जिनके DMF घोटाले में सने हाथ उन्हें गिरफ्तारी का सता रहा डर माया की गिरफ्तारी के बाद प्रशासनिक महकमे और सप्लायरों में खलबली

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कोरबा@M4S:जिले में खनिज संस्थान न्यास की राशि में 40 टका कमीशनखोरी पर बंदरबांट करने के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी जांच तेज कर दी है। तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू कोयला के मामले में जहां जांच का सामना कर रही हैं, वहीं उनके कार्यकाल में खास रही सहायक आयुक्त आदिवासी विकास विभाग  माया वारियर की डीएमएफ घोटाला में गिरफ्तारी के बाद से कोरबा  में खलबली मच गई है। कब किसकी गिरफ्तारी हो जाए इसकी चिंता घोटालेबाजों को सताने लगी है।
डीएमएफ से अनेक अनुपयोगी कार्यों का आवंटन प्राप्त कर उसका ठेका लेने, ठेका हासिल कर बेच देने, विभिन्न उपयोगी-अनुपयोगी सामानों की पूर्ण अदूरदर्शिता के साथ खरीदी व सप्लाई के नाम पर बेहिसाब बिलों के जरिए राशि आहरण करने वालों की लंबी- चौड़ी लिस्ट ईडी के पास मौजूद है। ऐसे तमाम लोगों में खलबली मच गई है जिनके हाथ डीएमएफ घोटाले में सने हुए हैं। सूत्र बताते हैं कि आदिवासी विकास विभाग के विभागीय कर्मियों से लेकर खनिज विभाग भी लपेटे में आ सकता है। ठेकेदारों, सप्लायरों और दलालों को मिलाकर लगभग एक से डेढ़ दर्जन गिरफ्तारी अकेले कोरबा जिले से होने की संभावना है। ऐसे लोग या तो अंडरग्राउंड होने की फिराक में हैं या फिर समर्पण करने या दूसरा रास्ता अपनाने की जुगत लग रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जल्द ही ईडी की टीम कोरबा आकर घोटाले में शामिल लोगों की गिरफ्तारी कर सकती है। कोरबा जिले को डीएमफ़ के तहत बड़ी रकम अरबों में मिलती है। सूत्र बताते हैं कि पूर्व कलेक्टर रानू साहू के कार्यकाल में सहायक आयुक्त ने अपने अधीन हॉस्टल्स और अन्य भवनों में डीएमफ़ की रकम का जमकर दुरूपयोग किया। कार्यकाल के दौरान छात्रावासों के मरम्मत और सामान खरीदी के लिए डीएमफ़ के करोड़ो रूपये के फंड का इस्तेमाल किया गया और इसकी मूल नस्ती ही कार्यालय से गायब कर दी गयी। बताया जा रहा है कि 6 करोड़ 62 लाख रूपये में करीब 3 करोड़ रूपये का विभाग ने कई ठेकेदारों को भुगतान भी कर दिया, लेकिन किस काम के एवज में कितना भुगतान किया गया, इससे जुड़े सारे दस्तावेज ही विभाग से गायब हो गए। कोरबा में अलग-अलग टेंडर आवंटन में बड़े पैमाने पर आर्थिक अनियमितता की गई है। टेंडर भरने वालों को अवैध लाभ पहुंचा कर सरकारी धन का दुरुपयोग किया गया। ईडी जांच में पाया गया है कि टेंडर की राशि का 40 फीसदी सरकारी अफसरों को कमीशन के रूप में दिया जाता रहा। प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20 प्रतिशत अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने लिए। कई विभागीय अधिकारियों ने अपने पद का गलत इस्तेमाल किया। ईडी के तथ्यों के मुताबिक टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर आदि के साथ मिलकर सामग्री सप्लाई में वास्तविक कीमत से ज्यादा का बिल भुगतान कर दिया। आपस में मिलकर साजिश करते हुए पैसे कमाए गए। अब देखना होगा की कोरबा से अगली गिरफ्तारी किसकी होती है

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