नई दिल्ली(एजेंसी):भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मिशन चंद्रयान-3 की 14 जुलाई को सफल लॉन्चिंग हुई। यह तारीख भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों से अंकित हो गई। इसरो ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम-3 ने उड़ान भरी।
अगर चंद्रयान-3 चंदा मामा की सतह पर सफल लैंडिंग करता है तो भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा जिसमें अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ (रूस) शामिल हैं। बता दें कि चंद्रयान-3 के 23 अगस्त को चंद्रमा पर सफल लैंडिंग की संभावना है।
नासा के मुताबिक, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और यहां कई और खनिज संपदा मौजूद हो सकती है। चंद्रयान-3 कोई नया मिशन नहीं, बल्कि चंद्रयान-2 का फॉलोअप मिशन है। हालांकि, चार साल पहले लॉन्च किए गए चंद्रयान-2 ने ऑर्बिटर की तैनाती सफलतापूर्वक की थी, लेकिन इसका लैंडर और रोवर तबाह हो गया था।
इसी बीच इसरो के प्रमुख केंद्र स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (SAC) के निदेशक, नीलेश एम. देसाई के साथ जागरण ने खास बातचीत की। इस दौरान मिशन में शामिल तकनीकी प्रगति, चंद्रमा से पृथ्वी पर सूचना पहुंचाने का कम्युनिकेशन माध्यम सहित इत्यादि विषयों पर विस्तृत बातचीत हुई।
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क्यों महत्वपूर्ण है चंद्रयान-3?
नीलेश एम. देसाई ने बताया कि हमारे चंद्रयान कार्यक्रम की शुरुआत 2003-2004 में हुई। हमने 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च किया और अगले 10 साल तक मेहनत करते हुए चंद्रयान-2 लॉन्च किया, लेकिन चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग के बावजूद लैंडिंग सफलतापूर्वक नहीं हो पाई।
सी बीच चंद्रयान-3 में शामिल तकनीकी प्रगति पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि इस बार लगभग 21 बदलाव किए गए हैं, लेकिन यह बदलाव पिछले मिशन के कार्यान्वयन में आई किसी कमी की वजह से नहीं किए गए हैं।
न्होंने कहा कि पिछली बार हमने लक्ष्य हासिल करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किया था, लेकिन इस बार हमने पुराने अनुभवों से सीख लेते हुए एक अलग दृष्टिकोण अपनाया है। इस बार खासतौर पर लैंडिंग को लेकर डिजाइन तैयार किया गया है, जिसमें विशेषतौर पर यह सुनिश्चित किया गया है कि खराब परिस्थितियों में भी सुरक्षित लैंडिंग हो सके।
चंद्रयान-3 में नए सेंसर भी स्थापित किए गए हैं। यह वैज्ञानिकों को व्यापक प्रसंस्करण के बजाय सेंसर डेटा पर अधिक भरोसा करने की अनुमति देता है, जिससे कॉन्फिगरेशन की समग्र मजबूती बढ़ती है।
देसाई ने इस मिशन से अपेक्षित संभावित विज्ञानी खोजों पर भी बातचीत की। उन्होंने कहा कि प्राथमिक उद्देश्य चांद की सतह और उसकी कक्षा से पृथ्वी का निरीक्षण करना है। चूंकि पृथ्वी में जीवन से भरपूर एक ग्रह है, इसलिए हम एक अनूठे दृष्टिकोण के साथ इसका अध्ययन करेंगे। इसलिए इसके पोलारिमेट्रिक हस्ताक्षरों का अध्ययन करके हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि संभावित रूप से रहने योग्य अन्य ग्रह कैसे हैं।
उन्होंने बताया कि जब चंद्रमा के सुविधाजनक बिंदु से पृथ्वी को देखा जाता है तो जो निशानियां प्राप्त होती हैं, उनसे अन्य ग्रहों के अध्ययन में आसानी हो सकती है। विज्ञानी पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज के लिए लगातार प्रयास रहते हैं।
इस खोज में चंद्रमा से प्राप्त डेटा भविष्य में अन्य ग्रहों पर जीवन की उपलब्धता तलाशने में मददगार साबित होगा। यह इसरो को विभिन्न ग्रहों की विशेषताएं और उन पर जीवन की संभावनाओं के मौजूद होने की तुलना और जांच करने में महत्वपूर्ण जानकारी अर्जित करने में मदद करेगा।
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अंतरिक्ष के रहस्य सुलझाने में कैसे मददगार साबित होगा चंद्रयान-3?
