विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर वनाधिकार बहाल किये जाने की उठी जोरदार मांग : हसदेव अरण्य संघर्ष समिति सहित प्रदेश भर के जनसंगठनों ने अपने गाँव में किया मौन प्रदर्शन

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कोरबा@M4S:विश्व पर्यावरण दिवस के दिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी अधिकार व वनाधिकार पर काम करने वाले संगठनों ने ग्रामसभा को सामुदायिक वनाधिकार दिए जाने की मांग को लेकर अपने-अपने गाँव में मौन प्रदर्शन किया. सुबह से ही लोग अपने गाँव में 8- 10 की संख्या में जुटकर, शारीरिक दूरी का ख्याल रखते हुए, हाथों में तख्ती लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. लम्बे समय से लंबित पड़े वनाधिकारों के दावे के बावजूद अबतक ग्रामसभाओं को जंगल के प्रबंधन के अधिकार नहीं दिए जाने से संगठनों में रोष व्याप्त है. उनका कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार में गंभीरता नहीं है, वर्ना अब तक ग्रामसभाओं को यह अधिकार मिल गया होता. आखिर, वन निर्भर समाज ही है, जो सदियों से अपने जंगलों की रक्षा करते आ रहे है. जब, वनाधिकार मान्यता कानून, इस अधिकार की मान्यता देता है, तो अब ग्रामसभाओं को अधिकार देने में आनाकानी क्यों?
“वन स्वराज्य आंदोलन” के बैनर तले आयोजित इस कार्यक्रम में लोग पर्यावरण बचाने का संदेश दे रहे है, और साथ ही चेतावनी भी कि, वनाधिकार से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. पिछले दिनों, प्रदेश शासन ने वन विभाग को वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन की नोडल एजेंसी बनाने का आदेश जारी किया था, जिसे प्रदेश के संगठनों के विरोध के बाद वापस लेना पड़ा. आखिर, जिस विभाग के अत्याचार से वननिवासी पीड़ित रहे हैं, वह कैसे अधिकार दिलाने के लिए नोडल विभाग बन सकता है।
वन स्वराज आंदोलन का मानना हैं कि पर्यावरण तभी बच सकेगा जब ग्रामसभाओं को जंगल बचाने का अधिकार मिलेगा और वनोपज सहित वन संसाधनों पर उनका पूर्ण नियंत्रण होगा। ज्ञात हो, कि छत्तीसगढ़ में वनाधिकार मान्यता कानून के तहत ग्रामसभाओं को अभी तक सामुदायिक अधिकार नही मिले हैं जबकि प्रदेश सरकार ने चुनाव पूर्व जन घोषणा पत्र में यह अधिकार देने का वादा किया था ।
वन स्वराज आन्दोलन से जुड़ कर कोरबा, सरगुजा, रायगढ़, मुंगेली, कवर्धा, गरियाबंद, धमतरी, राजनांदगांव, बलोदा बाज़ार, कांकेर आदि जिलो के विभिन्न गांवों में यह कार्यक्रम मनाने की ख़बरें आ रही है.
सरगुजा के ग्रामपंचायत पतुरियाडांड़ में ग्रामीणों ने कोरोना प्रकोप का ध्यान रखते हुए, शारीरिक दूरी बनाकर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया. पिछले वर्ष की तरह हसदेव अरण्य बचाव संघर्ष समिति ने गांव-गांव में पोस्टर लेकर पर्यावरण रक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी व्यक्त की, और सरकार को संदेश दिया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में किसी भी प्रकार जल जंगल जमीन का विनाश स्वीकार नहीं होगा । इस क्षेत्र में कोयला खनन बंद करें, और वन अधिकार कानून के तहत वनों के संरक्षण, प्रबंधन, सुरक्षा ग्राम सभा को सौंपा जाए।
इस अवसर में कई जगहों पर ग्रामसभा प्रस्ताव के माध्यम से लंबित पड़े वनाधिकार दावों को मान्य किये जाने की मांग की गयी. राजनांदगांव जिले में माधोपुर गाँव की महिलाओं ने जिला प्रशासन को व्यक्तिगत एवं सामुदायिक वन अधिकार के दावा पत्र के पेंडिंग प्रकरण के निराकरण हेतु प्रस्ताव पारित कर मांग किया । अम्बागढ़ चौकी में भी वनांचल वनाधिकार फेडरेशन ने सीडबाल बना कर, बरसात पूर्व वन में छिडकने की तयारी की है, ताकि जंगल में नए पौधे स्वतः उग सके. चौपाल संस्था के द्वारा लखनपुर, उदयपुर, बतौली और लूँड्रा ब्लाक के बहुत से गाँव में ग्रामीणों ने वनाधिकार की मांग करते हुए पोस्टर लेकर मौन प्रदर्शन किया.

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