IAS बनने के लिए मैंने छोड़ी नौकरी:7 साल की उम्र में पापा को खोया, मां ने दी हिम्मत; शादियों में ‘कोहबर’ पेंटिंग्स’ बनाना पसंद

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‘मैं भी आप जैसी ही हूं। पिछले साल मैंने भी यूट्यूब में स्क्रॉल करके देखा था कि किसने टॉप किया, ये टॉपर कैसे होते हैं। इंटरव्यू से एक दिन पहले मुझे भी रात भर नींद नहीं आई। मुझे कोई कहता है कि एग्जाम के पहले नर्वस नहीं होता या फिर रिजल्ट से पहले पेट में गुदगुदी नहीं होती तो मैं उसे आश्चर्य से देखती हूं।’

बिहार: ये कहना है कि यूपीएससी टॉपर इशिता किशोर का, जो आज देश के युवाओं और अपने जैसी लड़कियों के लिए प्रेरणा की स्रोत हैं। आज ‘ये मैं हूं’ सीरीज में इशिता किशोर की सफलता की कहानी, उन्हीं की जुबानी जानते हैं।

पापा की जॉब ट्रांसफरेबल होने के कारण कई शहर घूमी

मेरा जन्म हैदराबाद में हुआ, लेकिन पिछले 15 से 16 साल से हम दिल्ली में रह रहे हैं। घर में सबसे छोटी होने के कारण मुझे सभी से बहुत प्यार मिला है। पापा की जॉब ट्रांसफरेबल होने के कारण हमें कई शहरों में घूमने का मौका मिला।

बिहार से होने पर खुद पर गर्व

मेरा माता-पिता दोनों ही बिहार से हैं। पटना सिटी के खाजेकलां के हरनाहा टोला मोहल्ले में इशिता का पुश्तैनी घर है। इशिता के सगे-संबंधी आज भी हरनाहा टोले में रहते हैं। गर्दनीबाग में ननिहाल है। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं बिहार से हूं।

हमारा जुड़ाव अपनी मिट्टी और हमारे कल्चर से हमेशा से रहा है। छुट्टियों में आज भी हम पटना जाते हैं। मेरा बचपन का बहुत समय वहीं गुजरा है। मेरे नाना लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़कर निकले थे। जब भी हम पटना जाते, वो अक्सर हमें पढ़ाते।

7 साल की उम्र में छूटा पिता का साथ

मेरे पिता विंग कमांडर संजय किशोर एअर फोर्स ऑफिसर रहे। सब कुछ बहुत स्मूथ चल रहा था कि अचानक हमारी जिंदगी बदल गई। ये साल 2004 की बात है, जब पापा का साथ छूट गया। उस समय मैं महज सात साल की थी, मेरे लिए उस दुख को समझ पाना और सह पाना दोनों ही मुश्किल था। मगर, मेरी मां ने हार मानने के बजाय हिम्मत दिखाई और परिवार का साथ मिला तो जिंदगी जैसे-तैसे पटरी पर आ गई। हम दिल्ली आ गए और मां एक स्कूल में टीचर के तौर पर पढ़ाने लगीं। यहां आने के बाद धीरे-धीरे हमारा पूरा फोकस पढ़ाई पर शिफ्ट हो गया।

स्कूल में भी रही टॉपर

मैंने दिल्ली के एयर फोर्स बाल भारती स्कूल से पढ़ाई की। 10वीं में 90% तो 12वीं में 97% अंक आए। आज यूपीएससी में टॉपर बनी हूं लेकिन स्कूल में भी टॉपर रही। टीचर कहतीं कि एकेडमिक ही नहीं, कॉम्पिटिशन में भी तुम अव्वल रहोगी। गुरुजनों का आशीर्वाद मुझे हमेशा मिला।

स्पोर्ट्स में होने से जुझारू बन सकी

स्कूल के दिनों से ही मैं स्पोर्ट्स में एक्टिव रही। मैंने नेशनल लेवल तक फुटबॉल और बास्केटबॉल खेला। खासकर फुटबॉल को लेकर मेरा जुनून रहा। शायद इसी वजह से मेरे अंदर स्पोर्ट्सपर्सन स्पिरिट है। हार न मानने और जूझने की क्षमता खेल की वजह से ही संभव हो सकी।

