BUS ACCIDENTS:बस दुर्घटनाओं में हर साल जा रही दस हजार लोगों की जान, यही गलती करता है हर ड्राइवर

- Advertisement -
नई दिल्ली(एजेंसी):खतरनाक रास्ता, खटारा वाहन, अकुशल चालक और क्षमता से अधिक भार..उत्तराखंड के अलमोड़ा में बस दुर्घटना में 36 लोगों के जान गंवाने की घटना अपने देश में सड़क सुरक्षा की मूलभूत कमियों-कमजोरियों की ओर ही ध्यान दिलाती है। बसें प्राय: दुर्घटना की शिकार होती हैं और यह संख्या बढ़ रही है।

करीब 10 हजार लोगों की मौत
सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ड्राइवरों के अपने वाहनों पर नियंत्रण खो देने के कारण दुर्घटनाओं की संख्या 2022 में पांच प्रतिशत से अधिक बढ़ गई। ऐसे हादसों में 9,862 लोगों की जान चली गई। 2023 के आंकड़े अगले सप्ताह जारी किए जाने के आसार हैं और यह संख्या दस प्रतिशत तक बढ़ चुकी है।
ड्राइवर पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं

मंत्रालय दुर्घटनाओं के इन मामलों को रन आफ द रोड श्रेणी में रखता है यानी किसी वाहन का अनियंत्रित होकर हादसे का शिकार होना। इसमें वाहनों का पहाड़ी इलाकों में खाई में गिरना भी शामिल है, जैसा कि उत्तराखंड में हुआ। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ अनुराग कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि यह दुर्घटना दुखद है, लेकिन इसके कारण वही हैं जो पहले भी जाने-समझे जा चुके हैं। हमारे ज्यादातर ड्राइवर पूरी तरह प्रशिक्षित ही नहीं हैं और सुरक्षा के जो सामान्य मानक हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।

ओवरलोडिंग से बढ़ जाता है जोखिम
  • अगर उत्तराखंड में दुर्घटना की शिकार हुई बस में क्षमता से अधिक यात्री थे तो स्पष्ट है कि इससे बस को चलाने में संतुलन और उसके संवेग पर असर पड़ेगा। हर बस सिटिंग कैपेसिटी यानी उसमें उपलब्ध सीटों को ध्यान में रखकर डिजाइन की जाती है। जितनी अधिक ओवरलोडिंग होगी, उतना ही जोखिम अधिक होगा।
  • 2022 में बसों से जुड़ी पांच हजार से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1798 लोगों की जान चली गई। अगर वाहनों की श्रेणी के आधार पर दुर्घटनाओं को देखा जाए तो बसों का प्रतिशत 40.9 है और उनमें जान गंवाने वालों का प्रतिशत 28.7।
  • उत्तराखंड की दुर्घटना के संदर्भ में शुरुआती तौर पर यह सामने आ रहा है कि चालक को झपकी आ जाने के कारण उसने अपने वाहन से नियंत्रण खो दिया। यह पहलू नया नहीं है, लेकिन इससे निपटने के उपाय नहीं हो पा रहे हैं-न तो तकनीकी स्तर पर और न ही मनोवैज्ञानिक रूप से।
मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझते

अनुराग कुलश्रेष्ठ के मुताबिक, सड़क सुरक्षा के लिए काम कर रहे उनके संगठन ने पिछले साल गुरुग्राम में सौ से अधिक ड्राइवरों के स्वास्थ्य और उनके मनोवैज्ञानिक स्तर की जांच की थी तो उनमें से आधे से अधिक ब्लड प्रेशर अथवा किसी मनोवैज्ञानिक समस्या से जूझते पाए गए थे। उनके लिए काम की स्थितियां ही पेशेवर रूप से उपयुक्त नहीं हैं।

 

ऐसे में उनके लिए उत्तराखंड जैसी जोखिम वाली जगहों पर वाहनों को चलाना स्वाभाविक रूप से खतरनाक होगा। समस्या यह भी है कि ऐसे लोग भी वाहन यहां तक कि व्यावसायिक वाहन चला रहे हैं जिनके पास वैध लाइसेंस नहीं है। लगभग 12 प्रतिशत दुर्घटनाएं ऐसे वाहन चालकों के कारण ही होती हैं।

Related Articles

http://media4support.com/wp-content/uploads/2020/07/images-9.jpg
error: Content is protected !!