इस सवाल पर बातचीत करते हुए देसाई ने कहा कि चंद्रयान-3 का मुख्य लक्ष्य है कि वह लैंडर पर मौजूद सेंसर और पेलोड का इस्तेमाल करके चंद्रमा की जांच करे। लैंडर को जरूरी जानकारियां एकत्रित करने के लिए विभिन्न कैमरा सिस्टम से सुसज्जित किया गया है।
उन्होंने कहा कि यह अध्ययन विज्ञानियों को चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी को निर्धारित करने में मदद करेगा। नासा ने पिछले चंद्रमा से जुड़े मिशनों के जरिए डेटा एकत्र किया और यह पाया कि चंद्रमा हर साल पृथ्वी से लगभग एक मीटर, 40 डेसीमीटर दूर जा रहा है।
इस बार इसरो का मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का है। विभिन्न प्रकार की जांचों और गणनाओं से हमें यह निर्धारित करने में आसानी होगी कि चंद्रमा पृथ्वी से कितनी दूरी पर खिसक रहा है। लैंडर के विभिन्न कैमरा सिस्टम का मुख्य लक्ष्य जानकारी को एकत्रित करना और इस वहां के प्लाज्मा सामग्री का अध्ययन करना है।
ये पेलोड लैंडर के 500 मीटर के दायरे में चंद्रमा की मिट्टी की संरचना का विश्लेषण करेंगे। रोवर का मिशन मिट्टी की सतह की जांच करना और मैग्नीशियम, लोहा, कैल्शियम और अन्य घटकों जैसे तत्वों की पहचान करना है।
चंद्रयान-1 में केवल एक ऑर्बिटर था, जबकि चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर और एक लैंडर दोनों शामिल थे। हालांकि, लैंडिंग सफल नहीं हो पाई थी। उन्होंने बताया कि इस बार लैंडिंग के सफल होने की संभावना है।
45 दिनों तक चलने वाले मिशन के बारे में उन्होंने बताया कि इस समय सीमा से ईंधन की खपत को कम करने में मदद मिलेगी। इसरो के जीएसएलवी मार्क 3 लॉन्चर की आर्बिट में जाने की अधिकतम 4,000 टन सीमित क्षमता है।
अमेरिका और यूरोप जैसे अन्य देशों के विपरीत इसरो के पास अंतरिक्ष यान पर अतिरिक्त हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक्स और उपकरणों की उपस्थिति के कारण कई तरह की समस्याएं सामने आती है, यह जगह को घेरते हैं। जिसकी वजह से ईंधन की मात्रा को सीमित करना पड़ता है।
पृथ्वी पर पहुंचेंगी अति महत्वपूर्ण सूचनाएं
चंद्रमा से पृथ्वी पर सूचना पहुंचाने में लगभग 384,000 किमी दूरी होने की वजह से समस्या उत्पन्न होती है। रेडियो फ़्रीक्वेंसी सिग्नलों का इस्तेमाल करके वायरलेस संचार के लिए पर्याप्त सिग्नल पावर सुनिश्चित करने के लिए विज्ञानियों को बड़े एंटीना का उपयोग करना होगा। इसके लिए 32 मीटर व्यास वाले एंटीना उपयोगी साबित होंगे।
पृथ्वी पर सूचना देने की प्रक्रिया के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि चंद्रमा के साथ संचार के लिए डीप स्पेस नेटवर्क (DSN) के हिस्से के रूप में हम पृथ्वी पर 32 मीटर व्यास वाले एंटीना का उपयोग करते हैं। ये एंटीना रेडियो स्टेशन के समान वायरलेस रेडियो फ्रीक्वेंसी ट्रांसमिशन और रिसेप्शन के लिए आवश्यक हैं।
उन्होंने कहा कि चंद्रमा की सतह पर रोवर द्वारा एकत्र किया गया डेटा लैंडर और फिर बर्स्ट मोड में डीएसएन के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जाएगा। लैंडर अपने मेमोरी स्टोरेज में डेटा एकत्रित करता है और इसे एक निश्चित समय पर पृथ्वी पर भेजता है।
उन्होंने आगे कहा कि चीजों को सरल करने के लिए इसरो के पास एक आकस्मिक सिस्टम है जहां लैंडर चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे ऑर्बिटर के साथ कम्युनिकेट कर सकता है और यदि लैंडर से पृथ्वी तक सीधा कम्युनिकेशन संभव नहीं है तो ऑर्बिटर डेटा को पृथ्वी पर भेजेगा। इससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि आपात स्थिति में एक वैकल्पिक व्यवस्था मौजूद रहेगी।
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