नई दिल्ली(एजेंसी): Vijay Diwas History: 26 जुलाई.. कारगिल विजय दिवस। यही वो दिन था, जब साल 1999 में उस वक्त के जम्मू-कश्मीर (मौजूदा लद्दाख) के कारगिल में दो महीने से पाकिस्तान संग जारी जंग खत्म हुई थी। कारगिल की सभी चौकियों पर फिर से तिरंगा लहराने लगा। इस दिन भारत ने न सिर्फ जंग जीती बल्कि दुनिया में ऐसे देश के रूप मे अपनी छवि भी मजबूत की, जो लोकतांत्रिक है और अपनी सीमाओं की रक्षा करना भी बखूबी जानता है।
26 जुलाई को क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस?
कारगिल शौर्य की गाथा हमारे सैनिकों के अटल इरादे और भारत मां के लिए मर-मिटने वाले जुनून को याद दिलाती है। उस वक्त करगिल की हजारों फीट ऊंची चोटियों पर तैनात दुश्मन और नीचे हमारे सैनिक। एकदम खड़ी चढ़ाई और दोनों ओर गहरी खाई।
उस पर भी मौसम का कहर, माइनस में तापमान और हाड़ कंपाने वाली भीषण ठंड। न भरपूर मात्रा में गोला-बारूद, न भूख मिटाने को राशन-पानी और ना ही घावों पर लगाने को मरहम और दवा। न रास्तों को बताने वाले मैप और न आधुनिक टेक्नोलॉजी। यानी सबकुछ दुश्मन के पक्ष में था।
फिर भी हमारे जांबाज सैनिक भूख प्यास की परवाह किए बिना सिर पर कफन बांधकर आगे बढ़ते रहे। सैकड़ों शहीद हुए और हजारों घायल, लेकिन बहादुर जवान अपने अटल इरादे से पीछे नहीं हटे।
आखिरकार 26 जुलाई 1999 को करगिल पर वापस भारत की फौज ने तिरंगा लहराया। देश में जश्न मना, लेकिन इसमें भारत मां की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति देने वाले 674 बहादुर जवान शामिल न हो सके। देशवासियों ने उन जवानों के शौर्य को सलाम किया। अब उस जीत के 25 साल पूरे हो गए हैं।
यह तस्वीर कारगिल वॉर मेमोरियल की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है।
कारगिल युद्ध: क्यों और कब शुरू हुआ?
भारतीय और पाकिस्तानी सेना सर्दियों में चोटियों पर बनी चौकियों को खाली कर नीचे चली जाती थीं। गर्मियां आते ही फिर से दोनों ओर की चौकियों पर सैनिकों की तैनाती हो जाती थी, लेकिन साल 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना की सर्दियों में खाली की गई चौकियों पर चोरी-छिपे कब्जा कर लिया था। उस वक्त पाकिस्तानी सेना की कमान परवेज मुशर्रफ के हाथ में थी।
3 मई 1999 को एक चरवाहे ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर कश्मीरी वेशभूषा में बड़ी संख्या में लोगों को चहलकदमी करते देखा। उसने सेना की टुकड़ी को इसकी जानकारी दी। तब तक पाकिस्तानी सैनिक 15 किलोमीटर आगे आ चुके थे।
5 मई को भारतीय सैनिकों की पहली टुकड़ी यानी कैप्टन सौरभ कालिया पांच जवानों के साथ पेट्रोलिंग पर पहुंचे। पाकिस्तानी सैनिकों ने बजरंग चोटी पर कैप्टन कालिया समेत अन्य जवानों की बेहद बेरहमी से हत्याकर शवों के टुकड़े कर दिए.. आंखें निकाल लीं.. कान काट दिए।
गूगल ट्रेंड पर कारगिल
इसके बाद 14 मई को जंग का एलान हुआ। पाकिस्तानी घुसपैठियों को भगाने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय लॉन्च किया। 26 मई को भारतीय वायुसेना (IAF) ने ऑपरेशन विजय में सहयोग करते हुए ऑपरेशन सफेद सागर लॉन्च किया।
करीब तीन महीने तक चले इस युद्ध में …
- 18 मई को पॉइंट 4295 और 4460 पर वापस कब्जा किया।
- 13 जून को तोलोलिंग और प्वाइंट 4590 पर कब्जा में लिया।
- 14 जून को भारतीय सेना ने ‘हंप’ को कब्जे में लिया।
- 20 जून को भारतीय सैनिकों ने प्वाइंट 5140 पर कब्जा किया।
- 28 जून को भारतीय सैनिकों ने प्वाइंट 4700 पर कब्जा किया।
- 29 जून को ‘ब्लैक रॉक’, ‘थ्री पिम्पल’ और ‘नॉल’ क्षेत्र पर तिरंगा लहराया।
- 04 जुलाई को टाइगर हिल पर लगातार 11 घंटे के संघर्ष के बाद प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर कब्जा किया।
- 05 जुलाई को भारतीय सैनिकों ने प्वाइंट 4875 पर कब्जा कर लिया
- 14 जुलाई को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ के सफल होने की घोषणा की।
- 26 जुलाई 1999 को करगिल युद्ध समाप्त हो गया।
कारगिल पर कौन कब्जा करना चाहता था?
