2016 में पुश्तैनी घर बेचकर कोमालिका के पिता ने खरीदा था उनके लिए धनुष

- Advertisement -

नई दिल्ली(एजेंसी):इस साल कई युवा खिलाड़ियों ने तमाम बाधाओं को पीछे छोड़ सुनहरी उम्मीदें जगाईं। इनमें कोई गांव की मिट्टी से निकला है तो किसी के पिता ने बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने के लिए मकान तक बेच दिया। ऐसी ही प्रतिभाओं पर एक नजर-

विश्व युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप के रिकर्व कैडेट वर्ग के फाइनल में जापान की ऊंची रैंकिंग वाली सोनोदा को हरा स्वर्ण जीतने वाली कोमालिका बारी के घर में टेलीविजन तक नहीं है। पूरी दुनिया ने जमशेदपुर की इस बेटी को गोल्डन गर्ल बनते टीवी पर देखा पर खुद कोमालिका के माता-पिता इस सुनहरे पल को देखने से वंचित रहे। परिवार चलाने के लिए पिता घनश्याम चाय की दुकान चलाते हैं।
आदर्श तो दीपिका पर बनना कोमालिका ही है

युवाओं की रोल मॉडल बन चुकीं कोमालिका ने कहा कि तीरंदाजी में दीपिका मेरी आदर्श हैं पर मुझे बनना तो कोमालिका ही है। मेरा लक्ष्य ओलंपिक पदक जीतना है। मैं धौनी के जीवट की भी प्रशंसक हूं।
कोमालिका ने कहा कि मुझे यहां तक पहुंचाने के लिए पापा ने घर बेच दिया था। घर बिक गया तो क्या हुआ, हम नया घर बनवाकर पापा को देंगे। पापा हमारे लिए तकलीफ सहते रहे पर मुझे इस बात का अहसास कभी नहीं होने दिया। विदेश में स्वर्ण पदक जीतना सपना सच होने जैसा है। मुझे इसका भरोसा तब हुआ जब मैं अपने देश आई। लोगों के प्यार से पता चला कि मैंने कुछ बड़ा हासिल किया है।

लिट्टी-चोखा की दीवानी

कोमालिका ने बताया कि मुझे लिट्टी-चोखा बहुत पसंद है। वैसे तो ये व्यंजन आदिवासी समाज का नहीं है फिर भी मेरी मां मेरे लिए बनाती है। लिट्टी व सत्तू पराठा खाने की आदत उसे स्कूल की एक सहेली का टिफिन खाते हुए लगी।
मां आंगनबाड़ी में सेविका

मूल रूप से चाईबासा के तांतनगर निवासी घनश्याम अब जमशेदपुर के बिरसानगर में रहते हैं। वो मानगो में चाय-समोसा का दुकान चलाते हैं। पत्नी लक्ष्मी बारी आंगनबाड़ी सेविका हैं। घनश्याम ने बताया कि मेरी बेटी ने मुझे गर्व करने का मौका दिया। उसकी वजह से परिवार को शोहरत व इज्जत मिली है। मां ने कहा कि बेटी बचपन से मेहनती रही है। उसकी लगन देखकर हमें शुरू से उस पर भरोसा था।

दीपक के गांव की मिट्टी में सोने की चमक

20 साल के दीपक पूनिया ने इसी माह में एस्तोनिया में हुई जूनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में धुरंधर रूसी पहलवान को पटकनी देकर भारत को 18 साल बाद इस स्पर्धा का स्वर्ण जिताया। झज्जर में बजरंग के पड़ोसी गांव के दीपक ने स्थानीय अखाड़े में कुश्ती की शुरुआत की। उनका लक्ष्य अगले माह सीनियर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतकर टोक्यो ओलंपिक का टिकट कटाना है। उन्होंने सुशील को देख कुश्ती शुरू की थी।

आठ साल पहले पैर गंवाने के बाद ऐसे विजेता बनीं मानसी

इस बार विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप पीवी सिंधु के अलावा मानसी जोशी के लिए भी ऐतिहासिक रही। उन्होंने विश्व चैंपियन का ताज पहन भारतीय पैरा बैडमिंटन में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज कराया। मानसी ने 2011 में एक दुर्घटना में बायां पैर गंवाने के बावजूद हार नहीं मानी। 30 वर्षीय मानसी ने (एसएल-3 वर्ग) फाइनल में हमवतन पारुल परमार को हराया। मानसी के पिता मुंबई के भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में काम करते थे और यहीं मानसी ने यह खेल शुरू किया। 2011 में एक सड़क दुर्घटना के चलते वह करीब दो महीने अस्पताल में रहीं। पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर विश्व चैंपियनशिप में अब तक कुछछह पदक जीत चुकी हैं। भारत ने चैंपियनशिप में कुल 12 पदक हासिल किए थे।

विवादों के बीच भी दमदार दुति चंद

निजी संबंधों और करियर पर ग्रहण की तरह रहे जेंडर विवाद के बीच जून में इटली में हुए विश्व यूनिवर्सिटी गेम्स में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं। ओडिशा के गांव गोपालपुर के बेहद गरीब बुनकर परिवार में पैदा हुई दुति को परिवार के नौ सदस्यों के बीच कई बाद भरपेट खाना भी नहीं मिल पाता था। टोक्यो ओलंपिक में फर्राटा में वह भारत की सबसे बड़ी उम्मीद हैं। 2014 में उन्होंने जेंडर विवाद का मामला अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जीता था पर इसके बाद वो आलोचकों के निशाने पर रही हैं।

अंडर-20 रग्बीः गरीब खिलाड़ियों ने जीता कांस्य

सिर्फ तीन हफ्ते के अभ्यास के बाद महिला युवा रग्बी टीम ने विएतनाम के लाओस में अंडर-20 एशियाई रग्बी सेवन टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीता। टीम की सभी खिलाड़ी गरीब परिवारों से हैं। टीम की कप्तान 17 वर्षीय सुमित्रा नायक ओडिशा के जाजपुर जिले की मूल निवासी हैं। जब वह चार साल की थीं तो उनकी मां गायत्री भुवनेश्वर आ गईं, क्योंकि पिता शराब के नशे में सभी से दुर्व्यवहार करता था। दो वक्त की रोटी के लाले थे लिहाजा मां को घरों में नौकरानी का काम करना पड़ा। पिछले साल उनकी टीम ने दुबई में हुए अंडर-18 टूर्नामेंट में भी कांस्य जीता था। कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में उन्होंने करीब दस साल पहले खेलों की शुरुआत की। उनकी टीम की सभी सदस्य भी आदिवासी और गरीब परिवारों से हैं।

20 दिन में पांच पदक जीत छाईं हिमा दास

पिछले महीने 20 दिन में पांच स्वर्ण जीतकर छाई असम की हिमा दास भविष्य की बड़ी उम्मीद बन चुकी हैं। हालांकि इन टूर्नामेंट में वह अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को नहीं छू सकी थीं। असम के नौगांव जिले के गांव ढिंग के गरीब किसान परिवार की 18 वर्षीय हिमा बीते दो साल में रेसिंग ट्रैक पर छा चुकी हैं। पिता रंजीत दास के पास सिर्फ दो बीघा जमीन है। स्थानीय कोच निपुन दास ने उनकी क्षमता को पहचाना और गुवाहाटी में टे्रनिंग दी। हिमा पहली भारतीय महिला एथलीट हैं, जिन्होंने वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप ट्रैक में स्वर्ण जीता था।

Related Articles

http://media4support.com/wp-content/uploads/2020/07/images-9.jpg
error: Content is protected !!