नई दिल्ली(एजेंसी):देश की सबसे ऊंची सीमा सियाचिन ग्लेशियर पर सबसे कठिन नौकरी करते हुए बीते चार सालों में 41 सैनिकों की मौत हो चुकी है। यह जानकारी रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में दिया। इसमें सबसे ज्यादा इस साल 18 फरवरी तक 14 सैनिकों की मौत हो चुकी है।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने आज राज्यसभा को बताया कि इस साल 18 फरवरी तक सियाचिन में 14 सैनिकों की जान गई जबकि वर्ष 2015 में नौ, 2014 में आठ और 2013 में 10 सैनिक इस ग्लेशियर में मारे गए थे। पर्रिकर ने बताया कि सियाचिन में निगरानी के लिए सेना मानव रहित एरियल व्हीकल, विभिन्न प्रकार के रडार सहित अन्य अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरणों का इस्तेमाल करती है।उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि युद्ध की आशंका, जमीनी हालात और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सियाचिन में केवल आवश्यक सेनाओं की तैनाती की जाती है। रक्षा मंत्री ने एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि सियाचिन में तैनात सैनिकों को अत्यधिक ठंडी जलवायु वाले वस्त्र सहित विशेष शीत वस्त्र मुहैया कराए जाते हैं ताकि वे अत्यधिक प्रतिकूल तापमान में रह सकें।रक्षा मंत्री ने बताया कि सियाचिन में कई जगह भूभाग की संरचना और ऊंचाई के कारण एकीकृत आश्रय बनाना संभव नहीं है। ऐसी जगहों को छोड़कर इस ग्लेशियर मेेंं तैनात सैनिकों को प्री फैब्रिकेटेड इन्सुलेटेड आश्रय (फाइबर रीन्फोर्स्ड प्लास्टिक) मुहैया कराए गए हैं।पर्रिकर ने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में बताया कि सियाचिन ग्लेशियर में चौकियां विधिवत मानचित्र बनाने के बाद ही स्थापित की जाती हैं ताकि हिमस्खलनों के खतरे से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसकी नियमित आधार पर समीक्षा की जाती है।रक्षा मंत्री ने बताया कि हिमस्खलन की घटना होने पर घटना की निगरानी करने और घटना स्थल तक बचाव दल तथा उपकरणों को पहुंचाने में समन्वय करने में बेसकैंप सियाचिन पर स्थापित कमान एवं नियंत्रण तंत्र की मुख्य भूमिका होती है। ऐवेलॉन्च विक्टिम डिटेक्टर्स, विशेष पर्वतारोहण उपकरण, बर्फ काटने की मशीन लगाने जैसे बचाव उपकरण लगाने के साथ साथ पीड़ितों का पता लगाने और उन्हें बचाने के लिए ऐवेलॉन्च रेस्क्यू डॉग भी लगाए जाते हैं। हताहतों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाती है।रक्षा मंत्री ने बताया कि सियाचिन के बेस कैंप में एक युद्ध स्मारक है जिसमें राष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों की रक्षा करते हुए सियाचिन में प्राण देने वाले सैनिकों के नाम अंकित किए जाते हैं।