वाशिंगटन (एजेंसी)कोरोना के खिलाफ जंग में ‘इंफोडेमिक’ यानी फर्जी सूचनाओं का आदान-प्रदान सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। अमेरिका स्थित कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित कोविड-19 से जुड़े 3.8 करोड़ लेख के विश्लेषण के बाद यह खुलासा किया है। इनमें से 11 लाख से अधिक लेख में सार्स-कोव-2 वायरस से जुड़ी झूठी और बेबुनियाद जानकारियां साझा की गई थीं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन में टीका-विरोधी संगठनों, 5-जी विरोधियों और चरमपंथियों की ओर से किए गए दुष्प्रचार संबंधी पोस्ट पर भी नजर दौड़ाई गई। हालांकि, इनकी संख्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित अन्य प्रभावशाली हस्तियों की ओर से जारी किए गए फर्जी दावों की तुलना में बेहद कम थी। सबसे ज्यादा भ्रामक और बेबुनियाद सूचनाएं कोरोना के इलाज, उसकी उत्पत्ति और एहतियाती उपायों को लेकर साझा की गई थीं।
सारा इवानेगा के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक जनवरी से 26 मई के बीच अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित विभिन्न देशों में कोरोना पर अंग्रेजी में प्रकाशित 3.8 करोड़ लेख इकट्ठे किए। इनमें से 3 फीसदी यानी लगभग 11 लाख लेख पूरी तरह से फर्जी और भ्रामक जानकारियों पर आधारित थे।
मीडिया संगठनों ने सिर्फ 16.4 फीसदी लेख को उनकी विश्वसनीयता आंकने के बाद प्रकाशित किया था। सोशल मीडिया पर फर्जी दावों वाले लेख पर कम से कम 3.6 करोड़ बार चर्चा हुई। इनमें से 75 फीसदी का माध्यम फेसबुक था। अध्ययन के नतीजे ‘सोशल साइंस जर्नल’ में प्रकाशित किए गए हैं।
ट्रंप सबसे बड़े प्रसारक-
-विश्लेषण में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना संक्रमण से जुड़ी फर्जी सूचनाओं के सबसे बड़े प्रसारक मिले। जनवरी में चीन के वुहान में कोविड-19 की दस्तक की जानकारी सामने आने के बाद इंटरनेट पर जो 11 लाख फर्जी सूचनाएं साझा की गईं, उनमें से लगभग 38 फीसदी में ट्रंप या उनकी ओर से किए गए बेबुनियाद दावों का जिक्र था।
तेजी से फैला संक्रमण
-शोधकर्ताओं ने दावा किया कि फर्जी सूचनाओं के आदान-प्रदान ने लाखों अमेरिकियों की जान को खतरे में डाल दिया। बड़ी संख्या में नागरिकों में यह संदेश गया कि मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने जैसे एहतियाती उपायों पर अमल जरूरी नहीं। उनकी लापरवाही से संक्रमण की रोकथाम बेहद मुश्किल हो गई।
जान पर मंडराया खतरा
-अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोरोना के उपचार से संबंधित भ्रामक जानकारियां प्रसारित होने से भावी टीके को लेकर असमंजस की स्थिति पनपी। लोग ऐसे उपचार आजमाने को प्रेरित हुए, जिनका कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं था। ट्रंप के साधारण क्लीनर से कोरोना के इलाज के दावे के बाद एरिजोना में तो एक युवक की क्लोरोक्वीन पीने से मौत तक हो गई।
मीडिया पर उठाए सवाल
-शोधकर्ताओं ने कोरोना से जुड़े दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि ज्यादातर मीडिया संगठनों ने मशहूर हस्तियों के बयान की विश्वसनीयता परखे बिना ही उसे प्रसारित किया। कुछ कंपनियों ने ट्रंप जैसे नेताओं के दावों को जांचने की कोशिश जरूर की, पर तब तक उसमें दर्ज जानकारी अन्य स्रोतों के जरिये वायरल हो चुकी थी।
सबसे ज्यादा दुष्प्रचार-
विषय लेख
-कोरोना का चमत्कारी इलाज 295351
-राजनीतिक षड्यंत्र, शक्ति संतुलन 49162
-ट्रंप को हटाने की डेमोक्रेटिक साजिश 40456
-वुहान की लैब में बना जैविक हथियार 29312
-बिल गेट्स ने महामारी की पटकथा लिखी 27931
-5-जी रोग-प्रतिरोधक क्षमता के लिए घातक 23199
खतरनाक-
-800 मौतें हुईं फर्जी और भ्रामक जानकारियों के प्रसार से
-5876 लोगों को इन पर अमल के चलते भर्ती करना पड़ा
-60 मामलों में मरीज की आंखों की रोशनी तक चली गई
(स्रोत : अगस्त में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन’ में छपे अध्ययन में दावा)