नई दिल्ली(एजेंसी): आज की भागमभाग भरी लाइफ में छोटी छोटी समस्याएं कब टेंशन बढ़ा कर आपको बीपी का मरीज बना देती हैं। लेकिन योग में आपकी इस समस्या हल है। कुछ ऐसे योगाआसन हैं जिन्हें करके आप हाई ब्लड प्रेशर पर काबू पा सकते हैं।
सूक्ष्म व्यायाम
यौगिक क्रियाओं के अंदर सूक्ष्म व्यायाम बहुत सरल, सहज तथा अत्यन्त प्रभावी होते हैं। शरीर के सारे जोड़ों का सरल व्यायाम सूक्ष्म व्यायाम के अन्तर्गत आता है। यदि इनका प्रतिदिन लगभग 10 मिनट नियमित अभ्यास करें तो शरीर के अंदर पर्याप्त गर्मी बनी रहती है और वह बाहर की ठंड से खुद को बेहतर ढंग से समायोजित कर लेती है। इससे ठंड का प्रभाव शरीर पर कम पड़ता है।
आसन
ताड़ासन, त्रिकोणासन, वीरासन, सूर्य नमस्कार, वज्रासन, कण्डूकासन, सुप्त वज्रासन, अर्धमत्स्येद्रासन, गोमुखासन, पवनमुक्तासन, मर्कटासन तथा शलभासन का नियमित अभ्यास करने से रक्तचाप को ठंड में भी नियंत्रित किया जा सकता है।
पवनमुक्तासन की अभ्यास विधि
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। शरीर को ढीला तथा सहज छोड़ दें। अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर उसे दोनों हाथों की हथेलियों से पकड़कर छाती की तरफ लाएं। श्वास-प्रश्वास सहज रखें। इसके बाद सिर को जमीन से ऊपर उठाकर दाएं पैर को नाक से छूने का प्रयास करें, किन्तु जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुककर वापस पूर्व स्थिति में आएं। यही क्रिया बाएं पैर से तथा दोनों पैरों से एक साथ भी करें। यह एक चक्र है। प्रारम्भ में इसके दो से तीन चक्रों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे चक्रों की संख्या बढ़ाकर 10 से 15 कर सकते हैं।
सावधानी
जिन्हें सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस हो, वे इसके अभ्यास में सिर को जमीन से न उठाएं। शेष क्रिया समान रहेगी।
प्राणायाम
उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोग योग का पहले से अभ्यास नहीं कर रहे हैं तो उन्हें पहले यौगिक श्वसन क्रिया तथा नाड़ीशोधन के सरल रूप में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए।
क्या है सही तरीका
पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गले व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। एक गहरी धीमी तथा लम्बी श्वास अंदर लेते हुए पहले पेट को फुलाएं। उसके बाद सीने को फुलाएं। जब पूरी श्वास अंदर भर जाए तो श्वास को बाहर निकालना प्रारम्भ करें। सांस धीरे-धीरे छोड़ें। निकालते समय सबसे पहले सीने को पिचकाएं तथा अंत में पेट को यथासंभव पिचकाएं। यह यौगिक क्रिया श्वसन का एक चक्र है। प्रारम्भ में 12 चक्रों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे चक्रों की संख्या बढ़ाते जाएं। इसके बाद नाड़ीशोधन प्राणायाम का भी अभ्यास करें।