DIWALI 2018: इस बार मनाएं प्रदूषण रहित ग्रीन दिवाली, जानें कैसे

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सुनीता तिवारी ‘निगम’,(नई दिल्ली):रंग-बिरंगे दीये, मिठाइयां और पटाखे…। इनके बिना दिवाली अधूरी है। और कुछ तुम भूल भी जाओ, मगर पटाखे तो चाहिए ही। पर क्या तुम्हें मालूम है कि पटाखों के जहरीले धुएं से पर्यावरण को कितना नुकसान होता है? खुद तुम्हारी सेहत पर भी इसका असर होता है। वैसे पटाखों के बिना भी तुम अपनी दिवाली शानदार बना सकते हो। ग्रीन दिवाली कैसे मनाएं, रोचक अंदाज में बता रही हैं सुनीता तिवारी ‘निगम’
‘क्या कहा कांची तूने? क्या इस बार हम सिर्फ एक ही रंग की दिवाली मनाएंगे। सिर्फ ग्रीन? यार, यह दिवाली है या कोई थीम पार्टी, जो एक रंग तय कर दिया जाए।’ रक्षित बोला। कांची कुछ कहती, उससे पहले ही रूबी बुआ कमरे में आ गईं। लगीं जोर-जोर से हंसने, बोलीं, ‘बुद्धू कहीं के…, वैसे तो तुम अपने आपको इनसाइक्लोपीडिया से कम नहीं समझते। और ग्रीन दिवाली का मतलब नहीं पता। अगर इस बार तुम सब प्रॉमिस करो, तो मैं भी तुम्हारे साथ मनाने को तैयार हूं ग्रीन दिवाली।’
‘पर बुआ, बताओ न, इसके लिए हमें क्या करना होगा?’
‘बस, नए तरीके से दिवाली मनाएंगे। आज हर तरफ स्वच्छता अभियान की बात हो रही है तो हम क्यों न स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त दिवाली मनाएं। सबसे पहले हम हमेशा की तरह अपने कमरे, अलमारी और घर की साफ-सफाई करेंगे, फिर जाएंगे शॉपिंग के लिए। परिवार के हर सदस्य के लिए ली जाएंगी डिजाइनर ड्रेसेज। साथ में लेंगे मैचिंग एक्सेसरीज। उसके बाद घर को सजाएंगे ताजे फूलों और पत्तियों से। घर में रखी सुंदर चीजों को भी फूलों के बीच-बीच में सजा सकते हैं। बाजार में मिलने वाले प्लास्टिक के सजावटी सामान और प्लास्टिक के नकली फूलों से इस बार सजावट नहीं करेंगे। दिवाली के बाद ये सब चीजें कूड़े का रूप ले लेती हैं। सड़कों पर गंदगी होती है, वह अलग। साथ ही ये चीजें जल्दी नष्ट भी नहीं होती हैं। इससे नालियां भी जाम हो जाती हैं।’ सब बच्चे रूबी बुआ की बातें ध्यान से सुन रहे थे। तभी रोहन बोला, ‘पर मेरी मम्मी तो हमेशा प्लास्टिक के फूलों से सजावट करती हैं।’
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‘हां, रोहन, अब तो हमने ग्रीन दिवाली मनाने का प्रॉमिस किया है ना। वक्त के साथ पर्यावरण को ध्यान में रखकर हमें खुद को और अपनी आदतों को बदलना ही चाहिए। से नो टू प्लास्टिक, से नो टू क्रैकर्स…।’
अभी बुआजी की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि शैंकी गुस्से से बोला, ‘प्लास्टिक तो छोड़ सकते हैं, पर पटाखे नहीं, कभी पटाखों के बिना भी दिवाली मनाई जा सकती है? यह तो नहीं हो सकता।’ रोहन की मम्मी सब बच्चों के लिए मिठाई लेकर आईं। शैंकी की बात सुनकर बोलीं, ‘बेटा, पहले वातावरण में इतना प्रदूषण नहीं होता था। आजकल तो चारों ओर वाहनों आदि का धुआं इतना फैला हुआ है कि पटाखों का जहरीला धुआं फैलते ही सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी वातावरण को विषैला करने वाले पटाखों पर रोक लगा दी है। और फिर हम अपनी थोड़ी सी खुशी के लिए बेजुबान जानवरों, बीमार लोगों और बुजुर्गों की जान जोखिम में तो नहीं डाल सकते।’
