GDP में सबसे बड़ी गिरावट, नौकरी, गरीबी और विकास के लिए क्या हैं इसके मायने?

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नई दिल्ली(एजेंसी):कोरोना वायरस महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वह दिन दिखला दिया है जिसकी एक साल पहले तक कल्पना भी नहीं की जा
सकती थी। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के पिछले तिमाही के आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर का बनाने के पीएम नरेंद्र मोदी के लक्ष्य को लगभग पहुंच से बाहर कर दिया है।

जून तिमाही में पिछले साल के मुकाबले 23.9 पर्सेंट की गिरावट दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। नोमुरा होल्डिंग्स इंक जैसे बैंक ने पूरे साल के लिए के जीडीपी अनुमान को बदलकर -10.8% कर दिया है। एक बार फिर फोकस सरकार और केंद्रीय बैंक पर है कि विकास दर को तेजी देने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं।

भारत के लॉन्ग टर्म ग्रोथ पर क्या होगा असर?
कुछ सालों पहले भारत 8 फीसदी तक ग्रोथ रेट हासिल करने में कामयाब रहा था। लेकिन इसके बाद नॉन बैंकिंग फाइनेंस सेक्टर में संकट और उपभोग में कमी से विकास दर में गिरावट दर्ज की जा रही थी। अर्थव्यवस्था को मौजूदा नुकसान कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुआ है, जो बीमारी की मौजूदगी के बाद तक बना रहेगा। बैंक उधार देने को लेकर सावधानी बरत रहे हैं, उन्हें फंसे कर्ज में वृद्धि का डर है, जबकि व्यवसायों ने उधार और निवेश पर अंकुश लगाया है, जिससे मांग में कमी आई है।

एचएसबीसी होल्डिंग्स पीएलसी मुंबई में चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी मानते हैं कि महामारी अपने पीछे अर्थव्यवस्था पर दाग छोड़ जाएगा। संभावित विकास 5% तक गिर सकता है, जोकि वायरस के प्रकोप से पहले 6 पर्सेंट था। ड्यूश बैंक एजी के चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट कौशिक दास का अनुमान है कि संभावित विकास दर पहले के 6.5%-7% से गिरकर 5.5%-6% पर्सेंट तक आ सकती है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्य कांति घोष कहते हैं कि पिछली मंदियों का अनुभव बताता है कि वास्तविक आर्थिक गतिविधियों को पिछले सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने में 5-10 साल का समय लगता है।

नौकरी और गरीबी के लिए क्या हैं इसके मायने?
5 पर्सेंट ग्रोथ रेट के साथ भी भारतीय अर्थव्यवस्था में हर साल कार्यबल में जुड़ने वाले 1 करोड़ से अधिक युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां नहीं पैदा हो रही थीं। महामारी ने नौकरियों को खत्म कर दिया है और करोड़ो लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। एक प्राइवेट थिंक टैंक सेंटर ऑफ मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी का अनुमान है कि अप्रैल से जुलाई के बीच 1.89 करोड़ वेतनभोगी भारतीयों या कुल कार्यबल के 21 फीसदी की नौकरी छिन गई। इसके अलावा 70 लाख दैनिक वेतन भोगी जैसे फेरी वाले, सड़क किनारे सामान बेचने वाले विक्रेता या कंस्ट्रक्शन वर्कर्स का भी रोजगार छिन गया। विश्व बैंक का अनुमान है कि 1.2 करोड़ भारतीय अत्यधिक गरीबी में चले जाएंगे।

क्या कर सकता है केंद्रीय बैंक?
भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था के लिए प्रोत्साहन का बहुत अधिक बोझ उठाया है। ब्याज दरों में 115 बेसिस पॉइंट की कमी की है और फाइनैंशल सिस्टम में लिक्विडिटी ऑपरेशंस के जरिए पैसा झोंका है। सोमवार को केंद्रीय बैंक ने बॉन्ड मार्केट को सपोर्ट करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए हैं। जहां तक पर पारंपरिक मौद्रिक नीति की बात है, कुछ और करने की गुंजाइश सीमित है। रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में की गई कटौती को ग्राहकों तक पहुंचाने में बैंक सुस्त रहे हैं, मुख्य रूप से खराब कर्ज की अधिकता के कारण, ऋण वृद्धि में कमी आई है। मुद्रास्फीति के 6% की ऊपरी सीमा से अधिक होने की वजह से केंद्रीय बैंक का रुख सावधानी वाला है।

क्या हैं राजकोषीय विकल्प?
सरकार ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए 21 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया, लेकिन मांग में तेजी के लिए टैक्स कटौती जैसे प्रत्यक्ष मदद की बजाय सरकार का फोकस छोटे और मध्यम आकार के कारोबारियों को ऋण उपलब्ध कराने पर रहा। कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि सरकार लोगों के हाथ में पैसा दे और वित्तीय घाटे का बोझ रिजर्व बैंक उठाए। बॉन्ड मार्केट को विदेशियों के लिए खोलते हुए सरकार क्रेडिट रेटिंग पर इसके प्रभाव को लेकर चिंतित है।

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