नई दिल्ली(एजेंसी): जम्मू कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर वोटों की गिनती जारी है। शाम 5 बजे तक आए रुझानों में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को बहुमत मिलता दिख रहा है। एनसी-कांग्रेस 48 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं, जबकि भाजपा 29 सीटों पर आगे चल रही है। निर्दलीय और अन्य पार्टियां 11 सीटों पर आगे हैं।
जम्मू रिजन की बात करें तो भाजपा को पहले की तरह बढ़त मिलती दिख रही है। जब जम्मू रिजन में सीटें कम होती थी तब भी भाजपा आसानी से26-27 सीटें जीतती रही है। 2007 और 2014 में जब सीटें बढ़ाकर 43 की गई तब भी भाजपा ने अपनी बढ़त बनाई। वहीं, कश्मीर में भाजपा को पहले भी फायदा नहीं मिला और अब भी लाभ नहीं हुआ।
हारकर भी जीत गई भाजपा
लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर को कभी भी अलग-थलग नहीं पड़ने देगा। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर भी भाजपा जहां थी, आज भी वही हैं। यह भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन एक देश और राष्ट्र के रूप भाजपा का यह कदम काफी सराहनीय रहा।
भले ही जम्मू-कश्मीर में भाजपा की सरकार नहीं बन पा रही हो, लेकिन एक राष्ट्र निर्माण के रूप में कश्मीर में शांति से चुनाव करवाना बड़ी चुनौती रही। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अन्य भावनात्मक मुद्दों को उठाकर अपनी मजबूत पकड़ बना ली और इसका फायदा उसे चुनाव में मिलता दिख रहा है।
क्या अनुच्छेद 370 होगी बहाल?
नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने मंगलवार को कहा कि लोगों ने विधानसभा चुनाव में अपना जनादेश दिया है और उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने घोषणापत्र में 12 गारंटी की घोषणा की थी। इनमें अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का भी वादा किया गया था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या फिर से जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल कर दिया जाएगा?
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने मंगलवार को कहा कि पिछले पांच सालों में नए संगठन बनाकर उनकी पार्टी को खत्म करने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन जनता ने इस चुनाव में उनके मंसूबों को खत्म कर दिया। मैं बडगाम के मतदाताओं का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे वोट दिया। मुझे सफल बनाया और मुझे एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के लोगों की सेवा करने का मौका दिया।
पीडीपी हुई कमजोर
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। प्रतिबंधित जमात समर्थक उम्मीदवारों के निर्दलीय मैदान में आने का नुकसान पीडीपी को झेलना पड़ा। पीडीपी के खाते में केवल तीन ही सीटें आईं। कुपवाड़ा से फायज, तरल से रफीक अहमद और पुलवामा से वहीद-उर-रहमान ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में पीडीपी का कमजोर होना भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के फायदेमंद रहा।
पीडीपी उम्मीदवार और महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा महबूबा मुफ्ती ने अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा कि मैं लोगों के फैसले को स्वीकार करती हूं। बिजबेहरा में सभी से मुझे जो प्यार और स्नेह मिला है, वह हमेशा मेरे साथ रहेगा।
नहीं चला रशीद फैक्टर
इंजीनियर रशीद बड़ा फैक्टर नहीं बन पाए और यह साबित हो गया कि लोकसभा चुनाव में उनकी जीत केवल तात्कालिक माहौल के कारण ही थी। इंजीनियर रशीद की अगुआई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवार चुनाव में कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाए। इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) ने 44 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। हालांकि, उनके भाई और प्रवक्ता फिरदौस बाबा समेत कई प्रमुख हस्तियां असफल रहीं और कईयों की जमानत जब्त हो गई। वहीं, अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु को सोपोर विधानसभा सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा।
नहीं काम आई भाजपा की रणनीति
जम्मू-कश्मीर चुनाव में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की भूमिका हमेशा से ही काफी महत्वपूर्ण रही है। जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियां इन दोनों ही समुदायों को साधने की कोशिश करती रही हैं। भाजपा ने गुज्जर वोट के लिए कई बनाई थी। लेकिन, पहाड़ी और गुज्जर वोट को साधने की भाजपा की रणनीति सिरे नहीं चढ़ी और राजौरी-पुंछ की आठ सीटों में से भाजपा के खाते में केवल एक सीट आई।