नई दिल्ली(एजेंसी):प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रवाना हो चुके हैं। इस साल जी-7 समिट की अध्यक्षता जापान करेगा। यह जापान के हिरोशिमा में आयोजित किया जा रहा है। हालांकि, भारत जी-7 समूह का हिस्सा नहीं, लेकिन इसके बावजूद भी भारत को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। प्रधानमंत्री मोदी लगातार चौथी बार जी-7 में शामिल होंगे। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर यह संगठन क्या है और कैसे कम करता है, इसका गठन क्यों किया गया। इस लेख से आपको जी-7 समिट के बारे में उठ रहे हर सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
क्या है G-7 समूह?
G-7 कभी जी-6 तो कभी जी-8 भी हुआ करता था। वहीं, वर्तमान में इसे जी-7 यानी ग्रुप ऑफ सेवन कहा जाता है। जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है। इसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं, इसलिए इसे ग्रुप ऑफ सेवन कहा जाता है।
क्या है जी-7 के सिद्धांत
जी-7 समूह की स्थापना आज से 50 साल पहले 1973 में की गई थी। अक्सर ऐसे कई समूहों का मुख्यालय होता है, लेकिन जी-7 में अनोखी बात यह है कि इसका किसी भी देश में मुख्यालय नहीं है। यह ग्रुप मानवीय मूल्यों की रक्षा, लोकतंत्र की रक्षा, मानवाधिकारों की रक्षा, अंतर्राष्ट्रीय शांति का समर्थक, समृद्धि और सतत विकास के सिद्धांत पर चलता है। इसके साथ ही यह समूह खुद को “कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज” का आदर करने वाला समूह मानता है।
जी-7 समूह में शामिल देश बारी-बारी से शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हैं। जिस देश के पास इसकी मेजबानी होती है, उसे ही इस ग्रुप का अध्यक्ष कहा जाता है। वहीं, इस साल जापान इसकी अध्यक्षता कर रहा है। 1990 में जी-7 देशों की दुनिया के जीडीपी में 50 फीसदी की हिस्सेदारी थी, वहीं अब वह घटकर 31 फीसदी रह गई है। नेटवर्थ में इनका योगदान लगभग 58 फीसदी से ज्यादा है।
क्या है जी-7 का इतिहास?
7 देशों के समूह वाले जी-7 की स्थापना साल 1973 में की गई थी। तेल संकट से उबरने के लिए इसकी स्थापना की गई थी। दरअसल, अमेरिका ने इजरायल को वित्तीय सहायता दी थी। इसलिए अमेरिका को सबक सिखाने के लिए OPEC(ओपेक) देश सऊदी अरब के राजा फैसल के निर्देशों में तेल के उत्पादन में भारी कटौती कर दी गई थी। पूरे विश्व में तेल संकट गहरा गया था। दामों में बढ़ोतरी हो गई थी। इसके कारण महंगाई बढ़ रही थी। ऑयल प्रोडक्शन कम करने का मकसद सिर्फ यही था कि जो देश फिलिस्तीन के खिलाफ इजरायल का समर्थन उन्हें इसका सबक सिखाना था। पश्चिमी देश अमेरिका और उसके अमीर साथी देशों को सबसे अधिक इसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। तेल के उत्पादन में कटौती कर देने से इसकी कीमतें 300% गई थीं।
साल 1974 में हुई थी पहली बैठक
तेल की कीमतें बढ़ जाने से अमेरिका समेत कई देश परेशान होने लगे थे। उनकी अर्थव्यवस्था बिगड़ रही थी। वहीं, इस समस्या से निपटने के लिए 6 देशों के वित्त मंत्री एक साथ आए और उन्होंने इस आर्थिक परेशानी से बाहर निकलने का समाधान निकालने के बारे में सोचा, इसलिए ही इस समूह की स्थापना की गई थी। तब इसे ग्रुप ऑफ सिक्स कहा जाता था। उस समय इसमें अमेरिका, जर्मनी, जापान, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे। वहीं, इसकी पहली बैठक साल 1974 में की गई थी और अगले साल कनाडा को इसमें जोड़ लिया गया था। जिसके बाद इस समूह को ग्रूप औफ सेवन कहा जाने लगा था।
क्यों रूस को जी-7 से किया गया बर्खास्त
कभी यह ग्रुप जी-8 भी हुआ करता था क्योंकि अमेरिका की सलाह पर साल 1998 में इसमें रूस को शामिल किया गया था, लेकिन बाद में रूस को इस समूह से हटा दिया गया था। दरअसल, साल 2014 में रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को हड़प लिया था। रूस के इस कृत्य की कड़ी आलोचना हुई और जी-7 ने इसे अपने सिद्धांतों के विरुद्ध माना था, जिसके चलते समूह से रूस को बर्खास्त कर दिया गया और फिर से यह ग्रुप जी-7 बन गया।
जी-7 का क्या काम करता है?
