जंगल से गांव और अब शहर तक पहुंचने लगे हैं हाथी, सरकार को बड़े हादसे का इंतजार:डॉ.चरण दास महंत

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एलीफेंट रिजर्व ठण्डे बस्ते में और आये दिन हाथी कुचलकर ले रहे जान, हाथियों का उत्पात रोकने समिति की रिपोर्ट पर वर्षों बाद भी कार्यवाही नहीं

कोरबा@M4S:कोरबा लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद, पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री एवं छग इलेक्शन कैम्पेन कमेटी के चेयरमेन डॉ. चरणदास महंत ने कोरबा जिले में रायगढ़ और सरगुजा इलाके से आकर उत्पात मचा रहे हाथियों की रोकथाम के प्रति राज्य सरकार और उसके वन विभाग की निरंतर उदासीनता पर चिन्ता व्यक्त की है। जंगलों में उत्पात मचाते हुए गांव और अब शहर की ओर हाथियों की आमद होने लगी है। शायद सरकार और उसके वन विभाग को किसी बड़े  हादसे का इंतजार है जबकि तीन माह के भीतर 8 मौतें हाथियों ने ली है। किसानों को फसल और बाड़ी का नुकसान, उनके मकानों और सामानों को क्षतिग्रस्त करने से हुआ नुकसान अलग है। 

डॉ. महंत ने जारी बयान में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को संबोधित करते हुए कहा है कि उनके संसदीय क्षेत्र कोरबा के रामपुर विधानसभा के लगभग 96 गांव संवेदनशील और अतिसंवेदनशील श्रेणी के हैं जहां विगत कई वर्षों से हाथियों का आना-जाना लगा है। वर्ष 2000 से रायगढ़ जिले की सीमा से करतला वन परिक्षेत्र में प्रवेश किए हाथियों की संख्या अब निरंतर बढ़ती जा रही है। सरगुजा क्षेत्र से भी हाथी कोरबा वन मंडल के जंगल में प्रवेश करने लगे हैं। 60 से अधिक लोग दंतैल व हिंसक हाथियों का शिकार बन चुके हैं एवं 350 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त होकर 35 हजार एकड़ क्षेत्रफल से अधिक की फसल हाथियों ने चौपट कर दी है। इस वर्ष हाल ही के जून-जुलाई और अगस्त के महीने में 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिसमें 2 राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहेे जाने वाले पहाड़ी कोरवा भी शामिल हैं। ठीक धान का फसल लेने के मानसूनी मौसम में हाथियों का कहर ग्रामीणों को चौन से जीने नहीं दे रहा। दूसरी ओर सरकार का वन अमला इन हाथियों को जिले की सीमा में प्रवेश कर पाने से और प्रवेश कर लेने की स्थिति में गांवों से शहर तक आने से रोकने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रहा है। हाथियों की रोकथाम के लिए ग्रामीणों से लेकर वन अमले तक कोई भी संसाधन पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। बिजलीविहीन गांवों में खाली हाथ और लाठी के सहारे आखिर कब तक हाथी खदेड़े जाते रहेंगे? 

हाथियों को रोकने 4 अप्रैल  2008 को लेमरू में एलीफेंट रिजर्व के लिए तमाम आवश्यक प्रक्रियाओं के साथ प्रस्ताव भेजा गया था जिसे 9 अप्रैल 2008 को कोयला उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने उक्त प्रस्तावित स्थल को बदल दिया गया। कोरबा, रायगढ़, अंबिकापुर को मिलाकर हाथियों के उत्पात से रोकथाम के लिए वन्य संरक्षक बिलासपुर द्वारा एक संयुक्त समिति तीनों वन मंडलाधिकारियों की बनाई गई, जिसकी रिपोर्ट तीन माह में देना कहा गया था किन्तु वर्षों बीतने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है। डॉ. महंत ने कहा है कि इस बात से वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों से लेकर शासन में बैठे मंत्री भी अवगत हैं, बावजूद इसके हाथियों द्वारा दी जा रही मौत को शायद एक सामान्य घटना की तरह लिया जा रहा है। कभी हुल्ला पार्टी तो कभी नुक्कड़ नाटक के जरिए जागरुक करने, कभी सोलर फेंसिंग, कभी कॉलर ट्रेकिंग सिस्टम तो कई अन्य तरह से हाथियों पर निगरानी रखने व उन्हें खदेडऩे के नाम पर अब तक करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा दिए गए परंतु नतीजे के रूप में ग्रामीणों को मौत, घर व फसल का नुकसान मिल रहा है। हाथी प्रभावित क्षेत्रों में वनोपज संग्रहण से लेकर यहां के बच्चों की शिक्षा, दैनिक दिनचर्या पूरी तरह प्रभावित हो रही है। 

डॉ. महंत ने निरंतर बढ़ रही हाथियों की समस्या को रोकने के लिए हाथी अभ्यारण्य निर्माण की दिशा में त्वरित कार्यवाही कर कार्य पूर्ण कराने एवं मौजूदा हालातों में सुरक्षित स्थान पर हाथियों के चारा-पानी की व्यवस्था जंगल में ही करने की मांग की है। इसके अलावा हाथियों से जनहानि पर मुआवजा 4 लाख से बढ़ाकर 15 लाख रूपए करने व पीड़ित परिवार को नौकरी देने, घायल होने एवं मकान, फसल की क्षति पर सहयोग राशि बढ़ाने, फसल हानि पर 25 से 30 हजार प्रति एकड़ क्षतिपूर्ति देने, पट्टाविहीन ऐसी वनभूमि जिस पर खेती खेती करता है उसे कृषि भूमि पट्टा मानकर मुआवजा क्षतिपूर्ति की श्रेणी में रखा जाये। फसल नुकसानी के आंकलन में स्थानीय प्रतिनिधि को शामिल करने, प्रभावित वनोपज संग्रहणकर्ताओं को अंतर की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करने, फसल क्षतिपूर्ति की स्लैब राशि बढ़ाने, हाथी प्रभावित क्षेत्रों में वनो की कटाई पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से की गई है।

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