कोरबा@M4S: कोरबा जिले में धान का अच्छा उत्पादन लेने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों ने दस साल के भीतर वाली किस्मों का ही बीज के रूप में उपयोग करने की सलाह किसानों को दी है। कृषि अधिकारियों ने किसानों को सलाह दी है कि अच्छी गुणवत्ता के प्रमाणित बीजों को खेतों में बोने से धान का उत्पादन बढ़ सकता है। एक ही पारिस्थिकीय में लम्बे समय से एक ही किस्मों के बीजों का उत्पादन किये जाने से उन किस्मों में अपनी ओज एवं गुण धर्मो के विपरीत प्रदर्शन करने की संभावना बढ़ जाती है। जिसके कारण फसलों में कीड़े एवं बीमारियों से अधिक प्रभावित होने के साथ ही उत्पादन में गिरावट आ सकती है। किसान ऐसी किस्मों के विकल्प के रूप में 10 वर्षो के अन्दर की किस्मों का उपयोग कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
वर्तमान में जिले के सभी विकासखण्डों में मानसून की बारिश के साथ खेतों की तैयारी, धान फसल की बोनी व रोपाई का कार्य प्रारम्भ हो चुका है। मौसम विभाग द्वारा इस वर्ष बेहतर वर्षा होने की संभावना जताई गयी है, जो कि जिले के वर्षा आश्रित क्षेत्रों में फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए अच्छा संकेत है। जिले के किसानों को उर्वरक एवं प्रमाणित उन्नत बीज की तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जिले के सभी विकास खंडों की सेवा सहकारी समितियों में उर्वरकों एवं बीजों का पर्याप्त मात्रा का भण्डारण किया जा चुका है। किसानों द्वारा लगातार समितियों के माध्यम से बीजों का उठाव भी किया जा रहा है।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इस वर्ष जिले में धान की खेती के लिए स्वर्णा, एमटीयू 1010, एमटीयू 1001, एचएमटी, राजेश्वरी, बीपीटी 5204, इंद्रा एरोबिक और आरपी बायो 226 प्रजाति के धान के बीज उपलब्ध कराये जा रहे हैं। कोरबा जिले में धान की अधिकांश खेती वर्षा पर निर्भर है। जिले में लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र में धान की खेती बियासी-बोता विधि से की जाती है। इसमें वर्षा आरंभ होने पर जुताई कर खेत में धान के बीज को छिड़क कर बीज ढकने के लिए देशी हल अथवा पाटा चलाया जाता है। जब फसल करीब 30 से 35 दिन की हो जाती है तथा खेती में 15 से 20 से.मी. पानी भर जाता है, तब खड़ी फसल में बैलचलित हल चलाकर बियासी करते हैं। कोरबा जिले में धान की कुल फसल का 30 प्रतिशत रकबा रोपा पद्धति से लगाया जाता है। रोपण विधि के लिए धान की रोपाई वाले कुल क्षेत्र में लगभग दसवें भाग में नर्सरी तैयार की जाती है तथा 20 से 30 दिनों की धान का थरहा होने पर खेतों को मचाकर रोपाई की जाती है। सिंचाई की निश्चित व्यवस्था अथवा ऐसे खेतों में जहां पर्याप्त वर्षा जल उपलब्ध हो, इस विधि से श्री फसल लगाई जाती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धान की खेती के लिए सुनिश्चित सिंचाई के साधन उपलब्ध होने की स्थिति में धान का थरहा तैयार करने के लिए खेतों में पलेवा देकर ओल आते ही खेतों की अच्छी तरह जुताई से मिट्टी भुरभुरी कर खेत तैयार कर लें। इस प्रक्रिया से न केवल खरपतवार एवं कीट व्याधियां काफी हद तक नियंत्रित होती है, बल्कि धान का थरहा तैयार करने में सुविधा हो जाती है। इसके बाद रोपाई से पूर्व खेत की 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी भुरभुरी करना चाहिए। अंतिम जुताई के पूर्व 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिलाने की सलाह किसानों को दी गयी है। खेत की ढाल के अनुसार रोपणी में सिंचाई एवं जल निकास नालिया बनाए एवं नालियों का ढाल 0.10 प्रतिशत से 0.25 प्रतिशत तक हो, इस बात का ध्यान भी रखने को कहा गया है। जिले के किसानों को उर्वरक एवं प्रमाणित उन्नत बीज की तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जिले के सभी विकास खंडों की सेवा सहकारी समितियों में उर्वरकों एवं बीजों का पर्याप्त मात्रा का भण्डारण किया जा चुका है। किसानों द्वारा लगातार समितियों के माध्यम से बीज-खाद का उठाव भी किया जा रहा है।
खेती के लिए सम-सामयिक सलाह: धान के दस साल के भीतर वाली किस्मों का ही बीज के रूप में उपयोग करें किसान धान के खेतों से पानी निकासी के भी व्यवस्थित इंतजाम रखें
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