उन्होंने कहा कि विकास दर और मुद्रास्फीति संतुलन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है और मुद्रास्फीति भी सहनशील दायरे के भीतर है।
भारतीय वित्तीय बाजारों के बारे में गवर्नर ने कहा कि विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार, सरकारी प्रतिभूतियां और मुद्रा बाजार सहित सभी बाजार खंड काफी हद तक स्थिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ महीने पहले रुपया थोड़ा दबाव में आया था, लेकिन उसके बाद इसका प्रदर्शन बेहतर रहा और इसने कुछ हद तक खोई हुई जमीन वापस पा ली।
भारत वैश्विक व्यवस्था में अपना उचित स्थान हासिल करने के लिए लगातार आगे बढ़ रहा
मल्होत्रा ने कहा, “आज, वित्तीय बाजार वैश्विक और घरेलू चुनौतियों, अभूतपूर्व अवसरों और बढ़ती सार्वजनिक अपेक्षाओं के बीच परिवर्तन के मुहाने पर खड़े हैं। जब इस तरह के परिवर्तन होते हैं तो इसमें कई गतिशील हिस्से होते हैं, जिन्हें एक पहेली के टुकड़ों की तरह एक साथ आने की जरूरत होती है। साथ ही कई हितधारक होते हैं, जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत वैश्विक व्यवस्था में अपना उचित स्थान हासिल करने के लिए लगातार आगे बढ़ रहा है और ऐसे समय वित्तीय बाजारों को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उन्होंने कहा कि देश की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए वित्तीय बाजारों को कुशल और लागत प्रभावी वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता होगी।
चार वर्षों में विदेशी मुद्रा बाजार का दैनिक कारोबार दोगुना हुआ
हाल के वर्षों में भारत के विदेशी मुद्रा बाजार में मजबूत वृद्धि देखी गई है। 2020 में औसत दैनिक कारोबार 32 अरब डालर था जो लगभग दोगुना होकर 2024 में 60 अरब डॉलर हो गया है। आरबीआइ गवर्नर ने कहा कि सिर्फ विदेशी मुद्रा बाजार ही एकमात्र ऐसा बाजार नहीं है, जिसमें विकास हुआ है। ओवरनाइट मनी मार्केट का भी विस्तार हुआ है और इसमें दैनिक वॉल्यूम 80 प्रतिशत बढ़ा है। यह 2020 के लगभग तीन लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 5.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। इसी तरह, सरकारी प्रतिभूति बाजार में औसत दैनिक वॉल्यूम में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और चार सालों के दौरान 66,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।
आर्थिक विकास के प्रवर्तक हैं हमारे वित्तीय बाजार
वित्तीय बाजारों की बड़ी भूमिका के बारे में मल्होत्रा ने कहा कि ये केवल पूंजी जुटाने और परिसंपत्तियों का व्यापार करने के स्थान नहीं हैं बल्कि आर्थिक विकास के प्रमुख प्रवर्तक भी हैं। उन्होंने यह भी साझा किया कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत का सरकारी प्रतिभूति बाजार पूरे वर्ष स्थिर रहा। उन्होंने कहा, ”देश की जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए संकटों से सीख लेकर हमारे बाजार परिपक्व और उन्नत हुए हैं। हमारे बाजारों का बुनियादी ढांचा अत्याधुनिक है। पारदर्शिता का स्तर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ के बराबर है।