नई दिल्ली(एजेंसी):विरोध के बीच फेक न्यूज की जांच के लिए केंद्र सरकार ने एक निकाय बनाने की घोषणा की है। संशोधित नियमों को जारी करने के बाद इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि अगर इंटरनेट कंपनियां फैक्ट चेकर द्वारा जांच की गई गलत या भ्रामक जानकारी को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने में विफल रहती हैं तो वो अपना विशेषाधिकार खो सकती हैं। सरकार के इस फैसले का विरोध और तेज हो गया है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि इससे देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसने नियमों को कठोर करार देते हुए वापस लेने की भी मांग की है। सरकार का फैक्ट चेक निकाय क्या है और कैसे काम करेगा? किन माध्यमों पर इसका असर होगा? इसका विरोध क्यों हो रहा है? विरोध पर सरकार का क्या रुख है?
फेक न्यूज को लेकर अभी क्या हुआ है?
केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में संशोधन को गुरुवार को अधिसूचित कर दिया। इसके तहत एक निकाय बनाया जाएगा। यह निकाय इंटरनेट कंपनियों (इसके तहत गूगल, फेसबुक, ट्विटर से लेकर सभी समाचार और गैर-समाचार कंपनियां शामिल हैं) की समाग्रियों की जांच करेगा।
अगर निकाय की जांच में कोई पोस्ट या खबर भ्रामक या गलत होती है तो संबंधित कंपनियों को सरकार उस कंटेंट को हटाने का आदेश देगी। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ऐसी सामग्री के यूआरएल को भी हटाना होगा। यदि संबंधित कंपनी ऐसा करने में विफल रहती हैं तो संबंधित कंपनी पर भी कार्रवाई की जाएगी। सोशल मीडिया के मामले में जानकारी डालने वाला यूजर भी कार्रवाई के दायरे में होगा।
इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया कि इंटरनेट प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे गूगल, फेसबुक, ट्विटर और इंटरनेट सेवा प्रदाता आदि एक मध्यस्थ के दायरे में आते हैं। विशेषाधिकार कानून मध्यस्थ को उनके उपयोगकर्ताओं द्वारा ऑनलाइन पोस्ट की गई किसी भी आपत्तिजनक सामग्री के लिए कानूनी कार्रवाई से बचाता है। नए नियम में इसमें संसोधन किया गया है। अब भ्रामक या गलत जानकारी को नहीं हाटने की स्थिति में ये कंपनियां भी कार्रवाई के दायरे में आएंगी।