पाकिस्तान का मंसूबा सिर्फ करगिल की चोटियों पर कब्जा जमाने का नहीं, बल्कि लेह और सियाचिन तक पाकिस्तानी परचम फहराने का था।
दरअसल, पाकिस्तान चाहता था कि भारत की सुदूर उत्तरी चोटियां, जहां सियाचिन ग्लेशियर की लाइफ लाइन एनएच-1डी को किसी तरह काट कर उस पर कब्जा करने ले। ताकि लद्दाख की ओर जाने वाली रसद के काफिलों की आवाजाही को रोक सके और भारत को मजबूर होकर लेह और सियाचिन छोड़ना पड़े। हालांकि, भारतीय सेना ने उसके नापाक मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया।
क्या इजरायल ने की थी भारत की मदद
कारगिल युद्ध में दुश्मन ऊंचाई पर था और हमारे सैनिक नीचे। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में इजरायल भारत के लिए संकटमोचक बना था। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के बावजूद इजरायल ने भारतीय सेना को गोला-बारूद, मोर्टार, गोलियां और हथियार मुहैया कराए।
इतना ही नहीं इजरायल की ओर से भारत को ऊंचाई पर निगरानी करने वाले हेरोन और सर्चर जैसे यूएवी भी दिए। इससे भारतीय सेना को घुसपैठियों की सटीक लोकेशन पत चली थी। साथ ही सैटेलाइट्स से फोटोग्राफ भी दिए थे।
इतना ही नहीं, युद्ध के मैदान पर तैनात मिराज 2000H फाइटर के लिए इजरायल ने लेजर गाइडेड बम भी दिए थे। इसकी जानकारी खुद दिल्ली स्थित भारतीय दूतावास ने साल 2021 में एक ट्वीट में दी थी।
कारगिल में मिली थी राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक
करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना की कमान जनरल वीपी मलिक के हाथ में थी। पूर्व सेना प्रमुख मलिक ने करगिल युद्ध के बारे में बात करते हुए कहा था कि भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक कार्रवाई का मिलाजुला उदाहरण था।
तब सेना ने मुश्किल हालात बड़ी सैन्य और कूटनीतिक जीत में बदला था। दूसरी ओर पाकिस्तान अपने मंसूबों में बुरी तरह नाकाम नाकाम रहा था। इसके लिए उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी था।
जरा याद करो कुर्बानी… वॉर मेमोरियल
कारगिल युद्ध में शहीद सैनिकों अदम्य साहस और शौर्य की याद में द्रास सेक्टर में कारगिल वॉर मेमोरियल बनवाया गया, जो नवंबर 2004 में बनकर तैयार हुआ। बता दें कि द्रास सेक्टर से वो चोटियां नजर आती हैं, जहां पाकिस्तान की सेना ने कब्जा जमा लिया था।
वे चोटियां जहां से दुश्मन बरसा रहा था गोलियां
- गन हिल (पॉइंट 5140)
यह चोटी तोलोलिंग कॉम्प्लेक्स में उन ऊंची चोटियों में से एक थी, जहां से दुश्मन गोलियां बरसा रहा था। कैप्टन विक्रम बत्रा की अगुआई में सेना ने इस पॉइंट को 20 जून की सुबह में अपने कब्जे में किया था। अब इसे गन हिल के नाम से जाना जाता है।
- थ्री पिंपल
यह चोटी तोलोलिंग नाला के पश्चिम में स्थित है, जहा से राष्ट्रीय राजमार्ग और द्रास सेक्टर पर नजर रखी जा सकती है। करगिल जंग में इस चोटी पर कब्जा इसलिए जरूरी था कि यहां से दुश्मन हमारे सैनिकों की आवाजाही पर नजर रख सकता था। 29 जून को राजपूताना राइफल्स ने इस चोटी पर कब्जा कर लिया था।
- टाइगर हिल
16500 फीट ऊंची इस चोटी पर जब 4 जुलाई 1999 को भारतीय सैनिकों ने तिरंगा फहराया, जिसने करिगल जंग का रख ही मोड़ दिया था।
टाइगर हिल पर घुसपैठियों को मारते हुए यहां नौ भारतीय सैनिक शहीद हुए थे, जबकि इससे पहले अमर बलिदानियों ने 92 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। सेना की एक बेहद बहुचर्चित तस्वीर ‘जांबाज सैनिक और शान से लहराता तिरंगा’ इसी चोटी की है।
- बत्रा टॉप (पॉइंट 4875)
पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 15,990 फीट की ऊंचाई पर स्थित रणनीतिक तौर अहम इस चोटी पर बंकर बना लिए थे। एक सीधी चढ़ाई वाली इस चोटी से पाकिस्तानियों को खदेड़ हुए भारतीय सेना के कैप्टन विक्रम बत्रा समेत 11 जांबाजों ने सर्वोच्च बलिदान दिया। कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार परमवीर चक्र से विभूषित किया। कैप्टन बत्रा के सम्मान में इस पॉइंट का नाम भी बत्रा टॉप रखा गया।