नई दिल्ली (एजेंसी):संगीत के अगर सात स्थापित सुर हैं तो उसका आठवां मीठा सुर हैं कौशिकी। उनकी अल्हड़ता, उनका बिंदास अंदाज और आरोह-अवरोह पर उनकी गजब पकड़ उन्हें बाकी कलाकारों से अलग बनाती है। चाहे मंच पर हों या घर में रियाज़ कर रही हों, कौशिकी चक्रबर्ती की साँसों की लय की तरह सहज है उनका संगीत भी। यही कारण है कि आज बहुत कम उम्र में भी उन्होंने देश-विदेश में इतनी ख्याति अर्जित कर ली है। वह संगीत को केवल जीती ही नहीं हैं उन्होंने संगीत को जीत भी लिया है।
मंच पर प्रस्तुति देती कौशिकी के सुंदर से चेहरे पर जितनी बार आप फोकस करने की कोशिश करते हैं, उतनी ही बार उनकी स्वर लहरियों की उछल-कूद आपका ध्यान भटका देती है। हर राग में उनके पास खेलने को इतने तरीके हैं कि श्रोता केवल उनकी आवाज़ का ही आनंद नहीं लेते, उस नटखट खेलकूद में रम जाते हैं। यहाँ तक कि उनके साथ संगत कर रहे कलाकार भी इस आनंददायक यात्रा के सहज सहभागी हो जाते हैं। यही है कौशिकी का अद्भुत जादू। वे अपने संगीत से लोगों को बांधना बखूबी जानती हैं।
अद्भुत है कौशिकी का ऑरा
अपनी चमकती आँखों से किसी राग को बखान रहीं कौशिकी की पहली छवि ही किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है। यह बाहरी खूबसूरती से कहीं आगे की बात है। खूबसूरत तो खैर कौशिकी हैं ही लेकिन मंच पर उनकी उपस्थिति उससे भी कहीं अधिक आकर्षक है। ठुमरी गाते-गाते जिस अंदाज से वो अपने हाथों को लय में झुलाते हुए संगतकारों से मुखातिब होती हैं उस समय ऐसा लगता है जैसे कोई टीनेज किशोरी, अल्हड़ अंदाज में किसी पेड़ की डाल पर बंधे झूले पर पेंग ले रही हो। कौशिकी की आवाज़ में जितनी मधुरता है उतनी ही उनके व्यक्तित्व में राजसी और गरिमामय ठसक है। शायद यही कारण रहा होगा कि एक समय उनके लिए बंगाली फिल्म में नायिका की भूमिका के लिए भी ऑफर आया था। अपनी इस चंचलता और सौम्यता के अद्भुत मिश्रण को कौशिकी भी जानती हैं और पूरी जीवन्तता से उसे जीती भी हैं। चाहे साड़ी पहनना हो या अन्य परिधान, वे अवसर के हिसाब से खुद को उतनी ही गरिमामय तरीके से ढालने में दक्ष हैं। इतना ही नहीं कौशिकी जानती हैं कि उनके संगीत की सर्थकता सुधिजनों से है और इसलिए वे कार्यक्रम \में श्रोताओं से बकायदा संवाद भी करती जाती हैं।
देश-विदेश में हैं प्रशंसक
कौशिकी की ठुमरी की प्रशंसक स्वयं कंठ कोकिला स्वर्गीय लता मंगेशकर जी रही हैं। वे कौशिकी के कई कार्यक्रम मंच के पीछे ग्रीन रूम में बैठकर सुना करती थीं और जब कभी कौशिकी उनके घर जातीं तो लता दीदी की फरमाइश वहां भी ठुमरी सुनाने की होती। कौशिकी मुख्यतः सेमी क्लासिकल ठुमरी गाती हैं और इसके एक एक भाव को वे पूरी तरह अभिव्यक्त करने में सक्षम हैं। स्वयं वह भी मानती हैं कि ठुमरी गाते हुए वे पूरी तरह उसके इमोशंस में डूब जाती हैं। वह स्वयं लता जी को अपनी प्रेरणा मानती हैं। संगीत के अलावा यात्राएं करना, स्कीइंग जैसे एडवेंचर करना भी कौशिकी को पसंद है। कला जगत में योगदान के लिए बीबीसी सम्मान के साथ ही कौशिकी को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया है
मेहनत और अभ्यास से बनती पकड़
कौशिकी का मानना है कि जितनी कम उम्र से आप संगीत या किसी भी कला की बारीकियां सीखना प्रारम्भ करते हैं, उतना ही आपके लिए संगीत को आत्मसात करने और उसके साथ प्रयोग करने में आसानी होती है। कौशिकी स्वयं इसी प्रक्रिया से गुजरी हैं इसलिए उन्होंने अपने बेटे को भी उसी तरह तैयार किया है। यूं पूरे परिवार में संगीत एक संस्कार है और यह संगीत कौशिकी के भीतर झरने सा बहता है। चाहे वह शास्त्रीय संगीत की कोई बंदिश हो, वेस्टर्न म्यूजिक हो, बॉलीवुड सॉन्ग्स या किसी प्रकार का फ्यूजन, कौशिकी संगीत की हर धारा को उसी शिद्द्त से महसूस करती हैं।