कॉलेज में मिला मल्टीनेशनल कंपनी में प्लेसमेंट

मैंने ग्रेजुएशन श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय से किया। कॉलेज के तीसरे साल ही मेरा प्लेसमेंट एक मल्टीनेशनल कंपनी ‘अर्न्स्ट एंड यंग’ में हो गया, जहां मैंने दो साल काम किया। कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने का मुझे फायदा मिला। इससे मुझे लर्निंग और प्रोफेशनलिज्म को सीखने का अवसर दिया।

समझा ये मेरा पैशन नहीं, कुछ ख्याल झकझोरते थे

जॉब करने के दौरान मुझे समझ आया कि ये मेरा पैशन नहीं है। कुछ ख्याल थे, जो बार-बार मुझे अंदर से आवाज लगाते और झकझोरते। बचपन की एक बात हमेशा याद आती “बचपन में जब कोई भी मुझसे पूछता कि तु्म्हारे पिता क्या करते हैं, तो हम बहुत गर्व से बोलते थे कि वो देश की सेवा करते हैं।” शायद ये शब्द मेरे जेहन में कुछ इस तरह रच-बस चुके थे कि मुझे भी देश के लिए कुछ करने का प्रोत्साहन मिला। लिहाजा मैंने फैसला किया कि मुझे सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी चाहिए। मैंने अपने मन की बात मम्मी से शेयर की और उन्होंने तुरंत मुझे जॉब छोड़कर यूपीएससी की तैयारी करने के लिए प्रोत्साहित किया।

पहले दो प्रयास मे फेल होने के बाद भी नहीं मानी हार

मैं नौकरी छोड़ी और तैयारियों में जुट गई। मुझे लगा था कि पहले नहीं तो कम से कम दूसरी बार तो सफल हो ही जाऊंगी, लेकिन दिन में 8 से 9 घंटे पढ़ाई और मेहनत करने के बाद भी जब दो बार प्रीलिम्स से आगे नहीं बढ़ पाई तो बहुत निराश हुई। मगर, मेरी मां ने समझाया कि जीवन की परिस्थितियों से घबराने और हार मानने की बजाए कोशिश करते रहना चाहिए। जीवन में कुछ मुश्किलें और परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिनसे हम केवल लड़ सकते हैं। बस जरूरत है अपनी लड़ाई जारी रखने की। मेरी मम्मी और दोस्तों ने मुझे बहुत भरोसा दिलाया। दो बार असफल होने के बाद मां को लगा कि उन्हें मेरे ऊपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है तो उन्होंने भी नौकरी छोड़ दी।

पेंटिंग बनी स्ट्रेस बस्टर, मैंने नानी से सीखी मिथिला पेंटिंग्स

कई लोग मुझसे पूछते कि आपका ग्रेजुएशन इकोनॉमिक्स में था फिर भी आपने पॉलिटिकल साइंस एंड इंटरनेशनल रिलेशन क्यों चुना। ऐसा इसलिए क्योंकि जब पॉलिटिकल साइंस और इंटरनेशनल रिलेशन का सिलेबस देखा तो मुझे लगा कि ये अच्छा ऑप्शन होगा और उसमें मेरी दिलचस्पी भी थी, जिसके कारण मेरे लिए ये पढ़ना आसान रहा। मैं रोज 7 से 8 घंटे पढ़ाई करती थी। मेरी कोशिश होती कि हफ्ते में 45 घंटे की पढ़ाई जरूर करूं।

तैयारी के दौरान पेंटिंग मेरा स्ट्रेस बस्टर बना। पेंटिंग ने मुझे ठहराव दिया। मेरी नानी और मम्मी से मैंने मिथिला पेंटिंग्स भी सीखी है, जिसे मैं समय मिलते ही जरूर प्रैक्टिस करती हूं। इससे मुझे अपने कल्चर से जुड़ाव महसूस होता है। मुझे कोहबर पेंटिंग्स (शादियों में दीवारों पर बनाई जाने वाली आकृतियां) भी आती है, जब भी किसी रिश्तेदार की शादी में जाती हूं, मैं कोहबर पेंटिंग जरूर बनाती हूं।

