नई दिल्ली(एजेंसी):मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी को एक के बाद एक लगातार दो झटके लगे हैं। गुरुवार को सूरत की अदालत द्वारा दो साल की सजा का एलान होने के एक दिन बाद ही उनकी केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्यता भी खत्म कर दी गई है। वर्तमान कानून के मुताबिक, वे फिलहाल 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, हालांकि अगर ऊपरी अदालत से पूर्व कांग्रेस सांसद को राहत मिलती है तो यह स्थितियां बदल सकती हैं। इस घटनाक्रम ने इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने और मां सोनिया गांधी द्वारा सदन की सदस्यता से इस्तीफा देने की भी याद दिला दी है। गौरतलब है कि राहुल गांधी के साथ हुई यह कार्रवाई गांधी परिवार के साथ ऐसा पहला मामला नहीं है। इससे पहले साल 1978 में राहुल की दादी इंदिरा गांधी ने सदस्यता गंवाई थी। और साल 2006 में मां सोनिया गांधी ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा दिया था। हालांकि इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी ने उपचुनाव में जीत हासिल करके सदन में एंट्री ले ली थी, लेकिन राहुल गांधी ऐसा नहीं कर पाएंगे। आइए जानते हैं इन तीनों मामलों में क्या अंतर है.
दादी ने भी गंवाई थी सदस्यता
गांधी परिवार में संसद सदस्यता जाने का एक इतिहास रहा है। राहुल गांधी से पहले उनकी दादी इंदिरा भी सदन की अपनी सदस्यता गंवा चुकी हैं। 1975 में आपातकाल लगाने के बाद जब 1977 में चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि 1978 में इंदिरा गांधी कर्नाटक के चिकमंगलूर से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गई थीं। लेकिन तब भी उनकी मुसीबतें कम नहीं हुई थीं। उस समय लोकसभा में पहुंचने के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने खुद प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव में देसाई ने अपने कार्यकाल में सरकारी अफसरों का अपमान करने और पद के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। इस प्रस्ताव के पास होने के बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एक विशेषाधिकार समिति बनाई गई थी। विशेषाधिकार समिति ने जांच के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इंदिरा के खिलाफ लगे आरोप सही हैं। उन्होंने विशेषाधिकारों का हनन किया था इतना ही नहीं सदन की अवमानना भी की। रिपोर्ट के आधार पर इंदिरा गांधी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। हालांकि बाद में जनता सरकार के गिरने के बाद इंदिरा गांधी 1980 में भारी समर्थन से दोबारा चुनाव जीतकर सदन पहुंची थीं।
इस मामले में मां सोनिया ने दिया था सदस्यता से इस्तीफा
उस समय सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं। साथ ही वह यूपीए सरकार के समय गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं। इस पद को ‘लाभ का पद’ करार दिया गया था। इसके कारण सोनिया गांधी को अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि बाद में उन्होंने रायबरेली सीट से ही उपचुनाव जीतकर सदन में मजबूत वापसी की थी।
अब बात करते हैं राहुल गांधी की। मोदी सरनेम मामले में सूरत की अदालत से दो साल की सजा पाने के बाद आज यानी शुक्रवार को राहुल ने अपनी संसद सदस्यता गंवा दी है। वे केरल की वायनाड सीट से लोकसभा सांसद थे। राहुल गांधी की सदस्यता को लेकर लोकसभा सचिवालय की तरफ से सात पंक्तियों की एक अधिसूचना जारी की गई है। इसमें कहा गया है कि सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत की तरफ से दोषी करार दिए जाने के बाद केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्य राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य किया जाता है।
इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी दोनों ने राजनीतिक दांव-पेच सहते हुए मजबूती के साथ सदन में वापसी कर ली थी, लेकिन राहुल गांधी की राह आसान नहीं है। दरअसल, इसका कारण लोक-प्रतिनिधि अधिनियम 1951 है। इस जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक किसी भी सांसद या विधायक को अगर किसी मामले में दो या दो साल से ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो उनकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। साथ ही वह छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य हो जाते हैं। ऐसे में अगर राहुल गांधी को ऊपरी अदालत से राहत नहीं मिली तो राहुल गांधी 2024 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे, जो कि उनके लिए बड़ा झटका होगा।