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कोरबा@M4S:लेमरू एलीफेंट कॉरिडोर का दायरा राजस्व और आबादी क्षेत्र से होकर गुजर रहा है। आबादी क्षेत्र के लिए अब तक ठोस प्लान तैयार नहीं हो सका है इस वजह से इन क्षेत्रों में अब तक कॉरिडोर सपना ही बना हुआ है। गत 7 अक्टूबर 2021 को प्रदेश सरकार ने लेमरू एलीफेंट कॉरिडोर के लिए अधिसूचना जारी की थी। करीब दो साल बीत जाने के बाद आखिर अब तक कॉरीडोर के दायरे में किसी तरह का काम शुरु नहीं हो पा रहा है।
दरअसल इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यही है कि कॉरिडोर के हिस्से में करीब 40 फीसदी क्षेत्र ऐसे है जो कि राजस्व और आबादी वाले इलाके है। जंगल से बाहर गैर वन भूमि में किस तरह काम किया जाए जिससे हाथियों के उत्पात पर अंकुश लग सके इसपर अब तक ठोस प्लान नहीं बन सका है। बताया जाता है कि कॉरिडोर के दायरे में कुल 11 रेंज आ रहे हैं। इसमें से सबसे अधिक कोरबा जिले में शामिल है। कटघोरा रेंज के दो और कोरबा रेंज के चार रेंज को शामिल किया गया है। इन्हीं छह रेंज में सबसे अधिक राजस्व और आबादी वाला इलाका आ रहा है। एक तरफ लेमरु एलीफेंट कॉरिडोर के काम में देरी हो रही है तो दूसरी तरफ हाथियों ने कटघोरा वनमंडल के दो रेंज जटगा और पसान को अपना स्थायी रहवास बना लिया है। हालांकि अधिसूचना से पहले ही इन क्षेत्रों में हाथियों का उत्पात बढ़ चुका था। तब अधिकारियों ने दावा किया था कि आने वाले दिनों में दायरा और बढ़ाया जाएगा। कॉरिडोर के कुल 10 रेंज में पांच ऐसे रेंज है जिनके सभी कपार्टमेंट दायरे में आ रहे हैं। इसमें केंदई, कुदमुरा, लेमरु, बोरो और कापू रेंज को सबसे अधिक हाथी प्रभावित क्षेत्र माना गया है। इनमें वन क्षेत्र और उसके बाहर भी कई किलोमीटर का हिस्सा कॉरिडोर के हिस्से में शामिल किया गया है। राजस्व भूमि वाले क्षेत्र में जहां घनी आबादी रहती है उसके लिए नए सिरे से प्लान बनाने की जरुरत है।
संसाधनों की कमी से जूझ रहा वन अमला
संसाधनों की कमी से वन अमला जूझ रहा है। कहीं वाहनों की कमी है तो अधिकांश जगह स्टॉफ की कमी से परेशानी बनी हुई है। भले कॉरिडोर के लिए अधिसूचना जारी हुए दो साल गुजरन चुके हैं, लेकिन रेंजवार सेटअप व संसाधन बढ़ाने पर जोर नहीं दिया जा रहा है। जब भी रेंज में एक से अधिक झुंड आ जाते हैं तो निगरानी रखने और लोगों को बचाने के लिए अधिकारियों के पसीने छूट जाते हैं।