जी-7 की स्थापना करने के पीछे मूल उद्देश्य यही था कि इसमें शामिल अमीर देश आर्थिक परेशानियों का समाधान निकालने के लिए काम करें। हर साल इस ग्रुप की बैठक का आयोजन किया जाता है। G7 वैश्विक संकटों से निपटने के लिए दुनिया की उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाता है। यह हर साल अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा नीति और वैश्विक आर्थिक मुद्दों जैसे विषयों पर बात करने के लिए बैठकें करता है। इसके अलावा जी-7 समूह मानवाधिकार और स्वास्थ्य संबंधी जैसे मुद्दों पर भी बातचीत करते हैं। वहीं इस साल 2023 में जी-7 परमाणु निरस्त्रीकरण, आर्थिक लचीलापन और आर्थिक सुरक्षा, क्षेत्रीय मुद्दे, जलवायु और ऊर्जा समेत कई मुद्दों पर चर्चा होगी। उदाहरण के तौर पर पिछले साल हुई G7 की बैठक में सातों देशों ने यूक्रेन जंग के चलते रूस पर पाबंदी लगाने की घोषणा की थी।
कैसे करता है काम?
प्रत्येक वर्ष जी-7 की बैठक आयोजित की जाती है। इस बैठक की अध्यक्षता G-7 के सदस्य देश बारी-बारी से करते हैं। यह सम्मेलन 2 दिनों तक चलता है। जहाँ पर वैश्विक मुद्दों को लेकर चर्चा की जाती है और उनके समाधान के लिए रणनीति तय की जाती है। शिखर सम्मेलन के अंत में एक सूचना जारी की जाती है, जिसमें विभिन्न विषयों पर सहमति वाले बिंदुओं का जिक्र होता है। इसमें शामिल देशों के राष्ट्र प्रमुखों के अलावा यूरोपियन कमीशन और यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष भी शामिल होते हैं।
जी-7 से दुनिया को क्या मिला फायदा?
साल 1990 के दशक से शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा, इसलिए इस साल भी पीएम नरेंद्र मोदी को जापान पहुंचे हैं। समूह ने अपने उद्देश्यों को विस्तार देना शुरू कर दिया। उन्होंने विश्व के विकासशील देशों को इसमें आमंत्रित करना शुरू कर दिया। ग्रुप ने 1990 के दशक में विश्व के अन्य गरीब देशों को मदद देनी शुरू की। माना जाता है कि समूह ने पूरी दुनिया से एड्स, टीबी, मलेरिया से लड़ने के लिए गरीब देशों को मदद देने की शुरुआत की। पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने में भी जी-7 का योगदान महत्वपूर्ण है।
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भारत को जी-7 से क्या है फायदा?
जी-7 ग्रुप में भारत इसका सदस्य नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी लगातार चौथी बार पीएम इसमें शामिल हो रहे हैं। वहीं, चीन भी इस समूह का हिस्सा नहीं है, ऐसे में चीन की बढ़ती हुई विस्तारीकरण की नीति से निपटने के लिए यह समूह भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है। G7 की बैठक में चीन को काबू करने के लिए भारत भी अमेरिका और जापान के साथ मिलकर काम कर सकता है। G7 में कई ट्राइलैट्रल यानी जरूरत के मुताबिक अलग-अलग तीन देशों की मीटिंग होती हैं। इसमें भारत भी किन्हीं दो देशों के साथ बैठकर किसी मुद्दे पर अपनी बात रख सकता है। इसमें शामिल हो कर भारत इन देशों की तेज गति से विकास करने की रणनीति को भी अमल में ला सकता है। UN में फैसला हुए बिना ही इस समूह के देश दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल देते हैं, इससे भारत सहमत नहीं है। वो गेस्ट के रूप में भारत बुलाते हैं तो इन मामलों में हम अपना पक्ष रख पाते हैं।