सीएसईबी राखड़ बांध के कार्य को भूविस्थापितों ने बन्द कराया कहा अब खेती शुरू करेंगे, ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के बैनर तले आंदोलन का आगाज

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सीएसईबी राखड़ बांध के कार्य को भूविस्थापितों ने बन्द कराया कहा अब खेती शुरू करेंगे,

डंगनिया में 1983 से अर्जित जमीन के बदले मुआवजा और रोजगार के लिए भटकने को मजबूर

ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के बैनर तले आंदोलन का आगाज

कोरबा@M4S:सी. एस. ई. बी. कोरबा पश्चिम के डंगनियाखार के राखड़ बांध के प्रभावित विस्थापितो ने ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के बैनर तले अपने रोजगार, मुआवजा सहित अन्य सुविधा की मांग पर राखड़ और मिट्टी पाटने के कार्य को बंद करा दिया है ।

ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने बताया है कि कोरबा जिला देश को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला है कोयला खदानों के अलावा विद्युत सयंत्र सहित अन्य संस्थानों के द्वारा जिले के किसानो का केवल दोहन किया है किंतु उनके रोजगार बसाहट मुआवजा के लिए भी तरसाया गया है अपने प्रभावित क्षेत्र के मूलभूत सुविधाओं से मरहूम रखा गया है अब ये लड़ाई जिले के हर शोषित तबके तक पहुंचाने का बीड़ा सन्गठन ने उठाया है डंगनिया के इकाई अध्यक्ष और भूविस्थापित मानसिंह कंवर , सम्पत सिंह , गरीब सिंह , छेदी यादव , मनप्रीत सिंह ने बताया है कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत् मंडल ( CSEB) के हसदेव ताप परियोजना से प्रभावित ग्राम डंगनिया कर ग्रामवासी पिछले 40 सालो से न्याय पाने के लिए भटक रहे हैं । वर्ष 1983 में विद्युत् कारखाने से उत्सर्जित होने वाली राख की निपटान के लिए गाँव ग्राम डगनियाखार तहसील दर्री जिला कोरबा (तत्कालीन कटघोरा तहसील जिला बिलासपुर ) की कृषि भूमि में राखड़ डेम बनायी गयी थी जिसमे 54 किसानो की 104.10 एकड़ ( 40.406 हेक्टेयर) सहित ग्राम के निस्तार की शासकीय भूमि प्रभावित हुयी थी और उस सम्पूर्ण क्षेत्र में उसी समय से राखड डेम का निर्माण कर विद्युत् मंडल उपयोग कर रही है। किन्तु भूमि अर्जन के एवज में यहाँ के मात्र 11 लोंगो को रोजगार दिया गया और अन्य भुविस्थापित परिवार को अलग अलग कारण बताकर रोजगार से वंचित कर दिया गया तथा आज पर्यन्त तक उक्त अर्जित भूमि का मुआवजा तक किसानो को प्रदान नहीं किया गया है । विद्युत् मंडल अपने सामुदायिक विकास की जिम्मेदारी को भी पूरा नहीं करती है तथा सयंत्र से उत्सर्जित राख, धुओं से प्रदुषण की समस्या भी विकराल है जिसकी पीड़ा को झेलने के लिए हम मजबूर हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अपने मांग को लेकर लगातार उच्चाधिकारियों कलेक्टर , एसडीएम , मुख्यमंत्री , राजस्व मंत्री को भी अवगत कराते हुये आवेदन किया है किंतु समस्या को ध्यान नही दिया गया जिसके कारण अब आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ा है । जब तक हमारी रोजगार और मुआवजा सहित मूलभूत सुविधाएं प्रदान नही किया जाता है तब तक हम काम नही होने देंगे और राखड़ बांध के ऊपर खेती शुरू करेंगे ।

*विद्युत मंडल ने सैकड़ो पेड़ो को राख से पाट डाला*

डंगनिया स्थित राखड़ डेम की क्षमता समाप्त हो जाने के कारण ऊपर मिट्टी पाटी जा रही है । जिसमे पौधे लगाने की तैयारी किया जा रहा है । यहां के सबंधित अधिकारी अपनी मर्जी से नियम विरुद्ध डेम के किनारे राखड़ डम्प करा रहे हैं जिससे वहां खड़े विशालकाय पेड़ भी दब गए हैं जिसे प्रयावरण मंडल तथा वनविभाग को कार्यवाही करना चाहिए । पर उनका भी मौन स्वीकृति है । ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के अध्यक्ष सपूरन कुलदीप ने कहा है कि इसकी शिकायत की जाएगी और उच्च स्तरीय जांच की मांग किया जाएगा ।

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