FILM REVIEW:शुभ मंगल ज्यादा सावधान

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#शादी मुहूर्त देखकर की जाती है, लेकिन प्यार मुहूर्त नहीं देखता #जेंडर भी नहीं देखता।
यही संदेश है शुभ मंगल ज्यादा सावधान का।
आयुष्मान अपनी हर फिल्म के साथ निखर रहे हैं, जिस तरह की फिल्मों का वह चुनाव कर रहे हैं, वह हर बार पिछले वाले से ज्यादा बड़ा रिस्क लेते हैं। इसी वजह से उनका एक अलग वर्ग है, उनके प्रशंसक भी उन्हें इसी रूप में पसंद करते हैं। इसलिए अब आयुष्मान की फैन फॉलोइंग किसी भी सुपरस्टार से कम भी नहीं है। समलैंगिकता के विषय पर हंसल मेहता की अलीगढ़ बॉलीवुड के लिए किसी नजीर से कम नहीं।
जितनी संवेदनशीलता से #मनोज वाजपेई ने #अलीगढ़ में श्रीनिवास रामचंद्र सिरस के चरित्र का अभिनय पर्दे पर उतारा था।
समलैंगिकता को परिभाषित करने के लिए उतने ही हास्यास्पद शैली का आयुष्मान ने इस्तेमाल किया है। शुभ मंगल ज्यादा सावधान हल्के-फुल्के और बेहद मजाकिया लहजे में आपको समझा जाती है कि समलैंगिकता क्या है, और इसके प्रति समाज का नजरिया क्या होना चाहिए। यदि कोई जन्म से ही समलैंगिक है तो यह कोई बीमारी नहीं है। फिल्म के कई संवाद और दृश्य ऐसे हैं जो आपको पेट पकड़कर हंसने के लिए मजबूर कर देंगे। खासतौर पर बधाई हो के बाद नीना गुप्ता और गजराज राव की जोड़ी ने फिर कमाल किया है। गजराज राव इतने कमाल के अभिनेता हैं कि आप पूरे दिन उनके अभिनय की ऊंचाई की तारीफ कर सकते हैं। फिल्म में चमन के रोल में मानुषी चड्ढा ने बेहद प्रभावित किया है। तो आयुष्मान खुराना के ऑपोजिट उनके समलैंगिक बॉयफ्रेंड के रूप में जितेंद्र कुमार बेहद स्वाभाविक लगे हैं। जितेंद्र कुमार को आने वाले दिनों में कई और फिल्में मिलेंगी।
इसे एक इत्तेफाक ही कहिए कि अलीगढ़ के निर्देशक हंसल मेहता है और शुभ मंगल ज्यादा सावधान के निर्देशक हितेश कैवल्य।
समलैंगिकता जैसे दबे-कुचले विषय पर फिल्म बनाने वाले हाल-फिलहाल के दोनों ही निर्देशकों का नाम H से शुरू होते हैं। दोनों मैं बेहतर निदेशक के गुण भी हैं।
लेकिन शुभ मंगल सावधान मैं हितेश का डायरेक्शन दर्शकों को बांध कर रखता हैं। कहानी बताने का हितेश का तरीका बेहद यूनिक है फिल्म में सबसे गंभीर दृश्य को उन्होंने सबसे मजाकिया बना दिया है, यह रचनात्मकता की मिसाल है जिससे आप जीवन के सबसे दुखी क्षणों को हंसते खेलते पीछे छोड़ देते हैं।
हालांकि फिल्म के कुछ दृश्य गैरजरूरी भी हैं, काली गोभी और शहर में कर्फ्यू वाला हिस्सा थोड़ा सा कम तैयारी के साथ पर्दे पर उतारा गया। कई स्थानों पर संवाद ओवरएक्टिंग का अहसास भी कराते हैं। काफी मेहनत के बाद भी आयुष्मान और हंसल मेहता कहीं-कहीं ढीले पड़े हैं। लेकिन ओवरऑल यह फिल्म मजेदार है।
बेहद गंभीर विषय पर बनी एक मजाकिया लहजे वाली यह फिल्म सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध मुक्त किए जाने वाले फैसले के इर्द-गिर्द है। इस फैसले को फिल्म में बेहद रोचक ढंग से दिखाया गया है।

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