चंडीगढ़(एजेंसी):पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में माना कि पत्नी द्वारा पति को नपुंसक (ट्रांसजेंडर) कहना क्रूरता है यह तलाक का ठोस आधार है।
न्यायमूर्ति सुधीर सिंह और जसजीत सिंह बेदी की खंडपीठ एक पारिवारिक अदालत द्वारा 12 जुलाई को अपने पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा, जो पति की मां की गवाही से प्रभावित था। पति की मां ने बताया कि उसकी बहू अक्सर उसके बेटे को नपुंसक कहकर अपमानित करती थी और उस पर ट्रांसजेंडर बच्चे को जन्म देने का आरोप लगाती थी।
‘अपमानजनक टिप्पणी क्रूरता’
अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति की लिंग पहचान पर सवाल उठाने के उद्देश्य से की गई ऐसी अपमानजनक टिप्पणी क्रूरता है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि प्रतिवादी-पति को नपुंसक (ट्रांसजेंडर) कहना और उसकी मां को ट्रांसजेंडर को जन्म देने वाली कहना क्रूरता है।
पति ने अपनी पत्नी पर पोर्न देखने और मोबाइल गेमिंग की लत होने का आरोप लगाया। दावा किया गया कि उसने उनके अंतरंग जीवन के बारे में अनुचित मांगें रखीं और उसकी शारीरिक फिटनेस को कमतर आंका।
इसके विपरीत, पत्नी ने इन आरोपों से इनकार किया और तर्क दिया कि उसे गलत तरीके से उसके वैवाहिक घर से निकाल दिया गया और उसके ससुराल वालों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया।
कोर्ट ने खारिज की महिला की अपील
उसने दावा किया कि उन्होंने उसे नशीली दवाइयां दीं और उस पर हावी होने के लिए रहस्यमयी प्रथाओं का इस्तेमाल किया, जिसका उसके पति और ससुराल वालों ने खंडन किया। दंपति के बीच छह साल के अलगाव को उजागर करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि विवाह पूरी तरह से टूट चुका था।
यह निष्कर्ष पारिवारिक न्यायालय के फैसले की पुष्टि करता है कि विवाह को जारी रखना अस्थिर था। इसी के साथ कोर्ट ने महिला की अपील खारिज कर दी।
साल 2017 में हुई थी शादी
इस जोड़े की शादी दिसंबर 2017 में हुई थी। तलाक की याचिका में पति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी देर रात तक जागती थी और अपनी बीमार मां से ग्राउंड फ्लोर से पहली मंजिल पर लंच भेजने के लिए कहती थी।खुलासा किया गया कि वह किसी और से शादी करना चाहती थी। इसके जवाब में, पत्नी ने आरोपों से इनकार किया और इसके बजाय कहा कि उसे उसके पति ने वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया था।