तभी शैंकी का उतरा चेहरा देखकर रूबी बुआ ने कहा, ‘तो तुम प्रॉमिस तोड़ दोगे। चलो, हम बाजार में मिलने वाले इको फ्रैंडली पटाखे ले आएंगे। इनकी बाहरी परत कागज की बनी होती है और ध्वनि प्रदूषण भी इनसे बहुत कम होता है। साथ ही ई-पटाखों का मजा भी हम एक ही जगह मिलकर लेंगे, ताकि कम-से-कम प्रदूषण हो और धन की बर्बादी भी कम हो। साथ ही कंप्यूटर पर वर्चुअल पटाखों का मजा भी लेंगे। चलो, अब बत्तीसी दिखा दो। अब तो खुश हो ना तुम। पर पटाखे सबसे अंत में चलाएंगे। पहले घर की सजावट पूरी करते हैं। अब हम अपने-अपने घर के आंगन में रंग-रंगीली रंगोली बनाएंगे। दरवाजे पर लगाएंगे, फूलों और पत्तों से बना तोरण।’
तभी अंकुर बोला, ‘एक आइडिया मैं भी देता हूं। हम बड़े-बड़े बैलून में रंग-बिरंगे कागज और ग्लिटर डालकर उन्हें तैयार रखेंगे, फिर शाम को जब चारों ओर माहौल रोशन होगा, तब इन बैलून में बारी-बारी से दीपक छुआ देंगे। बस, हल्के ‘ठा’ की आवाज के साथ ही चारों ओर उड़ेंगे रंगीन कागज, हर ओर होगी, जगमगाहट।’‘दिवाली का असली मजा लेने के लिए लाएंगे अपनी मनपसंद मिठाइयां। खुद खाएंगे, मेहमान भी मिठाई का लुत्फ उठाएंगे।’ रिंकी बोली, ‘बुआजी, हम गिफ्ट भी इको फ्रेंडली ही दें क्या?’ ‘हां, ठीक सोचा तुमने रिंकी। इको फ्रेंडली गिफ्ट लेंगे और उनको पैक भी हैंडमेड पेपर से करेंगे या जूट के बैग में डालकर देंगे। बाजार में जो चमकीले और सुंदर गिफ्ट पैकिंग पेपर मिलते हैं, वे पर्यावरण के लिए काफी हानिकारक होते हैं।’
राघव का ध्यान तो चमचमाती बल्बों की लड़ियों की तरफ था। वह बोला, ‘रोशनी के लिए रंग-बिरंगी लाइट भी तो लगानी होगी ना?’ इतने में शरद चाचू बोले, ‘जब ग्रीन दिवाली मनाने का मन बना ही लिया है, तो लाइट की लड़ियां न ही लगाओ तो अच्छा है। मिट्टी के दीये, जो बाद में मिट्टी में ही मिल जाएंगे, वही जलाने चाहिए।’‘और हां, आजकल तो बाजार में सुंदर डिजाइनर कैंडल और दीये मिलते हैं। इसके अलावा हम सब मिलकर दीयों को रंगों और शीशों आदि से सजा भी सकते हैं। बाजार में मिलने वाली सुंदर नमूनों की कंदील भी सजा सकते हैं। दीयों में तेल डालकर थोड़ा अरोमा ऑयल मिलाकर सुगंधित दीये बना सकते हैं। फिर देखना जगमगाते दीपों का आकर्षण।’
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‘रूबी बुआ, तो जो पैसे हमने पटाखों के लिए पापा से ले लिए हैं, उनका क्या करें?’ प्रियंका ने पर्स खोलकर दिखाते हुए पूछा।
‘अरे वाह! चलो, इन पैसों से हम मोहल्ले में लगाएंगे छोटा सा मेला। और जो मुनाफा होगा, उससे हम अपने मोहल्ले के बगीचे में लगाएंगे सुंदर फूल और पौधे। कुछ पैसों से करेंगे एक खास पार्टी भी।’ रेहान ने एक अच्छा आइडिया दिया। जयस, जो कि सब बच्चों में से सबसे छोटा था, बड़ी मासूमियत से पूछ बैठा, ‘जब हम दिवाली की मस्ती में डांस करेंगे, तो क्या डांस भी ग्रीन होगा?’ जयस तो चुप खड़ा था, पर बाकी बच्चे जोर से हंसने लगे। रूबी बुआ ने उसके गाल पर प्यार से थपथपाकर कहा, ‘नृत्य-संगीत से कभी वातावरण में प्रदूषण नहीं होता। इसलिए दिवाली की मस्ती में तुम सब पूरे जोश और धूम के साथ डांस कर सकते हो। पहले करेंगे, लक्ष्मी-गणेशजी की पूजा, फिर हम बड़े भी आपके साथ मनाएंगे रंग-रंगीली मौज और मस्ती से भरपूर दिवाली।’
’दीपावली भारत का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध त्योहार है, जिसकी चहल-पहल पांच दिनों तक रहती है। एक अनुमान के मुताबिक, इस त्योहार को लगभग 800 मिलियन लोग विभिन्न तरीकों से मनाते हैं।’ मलेशिया में दिवाली को हरि दिवाली के रूप में मनाया जाता है और इस दिन वहां राष्ट्रीय सार्वजनिक अवकाश भी होता है।

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