाकुर परिवार ने बेटे को यादव परिवार की बेटी से राखी बंधवाई तो उसने भैंस मांगी जो दे दी गई। जब यादव परिवार के बेटे को ठाकुर परिवार की बेटी ने राखी बांधी तो उसने पहले वचन लिया। यादव परिवार ने सोचा कि उपहार में कोई सामान मांगा जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ठाकुर की बेटी ने यादव परिवार से गांव की जमींदारी और सबकुछ मांग लिया। तब यादव परिवार ने जमींदारी देकर गांव छोड़ने का फैसला किया और संभल के गांव बैनीपुर चक में आकर बस गया। बोले, दादा के दादा के जमाने से भी मेहर गौत्र के यादव परिवारों में तभी से रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता। हम भी उसी परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं।
बोले भाई बहन हम निभा रहे परंपरा
भले गांव बैनीपुर चक में रक्षाबंधन त्योहार नहीं मनाया जाता। आसपास के गांवों में त्योहार की तैयारी शुरू होती हैं। फिर भी बैनीपुर चक के भाई और बहनों में जरा भी निराशा नहीं है। कहते हैं कि जो बड़ों ने बताया है, उसी पर यकीन करते हैं। हम अपने पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा को नहीं तोड़ेंगे। परंपरा को निभा रहे हैं और निभाते रहेंगे।
क्या बोले ग्रामीण-
जगदीश ने बताया कि बड़े बूढ़ों ने रक्षाबंधन नहीं मनाने की वजह बताई थी। हमने भी जो सुना उसी के अनुसार चल रहे हैं। इस बार भी गांव में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाएगा।
सुभाष ने बताया कि पूर्व गांव में रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता। मैं और मेरी उम्र के दूसरे भाई भी मायूस नहीं होते। क्योंकि त्योहार नहीं मनाने की यह परंपरा वर्षों से ऐसे ही चल रही है।
गनेशी ने बताया कि पूर्वज बताते थे कि सैकड़ों साल पहले धोखे से जमींदारी गंवा दी गई थी। जिसके बाद यादव परिवार बैनीपुर चक गांव में बसा था। तभी से रक्षाबंधन न मनाने की परंपरा कायम है।
महेश ने बताया कि सैकड़ों साल पहले पूर्वजों ने रक्षाबंधन नहीं मनाने की परंपरा शुरू की थी। उसी का पालन कर रहे हैं। बहनों और भाइयों में किसी तरह की कोई निराशा नहीं रहती है।