6 ट्वीट कर टी एस बाबा ने जोगी-रमन पर उठाये सवाल… पढ़े क्या लिखा है ट्वीट में…

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रायपुर – जोगी की जाति मामले में नई हाईपावर कमेटी बनाई जाने के फैसले के बाद नेता प्रतिपक्ष टी एस सिंहदेव ने रमन सरकार पर जमकर निशाना साधा और कहा कि इस फैसले से ये साबित हो गया कि भाजपा और जोगी साथ-साथ हैं.

वहीं जाति मामले में 6 केस जीतने के अजीत जोगी के दावों पर भी टी एस सिंहदेव ने सवाल उठाए और इसे लेकर एक-के-बाद एक ट्वीट किए. टी एस सिंहदेव ने ये सारे ट्वीट भाजपा जोगी साथ-साथ हैश टैग के साथ किया.

अपने पहले ट्वीट में टी एस सिंहदेव ने लिखा कि जोगी ने अपने आदिवासी होने का सर्टिफिकेट एक तहसील से दिया, लेकिन ये तहसील सरकारी रिकॉर्ड में है ही नहीं.

इसके बाद दूसरा ट्वीट उन्होंने किया कि इंदौर बेंच ने अपना फैसला इसलिए सुनाया, क्योंकि याचिकाधारक ने केस को वापस ले लिया.

सिंहदेव ने फिर एक ट्वीट किया और लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी याचिका 2011 में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा एक आयोग गठित करके जांच के आदेश दिए. इस बार फिर उनके आदिवासी होने पर कोई फैसला नहीं लिया गया.

सिंहदेव ने फिर ट्वीट किया कि फिर 2013 विधानसभा चुनाव से एकदम पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने आयोग द्वारा हाईकोर्ट में दी गई रिपोर्ट को वापस ले लिया.

टी एस सिंहदेव ने पांचवां ट्वीट किया कि उसके बाद नए आयोग को गठित करने के लिए रमन सिंह सरकार ने 4 साल का समय लगा दिया और अब उच्च न्यायालय ने सोती हुई छत्तीसगढ़ सरकार को याद दिलाया कि गठित समिति को पहले गैजेट में सूचित करना चाहिए था.

इसके बाद सिंहदेव ने फिर एक ट्वीट किया और लिखा कि पहले की तरह ये मामला चुनाव से पहले टल गया. रमन सिंह जी का जोगी जी को बचाने का ये प्रयास निरंतर जारी है.

गौरतलब है कि कल हाईकोर्ट से फैसला आने के बाद टीएस सिंहदेव ने कहा था कि 14 साल सरकार चलाने के बाद भी सरकार को ये नहीं पता कि इसका नोटिफिकेशन रापत्र में होना चाहिए था. उन्होंने रमन सरकार के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए और कहा कि सरकार को अगर इस षडयंत्र का प्रायश्चित करना है, तो 3 महीने में निर्देश का पालन करे. क्या सरकार को इसकी जानकारी भी नहीं है, इसलिए तो जोगी को भाजपा की बी टीम कहा जाता है.

सिंहदेव ने कहा कि आदिवासी होने के मामले में अब तक कोई फैसला नहीं आया. तकनीकी कारणों से न्यायालय प्रकरण आगे भेजे गए. पहले सुप्रीम कोर्ट के 2011 का फैसला 2017 तक टाला गया. 2013 के चुनाव के ठीक पहले कमीशन की रिपोर्ट वापस हुई थी और अब फिर से वैसी ही परिस्थितियां बन गईं. यही मिलीभगत की आशंकाओं को बल देता है.

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