अंग्रेजी पर पकड़ इसलिए बिहार का बज रहा डंका

जब 2011 में सिविल सर्विसेज के सिलेबस में बदलाव किया गया, तब हिंदी पट्‌टी इलाके के एस्पीरेंट्स के लिए अंग्रेजी ने मुश्किलें पैदा की। कुछ सालों तक इसका असर दिखा, लेकिन अब यह कम हो गया। मैं इसका उदाहरण हूं कि बिहार से आने वाली लड़की फरार्टेदार अंग्रेजी बोलती है।

यूट्यूब स्क्रॉल करती हूं, सक्सेस स्टोरीज पढ़ती हूं-रिजल्ट आने से पहले पेट में गुदगुदी भी होती है

कई लोगों को लगता है कि यूपीएससी एस्पिरेंट हैं तो 12-13 घंटे की पढ़ाई करते होंगे। मगर, मुझे लगता है कि ये केवल एक मिथ है। मैं भी आम इंसान हैं, बिल्कुल आम लड़कियों जैसी। मैं भी सोशल मीडिया जैसे कि ट्विटर-इंस्टा पर एक्टिव रहती हूं। पिछले साल मैंने भी यूट्यूब में स्क्रॉल कर के देखा था कि किसने टॉप किया, ये टॉपर दिखने में कैसे होते हैं और बनते कैसे हैं।

मैं भी लोगों की सक्सेस स्टोरीज पढ़ती और देखती हूं ताकि मोटिवेट हो सकूं परीक्षा से एक दिन पहले मुझे भी रात में नींद नहीं आती, मैं अपने इंटरव्यू से पहले भी रात भर नहीं सोई थी। मुझे अगर कोई कहता है कि एग्जाम के पहले वह नर्वस नहीं होता या फिर रिजल्ट से पहले उसके पेट में गुदगुदी नहीं होती तो मुझे ताज्जुब होता है। मुझे लगता है कि वह झूठ बोल रहा है।

बॉलीवुड फिल्मों की बड़ी फैन हूं, कई डॉयलॉग्स-गाने रटे हैं

मैं बॉलीवुड फिल्मों की बड़ी फैन हूं। कई फिल्मों के डायलॉग्स तक मुझे याद हैं। कई गानों की लाइनें मुझे जुबानी याद है। चक दे इंडिया, लक्ष्य, दंगल मेरी फेवरेट फिल्मों में से कुछ हैं। मैं वेब सीरीज भी देखती हूं। हाल ही में मैंने ‘द डिपलोमैट’ देखा, जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिला।

मां की आंखों में संतुष्टि के आंसू देख खुश हूं

जब से मैं सिविल सर्विसेज की तैयारी में जुटी थी तो हमेशा खुद से सवाल करती थी कि क्या मैं ये कर पाऊंगी। मुझे इसका जवाब अपने भीतर हमेशा ’हां’ में ही मिलता। भले ही पहले दो अटेम्प में मैं अपने लक्ष्य को पाने से चूक गई, लेकिन फिर मैंने समय लिया और सोचा कि क्या कमी रही या मुझसे क्या गलतियां हुईं। इसके बाद मैंने अपना पूरा जोर लगाया। मुझे उम्मीद थी कि मैं पास कर जाऊंगी, लेकिन टॉप करूंगी ये नहीं सोचा था। ये मेरे लिए एक सपने के सच होने जैसा था। खुद से ज्यादा अपनी मम्मी के लिए खुश हूं, आज उनके आंखों में खुशी और संतुष्टि के आंसू देखे। मुझे खुशी है कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरी उतरी और मैंने अपने साथ-साथ मां का भी सपना पूरा किया।

लड़कियों को रोकें ना, उन्हें मौका दें

आने वाले दिनों में मैं एक आईएएस ऑफिसर के तौर पर मैं समाज में महिलाओं के लिए काम करना चाहती हूं। आज भी हमारे यहां कई परिवारों में लड़कियों को समझा नहीं जाता, उन्हें मौके नहीं मिलते। मैं चाहती हूं कि जिस तरह मुझे मौका मिला, हर एक लड़की को मिले। मेरा मानना है कि लड़कियों को रोकना नहीं चाहिए। उनका साथ दीजिए और जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े रहिए। लड़कियों को दोयम दर्जे का मानना गलत है। मौका मिलने पर वो सब हासिल कर सकती हैं, जैसा इस साल यूपीएससी में टॉप करने वाली चारों लड़कियों ने किया है। हम यूपीएससी की इस साल की “दंगल गर्ल्स” हैं।

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