नई दिल्ली(एजेंसी):सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के प्रति कथित रूप से अपमानजनक ट्वीट करने के मामले में अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ मंगलवार (21 जुलाई) को स्वत: अवमानना की कार्यवाही शुरू की। न्यायालय ने ट्विटर इंडिया के खिलाफ भी अवमानना की कार्यवाही शुरू की है। भूषण की कथित अपमानजनक टिप्पणियां ट्विटर हैंडल से ही प्रसारित हुई थीं। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष यह मामला बुधवार (22 जुलाई) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशांत भूषण के किस ट्वीट को पहली नजर में शीर्ष अदालत की अवमानना करने वाला माना गया है।
इससे पहले भी उच्चतम न्यायालय ने नवंबर, 2009 में प्रशांत भूषण द्वारा एक पत्रिका को दिए गए साक्षात्कार में शीर्ष अदालत के कुछ पूर्व और पीठासीन न्यायाधीशों के बारे में कथित रूप से आक्षेप किये जाने के मामले में उन्हें अवमानना का नोटिस दिया था। यह मामला शीर्ष अदालत में अभी तक लंबित है और न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह प्रकरण अंतिम बार मई, 2012 में सूचीबद्ध हुआ था।
क्या है पूरा मामला
दरअसल यह मामला वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा बीते 27 जून को किए गए ट्वीट से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाया था। इतना ही नहीं उन्होंने मुख्य न्यायाधीशों पर भी निशाना साधा था। उन्होंने ट्वीट किया था, “भविष्य में इतिहासकार जब यह देखने के लिए पिछले 6 वर्षों पर नजर डालेंगे कि कैसे आपातकाल की घोषणा किए बिना ही भारत में लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया गया, तो वे सुप्रीम कोर्ट की भूमिका का उल्लेख निश्चित तौर पर करेंगे और विशेषकर चार पिछले मुख्य न्यायाधीशों (सीजेआई) का।”
प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में शीर्ष अदालत के रवैये की तीखी आलोचना की थी।