सौरभ सिंह,(गाजियाबाद):
बाबू जी, दो साल से दिल्ली में नौकरी कर रहा हूं। आठ हजार वेतन है। पहले इसमें से थोड़ा बहुत बचाकर हर महीने घर भी भेज देता था, लेकिन दो महीने से कुछ नहीं बच रहा। अब पिछले महीने का वेतन मिला था, उससे अब तक का तो काम चल गया। लेकिन बचे हुए सात सौ 80 रुपये में पेट की भूख शांत करूं या कमरे का किराया दूं। बाबूजी कोई जुगाड़ कर दो, एक बार मैं अपने घर चला जाऊं, फिर दोबारा इस दिल्ली में नहीं आउंगा। यहां तो बीमारी से बच भी जाएंगे तो ये भूखमरी मार डालेगी। यूपी गेट पर शनिवार को कुछ इसी तरह से अपना दुखड़ा नवादा विहार के रहने वाले रामकेश सिंह ने पुलिस को सुनाया। उसने पैदल ही आगे जाने देने की गुहार की।
रोते हुए पुलिस से गुहार लगा रहे रामकेश सिंह से ‘हिन्दुस्तान’ ने बातचीत की। उसने बताया कि 12वीं तक पढ़ाई की है। उसके गांव से कॉलेज दूर है, इसलिए पढ़ाई छोड़ कर वर्ष 2017 में दिल्ली आ गया। यहां महिपाल पुर में रह कर एक होटल में नौकरी करता है। आठ हजार रुपये महीना मिलता है। कुछ ओवरटाइम भी कर लेता है। लेकिन खाने पीने के बाद इतना पैसा नहीं बचता कि एक बढ़िया कपड़ा भी खरीद सके। बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत बचत कर दो महीने पहले तक पिता जी को भेज देता था, लेकिन पिछले महीने से कुछ नहीं बच रहा। इस समय जेब में कुल 780 रुपये हैं। इस पैसे तो एक महीने का राशन पानी नहीं चल सकता ना। होटल वाले ने पहले ही छुट्टी कर दी है। अब तो उसके सामने दो ही विकल्प है। या तो यहां रहकर भूखा मरे या फिर पैदल चलते हुए घर चला जाए। हप्ते दस दिन में तो पहुंच ही जाएगा।
बीमारी से कम भूखमरी के डर से भाग रहे हैं लोग
यूपी गेट पर शनिवार को पहुंचे ज्यादातर लोग कमजोर आयवर्ग के लोग थे। इन लोगों में कोरोना वायरस का जितना डर नहीं था, उससे कहीं ज्यादा डर था कि यहां रूक जाने पर खाएंगे क्या। लोगों को भूखमरी का डर सता रहा है। दूसरी आशंका यह है कि अभी तो पुलिस पैदल जाने दे रही है, बाद में यदि जान से भी रोक दिया या लॉकडाउन और बढ़ गया तो यह लोग भूख से ही मर जाएंगे।
दोबारा नहीं आएंगे दिल्ली
जीवन सवांरने और दो पैसे कमाने के लिए दिल्ली आए ज्यादातर लोगों का अब दिल्ली से मन भर गया है। यूपी गेट पर शनिवार को उमड़े दर्जनों युवाओं ने माना कि दिल्ली में भले ही दो पैसा कमा कर बचा लेते हैं, लेकिन गांव जैसा सुकून नहीं है। यहां बीमारी है, भूखमरी है और 24 घंटे की भागदौड़ में अपने लिए कोई समय नहीं है। पांच दिन के लॉकडाउन में ही जो कमाया, सब खत्म हो गया। दिल्ली से भाग रहे ज्यादातर लोगों ने कहा कि एक बार यहां से निकल गए तो दोबारा लौट कर नहीं आएंगे। रामकेश जैसे अन्य युवाओं ने बैरियर पर खड़े पुलिस कर्मियों से गुहार लगाते हुए कहा कि बस एक बार बैरियर हट जाए तो वह अपने गांव जाकर ही रुकेंगे।