बुधवारी बाजार बस्ती के अवधेश बने कॉन्टिेंटल एक्सपर्ट

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बालको संचालित वेदांत आई.एल.एंड एफ.एस. स्किल्स स्कूल में लिया हॉस्पिटैलिटी शाखा में प्रशिक्षण।
 क्रूज लाइनर शिप में जाने की तैयारी।

कोरबा@M4S: यह मौसम है तरह-तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं का। कक्षा 12वीं के बाद कुछ बच्चे आई.आई.टी. या किसी बड़े इंजीनियरिंग संस्थान में जाने की तैयारी में है तो कुछ ऑल इंडिया पी.एम.टी. के जरिए देश के बड़े मेडिकल कॉलेज में अपनी सीट पक्की करने जी-जान से जुट गए हैं। इनसे से कई सफल हो जाएंगे। कई पीछे रह जाएंगे। कई ऐसे बच्चे भी होंगे जिनका मन पढ़ने में कभी लगा ही नहीं। जैसे-तैसे 12वीं पास कर भी लिया तो आगे की पढ़ाई के लिए कोई सोच नहीं है। समझने की जरूरत है कि जो बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में पीछे रह गए या 12वीं के बाद जिन्हें आगे पढ़ने में कोई रूचि नहीं है उनके लिए दुनिया खत्म नहीं हो जाती। सरकार और अनेक औद्योगिक प्रतिष्ठान विभिन्न योजनाओं के जरिए युवाओं के कौशल उन्नयन में सहयोग कर रहे हैं। इससे युवाओं को मिल रहा आत्मविश्वास उन्हें निश्चित ही नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। कैसे ? यह समझना हो तो कोरबा के बुधवारी बाजार बस्ती में रहने वाले अवधेश शर्मा की कहानी ही पढ़ लें।MNN

आज अवधेश नागपुर के एक प्रतिष्ठित पांच सितारा होटल में कॉन्टिनेंटल भोजन बनाने के एक्सपर्ट हैं। इटैलियन, मैक्सिकन, फ्यूजन, लेबनानीज़, मेडिटीरेनियन और अमेरिकन व्यंजनों में उनकी महारत है। उनकी कला के कद्रदानों की संख्या शहर में बढ़ रही है। नागपुर के ही एक अन्य पांच सितारा होटल ने उन्हें बढ़िया ऑफर दिया है। हालांकि अवधेश का लक्ष्य अब क्रूज लाइनर शिप में जाने का है जहां उनके कुछ साथी पहले ही ज्वाइन कर चुके हैं। इसलिए अब वह मुंबई शिफ्ट करना चाहते हैं। अवधेश कहते हैं – ‘‘ क्रूज लाइनर में शुरूआती सैलेरी ही 52,000 रुपए है। ’’

अवधेश में कितनी क्षमताएं हैं साल 2012 तक उन्हें खुद भी पता नहीं था। मन पढ़ने में कभी लगा ही नहीं। रामपुर के पी.डब्ल्यू.डी. स्कूल से कॉमर्स विषय में जैसे-तैसे 12वीं पास किया। घर की माली हालत भी कभी मजबूत नहीं रही। पिता अर्जुन शर्मा कारपेंटर और माता शोभा देवी गृहिणी हैं। अवधेश का एक छोटा भाई और एक बहन है। कारपेंटर संबंधी काम के छोटे-मोटे टेंडर लेकर पिता गृहस्थी की गाड़ी खींचते हैं। 12वीं के बाद अवधेश ने बिजनेस करने का सोचा। लेकिन कैसे होगा, पता नहीं था। उनका रूझान शुरू से तरह-तरह के व्यंजन पकाने में था। इसलिए होटल से संबंधित कोई कोर्स करना चाहते थे। परंतु बाहर जाने और पढ़ाई पर लगने वाला खर्च निम्न आय वर्ग वाले परिवार के लिए एक बड़ा सवाल था।

यूं ही कोरबा शहर में एक दिन घूमते उन्हें अपने किसी दोस्त से बालको संचालित वेदांत आई.एंड एफ.एस. स्किल्स स्कूल की जानकारी मिली। उन्हंे पता चला कि इस स्कूल में प्रशिक्षण, रहना-खाना, और आवागमन की व्यवस्थाएं निःशुल्क हैं। अवधेश तत्काल स्किल्स स्कूल पहुंचे और अपने मनपसंद हॉस्पिटैलिटी शाखा में पंजीयन करा लिया। वर्ष 2012 में प्रशिक्षण के बाद उन्हें रायपुर के एक प्रतिष्ठित होटल में प्लेसमेंट मिला।

अवधेश बताते हैं – ‘‘ रायपुर के होटल में मैं स्टीवार्ड था। यानी ग्राहकों को भोजन परोसने का काम करता था। चूंकि मेरी रूचि खाना पकाने में थी इसलिए मैंने वहां के शेफ से दोस्ती कर ली। शेफ ने मुझे अपने साथ काम करने का मौका दिया। उन्हीं से मुझे भिलाई के एक प्रतिष्ठित होटल के बारे में पता चला जहां मैने कॉन्टिनेंटल डिपार्टमेंट में छह महीने तक काम सीखा। छह महीने प्रशिक्षण के बाद रायपुर वापस आकर मैंने एक और बड़े होटल में नौकरी की। वहां के शेफ के साथ एक साल तक कॉन्टिनेंटल भोजन पकाने और उसकी साज-सज्जा के गुर सीखे। इसके बाद मुझे एक बड़ा ऑफर नागपुर के पांच सितारा होटल का मिला।’’ अवधेश कहते हैं – ‘‘ तीन वर्षों में मैंने लगातार उन्नति की। जब भिलाई में था तब होटल व्यवसाय की भाषा में कॉमी -3 पद पर था। रायपुर में कॉमी-2 का पद मिला। फिलहाल नागपुर में कॉमी – 1 के पद पर हूं। मेरे वर्तमान पद को आम भाषा में कॉन्टिेंटल एक्सपर्ट कह सकते हैं।’’

अप्रैल, 2016 में अवधेश पासपोर्ट वेरीफिकेशन के उद्देश्य से अपने घर कोरबा पहुंचे। पासपोर्ट के बिना क्रूज लाइनर शिप में नौकरी नहीं की जा सकती। अवधेश अब अपने छोटे भाई कमलेश को भी वेदांत स्किल्स स्कूल की हॉस्पिटैलिटी शाखा में प्रशिक्षण दिलाना चाहते हैं। अवधेश बताते हैं – ‘‘बुधवारी बाजार बस्ती के मेरे सारे दोस्त आज भी पहले की तरह इधर-उधर भटक रहे हैं। परंतु मेरा परिवार मेरी नौकरी से खुश है। कभी-कभार घर वालों के लिए विशुद्ध भारतीय व्यंजन घर पर ही तैयार कर देता हूं। जिन दोस्तों को मेरे हाथ का बना खाना चखने का अवसर मिला वे सभी मेरी तारीफ करते हैं।’’ अवधेश कहते हैं – ‘‘ खुद का व्यवसाय शुरू करने की सोचता हूं। जब खूब पैसे इकट्ठे हो जाएंगे तो रेस्टोरेंट शुरू करूंगा। ’’

अवधेश की कहानी उन हजारों-लाखों युवाओं के लिए प्रेरणादायक है जिनका मन पढ़ाई में नहीं लगता परंतु कुछ अच्छा काम करना चाहता हैं। अवसर स्कूल में मिले अंकों की मोहताज नहीं होती। कुछ नया सीखने की लगन हो तो मनचाही मंजिल पाई जा सकती है।

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