काहिरा(एजेंसी): चश्मा लगाना कम ही लोगों को अच्छा लगता है। ऐसे में जरा सोचिए, आपको कोई ऐसा ‘आई-ड्रॉप’ मिल जाए, जो आंखों की रोशनी दुरुस्त करने में सक्षम हो तो कितना अच्छा रहेगा।
मिस्र स्थित अल-अजहर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने आपका यह सपना साकार कर दिया है। उन्होंने एक ऐसा ‘आई-ड्रॉप’ ईजाद किया है, जो रोजाना 12 घंटे के लिए सामान्य दृष्टि बहाल करने की क्षमता रखता है।
निर्माण दल से जुड़ी ब्रिटिश नेत्र विज्ञानी मेलानी हिंगोरानी ने बताया कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, आंखों के अगले हिस्से में मौजूद लेंस कड़ा होता जाता है। इससे आसपास मौजूद वस्तुओं का चित्र पिछले भाग में स्थित रेटिना की ओर परावर्तित करने की उसकी क्षमता कमजोर पड़ जाती है।
नतीजतन चीजें धुंधली दिखाई देने लगती हैं। हिंगोरानी ने बताया कि नया ‘आई-ड्रॉप’ बिल्कुल चश्मे की तरह काम करेगा। यह आंखों के सामने मौजूद वस्तुओं से परावर्तित प्रकाश को सही कोण पर रेटिना तक पहुंचाएगा।
‘आई-ड्रॉप’ के निर्माण में ‘कार्बाकोल’ और ‘ब्राइमोडाइन टारटेट’ नाम की दो औषधियों का इस्तेमाल किया गया है। ये पुतलियों को संकुचित करने के लिए जानी जाती हैं, जिससे चीजें साफ और स्पष्ट नजर आती हैं।
परीक्षण में इनकी मदद से प्रतिभागियों की रोशनी औसतन 12 घंटे के लिए बहाल करने में कामयाबी हासिल हुई। हिंगोरानी ने दावा किया कि नया ‘आई-ड्रॉप’ चश्मों को बीते दिनों की बात बना देगा।
लोगों को अखबार पढ़ने से लेकर पहेलियां सुलझाने या स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने तक में चश्मों की जरूरत नहीं पड़ेगी। अध्ययन के नतीजे ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ऑप्थैल्मिक रिसर्च’ के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
सर्जरी का बेहतर विकल्प-
-प्रेसबायोपिया (बूढ़ी होती आंखों के नजदीकी वस्तुओं पर नजर केंद्रित करने की क्षमता कमजोर पड़ना) से निजात पाने के लिए लोग अक्सर सर्जरी का सहारा लेते हैं, लेकिन इसमें रोशनी बहाल होने की गारंटी नहीं रहती। नया ‘आई-ड्रॉप’ सर्जरी का बेहतरीन विकल्प साबित होगा। हालांकि, इसमें तेज रोशनी में आंखें चौंधियाने और सिरदर्द की शिकायत सता सकती है। ऐसे में माइग्रेन रोगियों का इनके इस्तेमाल से बचना ही बेहतर रहेगा।