रायपुर:छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के सितारे रमेश नैय्यर ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 2 नवम्बर 2022 को उन्होंने अंतिम सांस ली। वे एक ऐसा विशाल व्यक्तित्व रहे देखकर उनके कद को नापना किसी के लिए भी भारी भूल साबित हो सकती है।
सहज-सरल नैयर ने भले ही पत्रकारिता को पार्ट टाईम के रूप में चुना लेकिन बाद में इसमें इतना रच बस गये कि कम से कम छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता जगत उनके नाम के बगैर अधूरा है। पत्रकारिता के उच्च मापदंड को छुने वाले रमेश नैय्यर वे शाख्सियत है जिनका नाम बड़े से बड़े नेता और प्रशासनिक अधिकारी सम्मान के साथ लेते है। यह नाम ऐसा है जिसे सुन स्वयं सम्मान करने की ईच्छा जागृत हो जाती है। समाज के हर क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन पर सूक्ष्मता से नजर रखने वाले रमेश नैय्यर का मानना है कि कम पूंजी से बहुत बड़ा संघर्ष कर निकल रहे समाचार पत्र ही सही मायने में आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्तमान में पत्रकारिता में आये बदलाव से वे दुखी तो हैं पर वे मानते हैं कि पत्रकारिता के उच्च मापदंड को आत्मसात करने वाले पत्रकार ही देश में सकारात्मक बदलाव लायेंगे।
रमेश नैय्यर जी पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति का विस्तार देते हुए कहते हैं कि इन दिनों एक साथ तीन धाराएं चल रही है। पहली है साफ सुथरी समाज में प्रशासन और राजनीति का मैल धोना चाहती है। ये पत्रकार दृढ़ता के साथ बगैर लाग लपेट के बिना पूर्वाग्रह के वह नीतियों, निर्णयों और कार्यशैली का संतुलित निष्पक्ष विवेचना करती है। इस स्वच्छ धारा में थोड़े से योद्धा है जो जुझते हैं और खतरे उठाते हैं। यहीं वजह है कि वे आर्थिक संकट उठाते हैं, शासन प्रशासन और माफिया के ये कोप भाजन बनते हैं। भारत विश्व का चौथ देश है जो पत्रकारों के लिए सर्वाधिक खतरनाक है। ये विश्व की प्रमाणिक संस्थाओं के द्वारा एकत्र जानकारी है। वे कहते है कि दूसरी धारा उस पत्रकारिता की है जिसमें विशुद्ध रूप से कैरियर के हिसाब से काम होता है परिश्रम करके आगे बढऩे का रास्ता तैयार किया जाता है लेकिन इन्हें पत्रकारिता के मूल्यों की चिंता नहीं होती ऐसे पत्रकारों की संख्या बहुत बड़ी है। ये लोग संसद, विधानसभा की रिपोटिंग और सर्वेक्षण बहुत अच्छे से कर लेते हैं ये पढ़ लिखे व परिश्रमी होते हैं।
तीसरी धारा पर रमेश नैय्यर जी बेबाकी से कहते है कि ये धारा उन लोगों की है जो पत्रकारिता में शुद्ध रूप से धन कमाने आते हैंं इसकी आड़ में अपना व्यवसाय चलाते हैं जिनके पास अनैतिक तौर तरीकों से कमाई जाने वाली धन संपदा है और ये लोग राजनीति प्रशासन में अपना दखल रखने के लिए और नेता मंत्री तथा अफसरों से अपना काम तो निकालते ही है अपने अनैतिक काम-धंधो को छुपाने पत्रकारिता का आवरण ओढ़ते हैं। ये लोग ऐसे पत्रकारों को रखते हैं जो न तो अच्छे पत्रकार होते हैं न कोई जीवन मूल्य है न जिनका समाज और देश में कोई सरोकार है। वे अच्छे रिपोर्टर की तरह नहीं बल्कि अपने मालिकों के इशारे पर लोगों की चरित्र हत्या करने वाले शार्पसूटर की तरह निशाना साधते हैं। मै व्यक्तिगत रूप से इनको भारतीय पत्रकारिता का सबसे बड़ा कलंक मानता हूं। लेकिन दुर्भाग्य से राजनीति-प्रशासन में काफी लोग इन्हें प्रश्रय देते हैं। ऐसे लोगों के माफिया से भी संबंध रहते है बल्कि सच तो यह है कि वे अपने आप में स्वयं माफिया है। उन्होंने कहा कि समाज और देश में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और न्याय के पक्ष में खड़े होने वाले पत्रकारों की जमात कठिनाईयों का सामना जरूर करती है परन्तु देश की सारी उम्मीदें उन पर ही टिकी हुई है। मुझे विश्वास है वह देश में सकरात्मक बदलाव लायेंगे जैसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में सारे बड़े समाचार पत्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद का स्तुतीगान करते थे परन्तु छोटे छोटे समाचार पत्र पत्रिकाएं आजादी की लड़ाई को लड़ते थे वैसे ही आज भी बहुत कम पूंजी से बहुत कड़ा संघर्ष करते हुए निकल रहे छोटे-छोटे समाचार पत्र और पत्रकार दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वर्तमान राजनीति पर पूछे गये सवालों का वे बेबाकी से जवाब देते हुए कहते हैं कि राहुल गांधी को एक वंश परम्परा में उत्तराधिकारी के रूप में लेता हूं। वहीं आम आदमी पार्टी में अभी धन के प्रति लोभ या भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति तो नहीं दिख रही है परन्तु जिस तरह की अराजकता वाली राजनीति वे कर रहे हैं वो उनकी अपरिपक्वता का संकेत हैं। जिम्मेदारी से भागकर केवल लोकसभा चुनाव पर नजर रखते हुए केवल 49 दिनों में जिस नाटकीय ढंग से दिल्ली में आप ने त्यागपत्र दिया वह कुछ निराश करती है। जहां तक नरेन्द्र मोदी का प्रश्न है उनके 12-13 वर्षों के गुजरात शासन में उस राज्य का चहुमुखी विकास हुआ है प्रशासन में जबरदस्त चुस्ती आई है और मंत्रियों तथा नौकरशाहों में भ्रष्टाचार पर बहुत बड़ा अंकुश लगा है इस आधार पर नरेन्द्र मोदी में संभावना दिखती है लेकिन मुस्लिम मतदाता एक मुस्त खिलाफ वोट देंगे इसलिए उनके प्रधानमंत्री की राह में एक बहुत बड़ा व्यवधान एक संगठित वोट का खड़ा हो गया है। मुफ्त बांटने की रजनीति को वे अनैतिक करार देते हुए कहते है कि सरकार की जिम्मेदारी है खाना पानी और छत हर व्यक्ति के पास हो देश में आज भी बहुत बड़ा वर्ग के पास नहीं है ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार के चावल योजना को न इससे जोड़ा जाना चाहिए न ही आलोचना की जानी चाहिए। लेकिन वोट जुगाडऩे अन्य तमाम चीजे बांटना अनैतिक है ये सब बांटने से विकास का पैसा ऐसी जगहों पर खर्च होगा जो भारत को एक विकसित देश बनाने में बाधक होगी। होना यह चाहिए कि भारत में विकास संतुलित हो हर व्यक्ति अपने लिए कम से कम भोजन, आवास, शिक्षा, बिजली और अन्य सुविधाएं प्राप्त कर सकने में सश्रम हो इसके लिए उसकी आय में वृद्धि होनी चाहिए। देश का भविष्य इसी में बनेगा।
( कौशल तिवारी ‘मयूख’ के shakhsiyata.blogspot.com से साभार )